Rashmi Arya

Drama

5.0  

Rashmi Arya

Drama

मेरी गलती

मेरी गलती

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"देख रही हूँ आज मैं सब कुछ, क्या से क्या हो गया। सब कुछ तो खत्म हो गया, तड़प रही हूँ मैं, इस तरह अपने परिवार को रोते बिलखते देख कर, (उदास सी हंसी में) हुह , परिवार।. कहाँ है मेरा परिवार। सब कुछ तो बर्बाद कर दिया मेने। अपने इन हाथों से।कौन रह गया है मेरे इस परिवार में। सिर्फ मेरे पति और मेरा बेटा। जो अभी इस समय मेरी लाश के सामने बैठ कर मेरी मौत का मातम मना रहे है।सब मेरी ही तो गलती थी।" बोलते हुवे उसने अपने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया और जोर जोर से रोने लगी। 

"भटक रही हूँ आज। अपनी मौत के बाद, यहाँ तो मौत के बाद ही मेरा कोई ठिकाना नहीं, सजा है ये मेरी गलती की।

कितने अच्छे थे वो दिन।कितने खुश थे हम लोग, लेकिन ये लालच। इस लालच ने ही तो सब बर्बाद कर दिया। इस लालच के रहते मेने खुद ने अपने ही माँ पिता को मार डाला, मार डाला मेने,

मेरे माँ पिता के हम तीन संताने थी मेरा भाई, मेरी बड़ी बहन और मैं। बहुत ख़ुशी ख़ुशी रहते थे हम लोग, मेरे पिता के पुश्तेनी मकान में, हम तीनों की शादी हुई, भाई अपनी दुल्हन को लेकर दूर चला गया, मैं और मेरी बड़ी बहन अपने ससुराल, रह गए मेरे माँ पिता अकेले उस बड़े से पुश्तेनी मकान में, लेकिन कभी शिकायत तक नहीं की उन्होंने, बस हर पल ये ही चाहा कि उनके बच्चे खुश रहे।

मेरी शादी उन्होंने बड़ी धूमधाम से की, छोटी थी न, उनकी लाडली।

मेरा ससुराल।अहमदाबाद का एक प्रतिष्टित परिवार हुआ करता था, वहां आ कर मैं बहुत खुश थी, पैसो की कोई कमी नहीं थी, लेकिन वो कहते है न की जितना पैसा हमारे पास होता है उतना ही लालच बढ़ जाता है मन में। अपने मायके से आ कर यहाँ अपने ससुराल में इतना पैसा देखना मेरे लिए एक सुखद अनुभूति थी, फिर क्या था, मेरा लालच भी बढ़ता गया, साल बीते और मेरा भी परिवार बढ़ा और साथ ही बढ़ता गया मेरा लालच।

जिस तरह सतयुग में मंथरा के मुख पर सरस्वती बैठी वेसे ही मेरे दिमाग में भी शैतान बैठ गया, लालच घर कर गया मन में। 

अपने मायके जाती तो वहां मेरी बहन भी मिलती मुझे। शायद वो भी सिर्फ अपने बच्चो की छुट्टियों में ही आ पाती। ये भ्रम था मेरा, उसका ससुराल पास था तो वो अक्सर यहाँ आया करती थी।

बहुत भोली थी मेरी बहन, लेकिन मेरे दिमाग में तो शैतान बेठा था, मेरे पिता का पुश्तेनी बड़ा सा मकान उसे देख कर बस यही ख्याल आता कि मेरी बहन सिर्फ इसी के लिए आती होगी। लेकिन मेरी बहन को कोई लालच नहीं था, वो बेचारी तो सिर्फ हमारे माँ पिताजी के लिए आया करती थी। और मैं अपने पिता के उस पुश्तेनी मकान के लिए।

भाई ने कभी माँ पिता जी की सूद नहीं ली, और न ही उसे घर का लालच था।

धीरे धीरे मेरा लालच और बढ़ता गया, और शैतानियत ने मेरे दिमाग में इस कदर कब्ज़ा जमा लिया की बस अब चाहे कुछ भी हो जाए, चाहे कुछ भी करना पड़े वो मकान मुझे चाहिए था, किसी भी कीमत पर। 

मेने अपने पति से भी इस बात का ज़िक्र किया, उन्होंने मेरा साथ देने से मना कर दिया, लेकिन धीरे धीरे मेने उन्हें भी लालच दे कर अपने साथ शामिल कर ही लिया, मेरे तीन बच्चे थे दो लड़कियां और एक बेटा, जिस उम्र में मुझे उन्हें अच्छी शिक्षा देनी थी, उस उम्र में मैने उन्हें लालच सीखा दिया।

बच्चे भी बड़े हो चुके थे, और मेरी बड़ी बेटी की शादी भी तय हो गयी थी, मौका बहुत अच्छा था, मेने एक तरकीब निकाली, शादी के कुछ ही दिन पहले मैं अपने मायके पहुच गयी और वहां जा कर अपने ही माँ बाप के सामने बेचारी बन गयी, उन्हें हमारे बिजनस के घाटे की झूठी कहानी सुनाई और बेटी के विवाह की बात उठा कर माँ के सारे गहने ले आयी, और ये बात मेरी बहन को अच्छी नहीं लगी, उसने मुझे समझाया भी, लेकिन मेने उसे बुरा भला कह डाला, और नाराज भी मैं खुद हो गयी, बहुत प्यार करती थी मेरी बहन मुझे, उसने सबके सामने मुझ से माफ़ी मांगी। 

