बहादुरी
बहादुरी
"जल्दी चलो हमें बहुत दूर जाना है " एक दृढ लेकिन छोटे बच्चे की आवाज थी, जो लगभग 12 -13 वर्ष का था।
उसके पीछे दो छोटे छोटे बच्चे जो की एक 8 और एक 6 साल के दुबले पतले व गोरे से, डरे सहमे से, और एक औरत जो, बार बार पीछे देख रहे थे।
दूर कही उन्हें आग की लपटे नज़र आ रही थी, वे सब धीरे धीरे चल रहे थे। सर्दी बढती जा रही थी।
शमशेरपुर नाम का एक पुराना गांव था, अन्धविश्वाश, रूढ़िवादियों से घिरा, जहाँ आज भी विधवाएं अपने मृत पति के साथ सती होती थी, और किसी कार्य के पूरा नहीं होने पर बलि भी दी जाती थी।
आज वहीं दिन था फिर एक औरत आग की लपटों में जलने वाली थी, फिर से एक औरत सती होने वाली थी, लेकिन अपने बच्चो को देख कर वो सती नहीं होना चाहती थी, लेकिन गांव वालो के कारण मजबूर थी।
फिर भी वो अपनी ज़िद पर अडी रही “नहीं मैं सती नहीं होना चाहती। मेरे बाद मेरे बच्चो का क्या होगा। मेरे बच्चे अनाथ हो जायेंगे।"
“नहीं तुम्हे सती होना होगा, ये हमारे गांव की परंपरा है।” एक आवाज आई ,जो की गांव के सरपंच की थी।
“नहीं मेरे बच्चे अनाथ हो जायेंगे” फिर से रुआंसी आवाज में वो औरत बोली।
“तुम चिंता मत करो तुम्हारे बाद में तुम्हारे बच्चे गांव की भलाई में काम आएंगे, तुम्हारा छोटा बेटा गांव के काली माँ की बलि चढ़ेगा।" सरपंच ने कहा।
"नहीं” वह औरत जोर से चिल्लाई “नहीं मालिक मेरे बच्चे ,उन्हें मत मारों।"
सरपंच ने कुछ नहीं सुना और कहा "जाओ तुम कुछ वक्त अपने बच्चो के साथ समय बिताओ और हाँ भागने की कोशिश भी मत करना वरना तुम्हारे तीनों बच्चे मार दिए जायेंगे। ये मेरा अंतिम फैसला है। कल सुबह तुम्हारे पति की अंतिम विदाई होगी।"
फिर उस महिला को उसके तीनों बच्चों के साथ एक अँधेरी कोठरी में बंद कर दिया गया।
आधी रात को "माँ मुझे बहुत डर लग रहा है, क्या सरपंच जी मेरी बलि दे देंगे?" एक छोटे बच्चे ने कहा।
"नहीं वो सरपंच हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता" एक मजबूत आवाज, लगभग 13-14 साल का बच्चा बोला। "माँ तुम चिंता मत करो मैं तुम्हे भी सति नहीं होने दूंगा। हमारे बाबा को ऐसे ही शांति मिल जाएगी। "
"पर बेटा तुम क्या करोगे? " माँ ने पूछा।
"मैं अपने बाबा को इसी वक्त चिता को आग दूंगा " लड़के ने कहा।
"नहीं बेटा , रात को चिता नहीं जलाते " माँ बोली।
"ये नया इतिहास होगा माँहम मजबूर है ,हमे ये करना पड़ेगा,और मैं उस क्रूर सरपंच को भी जला दूंगा, जिसने पुरे गांव में आतंक फैला रखा है।"
"कैसे कर पायेगा बेटा तु ये सब, तू अभी छोटा है। "
"नहीं माँ बाबा कहते थे अगर मन में हिम्मत हो तो इंसान सब कुछ कर सकता है, बस माँ दुआ करो मै इस कार्य में सफल होकर लौटू। "
"पर बेटा तू यहाँ से कैसे निकलेगा ?" माँ ने कहा।
"अभी बताता हूँ। ये देखो इस कमरे की खिड़की बंद है, पर पूरी टूटी हुई है। ये किसी ने नहीं देखा। आप सब लोग यहां से निकल जाओ, मैं अभी आया। " कहते हुवे उस लड़के ने अपने दोनों भाइयों को और अपनी माँ को बाहर निकाला और खुद अपने पिता की चिता तक पहुंचा और उसके पास ही एक चिता और बनाई, फिर उसने अपने पिता की चिता को आग लगाई और सरपंच के घर जा कर उसका दरवाजा खटखटाया , तभी सरपंच बहार आया और देखा की किसी ने चिता पर आग लगा दी , तो वो तुरंत वहां पंहुचा। उसने देखा वहां एक और चिता भी जल रही है, वो कुछ समझ पाता, उस से पहले ही अचानक उसे जोर से पीछे से किसी ने धक्का दे दिया और वो उस दूसरी चिता की आग में जा गिरा और जोर से चीत्कार उठी, तभी सब गांव वाले वहां आ गए, सब को पता चल गया की सरपंच जल गया , सब उसी समय बहुत खुश हुवे की सरपंच जल रहा है।
"अरे बचाओ मुझेमैं जल रहा हूँ बचाओ " सरपंच चिल्लाया।
हाँ –हाँ हम पानी लाते है सरपंच जी …… हम आपको बचाएँगें " लोग बोले।
लोग घड़े उड़ेले जा रहे थे लेकिन आग और बढाती जा रही थी।
वे सब लोग पानी की जगह केरोसिन डाल रहे थे।
सब खुश होते हुवे चिल्लाये "आज हम आजाद हुए ,हमारा गांव आजाद हुआ "
वहीँ दूर कहीं एक लड़का हाथ में मशाल लिए चला जा रहा था, पीछे दो छोटे बच्चे और उनके पीछे एक औरत चली जा रही थी।
"हम फिर कभी गांव नहीं आएंगे। " तीनों बच्चे एक साथ बोले।