कुछ बस यूँ ही यादों के झरोखे
कुछ बस यूँ ही यादों के झरोखे
बात लगभग दो तीन साल पहले की होगी, एक हॉल था जो खूबसूरती से सजा हुआ था...उस हॉल में लगभग बीस ही मेंजे होंगी जो कुर्सियों के साथ लगीं हुई थीं, खिड़कियों पर लाल रंग के पर्दे लगे थे, और सीलिंग, खूबसूरत सफेद रंग की दुछत्ती डिजाइन में थी, जो उस हॉल की खूबसूरती में चार चांद लगा रही थी ! जिसमें लगी सफेद लाइटें बहुत मद्दम रोशनी बिखेर रही थी...सारी मेंज और कुर्सियां भी लाल कपड़े से ही कबर्ड थीं....थोड़ी -थोड़ी देर में वेटर कुछ ना कुछ मेरी टेबिल तक लेकर आ रहा था, हर बार मैं उसे धन्यवाद बोल रही थी...और बदले में बेटर भी हर बार मुस्कुरा कर मेरा अभिवादन स्वीकार कर रहा था ...आश्चर्य ये कि...मेरे सामने कोई भी नहीं था..हालांकि मुझे खुद का साथ भाता है, हॉल के एक कोने से एक मध्यम सुरीला स्वर उभरा और मेरा ध्यान उस ओर चला गया, एक गायक हाथ में माइक पकड़े गाना गुनगुनाने लगा था 'मेरे ख्वाबों में जो आये ....आके मुझे ..' अभी उसने इतना ही गा पाया था । कि मैं उठी और उससे रिकवेस्ट करती हुई बोली 'ये नहीं..कोई टॉम क्रूज की मूवी का कुछ सुना सकते हो"?
मेरे ऐसा कहने पर उस गायक ने आँखे सिकोड़ी और बोला
"वो अमेरिकन, 'मिशन इम्पॉसिबल' वाला हीरो?"
"