बारिश, चाय और तुम
बारिश, चाय और तुम
एक पत्र, जो लिखा गया लेकिन भेजा नहीं। इसी उम्मीद में कि जब दोनों साथ होंगे तब मिल कर पढ़ेंगे और अपनी यादें ताज़ा करेंगे।
डिअर श्लोक,
आज बहुत खुश हूँ मैं, पता है क्यों?? अरे-अरे!! यही तो बताने आयी हूँ आज। बहुत दिनों बाद आज तुमसे मिली थी। कुछ दिनों से बहुत परेशान थी ना, तुमसे बात जो नहीं हो रही थी। लेकिन आज.. आज बहुत खुश हूँ। पता है क्यों?? चलो सस्पेन्स खत्म करती हूँ। आज बहुत दिनों की नाराजगी के बाद तुमसे मिली थी मैं।
हो गया था कुछ झगड़ा हमारे बीच बेवजह ही। बहुत हंसी आ रही है मुझे। हम दोनों ही बहुत पागल है। बेवजह ही झगड़ने लगते है कभी भी। कोई बात ही नहीं होती फिर भी। वो क्या है ना किसी ने कहा है कि जहाँ झगड़ा नहीं वहाँ प्यार नहीं। बस हम दोनों भी उसी लकीर पर चलने लग जाते है कभी कभी।
अब देखो न उस दिन क्या हुआ.. कोई वजह ही नहीं थी फिर भी मैंने तुम्हे डाँट दिया। क्या वजह थी अब वो भी मुझे याद नहीं। और तुम.. तुम भी तो गुस्सा हो गए थे मुझसे। समझा नहीं सकते थे क्या मुझे। अब देखो इस बात पर भी मुझे तुम पर गुस्सा आने लग गया। खैर छोडो, आज शाम तुमसे मिल कर बहुत अच्छा लगा। मैं हमेशा से ही एक ऐसी शाम चाहती थी जिसमे बारिश हो और मैं तुम्हारे साथ बैठ कर उस बारिश के मौसम में चाय पियूं। तुम तो जानते हो न कि मुझे बारिश, चाय और तुम हाँ तुम, बहुत.. बहुत पसंद हो। जिस दिन मैंने तुमसे झगड़ा किया उस दिन बहुत उदास थी। हर वक्त बस उस लम्हें को ही याद किया करती थी।
"वो भी क्या दिन थे,
जब साथ हमारे तुम थे,
बारिश के मौसम में,
सर्दी की ठिठुरन में,
आज भी याद है ,
वो चाय का स्वाद,
जो पिया करते थे हम बारिश के बाद,
काश लौट आये वो दिन,
जगा के दिल में अरमान,
फिर से साथ चले हम,
पीने चाय लिए हाथ में हाथ।"
लेकिन आज मैं बहुत खुश हूँ। क्यों की तुम साथ हो मेरे। आज की शाम मैं अपनी ज़िंदगी में कभी नहीं भूल सकती।
दोपहर को जब मैं नींद से जागी ही थी की तुम्हारा मैसेज मिला। तुम मुझसे मिलना चाहते थे। तुम सोच भी नहीं सकते की मैं कितनी खुश हुई। तुमने मुझे उसी जगह बुलाया जहाँ हम कॉलेज के बाद चाय पीते थे। और हाँ याद है तुम्हे, हम उसी जगह, उसी चाय की टपरी पर पहली बार मिले थे। मुझे वो जगह बिलकुल भी पसन्द नहीं थी। मेरे दोस्त मुझे जबर्दस्ती वहाँ ले आये थे, मैं आना नहीं चाहती थी फिर भी।
इसीलिये सब पर गुस्सा आ रहा था। और मेरा गुस्सा तब और बढ़ गया जब मुझे वहां बैठने के लिए जगह नहीं मिली थी। तुम भी तो वही थे, अपने दोस्तों के साथ। मुझे खड़ी देख कर तुमने अपनी जगह मुझे दे दी। और मैं.. मैं तो थी भी पागल, गुस्से में तो वैसे भी थी और तुम पर भड़क गयी। यकीन मानो, उस दिन मुझे बहुत बुरा लगा। उस दिन के बाद मैंने तुम्हे पूरी कॉलेज में बहुत ढूंढा लेकिन तुम पता नहीं कहाँ चले गए थे। अपने आप पर बहुत गुस्सा भी आया और रोना भी।
मैं लगातार ही तुम्हे ढूंढती जा रही थी। लेकिन तुम्हारा कुछ अता-पता नहीं था। तुम्हारे किसी दोस्त से तुम्हारा नंबर ले कर मैंने ही तुम्हे कॉल किये थे। और तुमसे माफ़ी भी मांगी थी। उसी दिन तुमने मुझे वहीं जगह जो मुझे पसंद नहीं थी, वही चाय की टपरी पर बुलाया था।
पहली बार धड़कते दिल के साथ तुमसे मिलने पहुंची थी मै।
सर्दी के मौसम में भी तुम्हे देखते ही मुझे पसीने छूटने लगे थे।
जैसे ही तुम्हारे पास पहुँची अचानक ना जाने क्यों मेरी धड़कने बढ़ चुकी थी। शायद यही हाल तुम्हारा भी था।
हम एक-दूसरे को देख कर मुस्कुरा दिए थे। उस वक्त तुमने पहली बार मेरा हाथ पकड़ा था। उसी वक्त इस दिल में एक एहसास सा जगा था।
शाम का वक्त था, तो ठिठुरन भी बढ़ने लगी थी। वहीं हमने पहली बार साथ में चाय पी थी। पता है तुम्हे!! इस चाय का टेस्ट हर चाय से एकदम अलग सा लग रहा था। पता नहीं क्यों?