मेने अपनी बेटी की बहुत धूमधाम से शादी की। सब कोई खुश था। 

उसकी शादी के बाद मेने अपनी माँ के गहने भी न लौटाए। और बेचारी मेरी माँ, अपनी बेटी को दुःख न हो इसलिए कभी भी अपने गहनों की मांग तक नहीं की।

दिन बीतते गये, मेने मेरी बेटी को ससुराल में कैसे रहना है ये सिखाया, मेरे चिन्हों पर चलते हुवे मेरी बेटी ने अपने पति को अपनी तरफ कर लिया और अपनी माँ सामान सास को दुःख देने लगी, लेकिन मेरी बेटी का पति मेरे पति जेसा न निकला, उसे सहन नहीं हुआ की कोई उसकी माँ की बेइज़ती करे, चाहे वो उसकी पत्नी ही क्यों न हो। उसने मेरी बेटी को मेरे पास ला कर छोड़ दिया। लेकिन मेरी बेटी ने अपने पेट से होने का हवाला दे कर उसे मना लिया और अब यहाँ मेरे और मेरी बेटी के कर्मो की सजा उसके बच्चे को मिली , वो मंदबुद्धि ही पैदा हुआ। जब मुझे और मेरी बेटी को पता लगा की उसका बच्चा मंदबुद्धि है तो मेरे शैतानी दिमाग ने मेरी बेटी को सुझाव दिया की इसे आश्रम छोड़ दे जहाँ ऐसे बच्चो को रखा जाता है, लेकिन मेरा दामाद तैयार ना था, और मेरी बेटी और दामाद में झगड़े होने लगे। मेने मेरी बेटी को अपने पास बुला लिया अपने बच्चे सहित।और वो मेरे पास आ गयी।

कुछ दिन बीते , एक दिन मेरी माँ का फोन आया कि मेरे पिताजी जो की इंग्लिश के रिटायर्ड प्रोफेसर थे की आँखों में मोतियाबिंद हो गया है और मेरे भाई ने उनका इलाज करवाने से मना कर दिया। ये सुन मेरे मन में लालच जाग गया और मैने उन्हें यहां बुला लिया।मेने उनकी बहुत सेवा की, सिर्फ उन्हें दिखाने के लिए कि उनकी ये प्यारी बेटी कितनी अच्छी है, हमने मेरे पिता का ऑपरेशन करवाया लेकिन वो सफल नहीं हुआ, परिणाम। उन्हें दिखना बंद हो गया। मेने अपनी माँ को सुझाव दिया की वो यही रह जाये, उन्हें ये मंजूर न था, उन्हें हर पल अपने घर की याद सताती थी, मेने उन्हें वो घर बेच देने को कहा तो वो मेरे खिलाफ भी खड़ी हो गयी, और मेरे पिता ने भी वो घर बेचने को मना कर दिया।

मेरे मन में तो लालच था इसके चलते मेने मेरे पिता को खाने में नशे की दवा मिला कर खिलने लगी। मेरे पिता पुरे दिन सोये रहते, और इसी के फायदा उठा कर मेने घर के कागजो पर उनके अंगूठे ले लिए और वो मेरा पुश्तेनी मायका मेने ही बेच दिया और पैसे हड़प लिए।

जब मुझे ये सब मिल गया तो मैने मेरे ही माँ बाप को एक कमरे में बंद रखा और दिन में एक ही बार खाना देने लगी। 

मेरे माँ पिता कमज़ोर हो चुके थे। मेरी माँ दिन भर रोती रहती आंसू बहाती रहती लेकिन उन्होंने कभी मुझे गाली या बद्दुआ नहीं दी। बुढ़ापे में रोने के कारण उनकी भी आँखों की रौशनी कम होते होते पूरी ही चली गयी।  

एक दिन जब में उन्हें खाना देने गयी तो देखा अब मेरे पिता जीवित नहीं रहे वो मर चुके थे। मेने सिर्फ और सिर्फ लोगो को दिखने के लिए बड़ा भोज करवाया। 

मेरी माँ दिन पर दिन कमज़ोर होती चली गयी और हम उनके पेसो पर ऐश करने लगे। मेरी बेटी ने अपने बच्चे को आश्रम छोड़ कर दूसरी शादी कर ली। 

एक दिन मेरी माँ भी तड़पते हुवे मर गयी। हमे कोई दुःख न था, हमें तो अपने सर का बोझ खत्म होने की ख़ुशी थी।

लेकिन कहते है न कि कर्मो का फल तो मिल कर ही रहता है और वही हुआ, मेरी माँ के जाने के बाद हमारी ज़िन्दगी में तूफान सा आ गया। मेरे बेटे को चोरी के इल्जाम में जेल हो गयी और मेरी बड़ी बेटी की दूसरी शादी भी टूट गयी। शादी टूटने के गम में वो पता नहीं कही चली गयी , वापस ही नहीं आयी और मेरी छोटी बेटी मेरी जवान बेटी की एक दिन अकाल मोत हो गयी। उसके मरने के बाद मुझे एहसास हुआ की ये क्या हो गया, मेने अपने ही हाथों अपना ही परिवार बर्बाद कर दिया। ये सोचते सोचते एक दिन मेरे दिल के दौरे ने मेरी जान ले ली। और आज मैं भटक रही हूँ। मेरी लाश के पास रोने वाला भी कोई नही है सिवाय मेरे पति और मेरे बेटे के। सब कुछ बर्बाद हो गया, सब खत्म कर दिया मेने, क्यों कि वो गलती मेरी थी।


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