आज पता चला कि क्यों उस चाय का टेस्ट इतना अच्छा था। मुझे मुहब्बत हो गयी थी तुमसे उसी पल।
इसके बाद हम रोज ही उसी जगह, उसी चाय की टपरी पर मिलने लगे थे। जो चाय की टपरी मुझे नापसंद थी, आज वही मेरी फेवरेट जगह बन चुकी थी और आज भी मेरी फेवरेट जगह है।
हम मिलने लगे थे रोज उसी जगह। और याद है तुम्हे, उसी जगह तो तुमने मुझसे अपने प्यार का इज़हार किया था। मन में प्यार के कोंपल तो पहले ही फुट चुके थे, लेकिन वो दिन मैं कभी भी नहीं भूल पाऊंगी, जिस दिन तुमने मुझे अपने दिल में जगह दी थी।
लेकिन इसी बढ़ते प्यार के साथ साथ हम अपनी पढ़ाई में व्यस्त होने लगे थे और इसी बीच कोई न कोई बात को लेकर हमारे झगड़े भी हुआ करते थे।
और उस दिन.. उस दिन न जाने क्यों हमारा झगड़ा बहुत बढ़ गया था और पूरे 10 दिन न तो तुमने मुझसे बात की और न ही मैंने तुमसे। जानती हूँ गलती किसी की भी नहीं थी। बस हालात ही गलत थे।
लेकिन दस दिन बाद जब आज दोपहर तुम्हारा मैसेज आया कि, तुम मुझसे मिलना चाहते हो तो मैं बहुत खुश हुई और उसी समय तुमसे मिलने को तैयार होने लगी थी। जो लड़की तैयार होने में सिर्फ 5 मिनिट लगाती है उसी ने आज पूरे 2 घण्टे तैयार होने में लगाये।
तैयार होने के बाद मैं पागल सी बार बार आईने में देखती रही।
शाम हुई और मैं तुमसे मिलने आयी। हमारे बीच न जाने क्यों एक ख़ामोशी सी पसरी हुई थी। बहुत देर तक हम दोनों में से कोई भी नहीं बोला। उस वक्त मैं बहुत गिल्टी फील कर रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि तुमसे कैसे और क्या बात करु। फिर थोड़ी हिम्मत जुटाई और जैसे ही तुम्हारी ओर देख कर सॉरी बोलने को हुई उसी वक्त तुमने भी मुझे देखा और हम दोनों के मुॅंह से एक साथ ही ‘सॉरी’ निकल गया। एक साथ सॉरी बोलने के बाद हम एकदूसरे को देख कर जोर से हंस दिए। और फिर एक दूसरे का हाथ पकड़े हम दोनों ही कुछ देर एकदूसरे की आँखों में खोये रहे कि अचानक ही बारिश शुरू हो गयी। इस बारिश को देख कर हम दोनों के चेहरे खिल उठे। तभी एक आहट सी हुई, देखा तो टपरी वाले भैया हम दोनों के लिए चाय रख कर जा चुके थे। चाय को देखते ही मानो जैसे मेरे दिल की मुराद ही पूरी हो गयी हो, मैं चहक उठी और तुम मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे। क्यों कि तुम जानते थे कि मुझे बारिश और चाय बहुत पसंद है।
आज मेरी ये ख्वाहिश पूरी हुई। आज इस बारिश में तुम मेरे साथ बैठ कर चाय पी रहे हो। और मैं हमेशा ही इस बारिश के मौसम में बरसती बारिश में तुम्हारे साथ बैठ कर चाय पीना चाहती हूँ।
हमेशा चाहती हूँ कि ये बारिश, चाय और तुम यूँ ही मेरे साथ रहो।
तुम्हारी माही।
समाप्त।

