कुछ अधूरा सा लगा
कुछ अधूरा सा लगा
माँ दुर्गा के विसर्जन के साथ ही सभी के घरों में दीवाली की तैयारियां शुरू हो जाती है। अब दीवाली भी आ जाएगी रोमा मन ही मन सोच रही थी और स्वयं को संभालती है।
कामवाली बाई को भी बोल दिया है कल से हम लोग सफाई शुरू करेंगे, तुम समय पर आ जाना। मगर मन का एक कोना अब भी उदास सा था। रोमा को वो बातें बार -2 याद आ रही थी, जो पल उनके साथ बिताएं थे।
हां माँ अस्वस्थ थी तब भी रोमा उनसे पूछ कर ही सभी काम करती थी। जब भी कभी मन नहीं लगता तो घंटों उनके पास बैठ कर मन हल्का कर लेती। अब तो स्वयं को नितांत अकेला महसूस कर रही थी। परिवार में पति और बच्चे उसका बहुत ख्याल रखते। मगर फिर भी यदा कदा मां की याद आ ही जाती। उनके जाने के बाद यह पहली दीवाली थी, अबकी बार तो शगुन के दिए ही जलाने थे।
सफाई भी हो गई, पति ने घर में प्रवेश करते हुए कहा तो रोमा की तंद्रा भंग हुई। हाँ सभी सामान व्यवस्थित हो गया है और बेकार का सारा सामान भी हटा दिया है। और वो जो माँ का सामान था वो भी सभी को दे दिया है यह कहते कहते रोमा का गला रुंध सा गया।
रवि और रोमा दोनों की आँख आज नम थी। चलो तैयार हो जाओ, आज धनतेरस है बाजार से दीपावली का सामान ले आते हैं।
रोमा ने कहा ठीक है। रवि ने यह सोच कर रोमा को साथ से लिया कि बाजार की रौनक को देखकर रोमा का मन हलका हो जाएगा। मगर दीपावली की रौनक रोमा के मन में रौनक न भर सकी। वह रवि के साथ खरीददारी तो करती रही।
मगर एक पल भी अपनी सासू माँ को न भुला सकी। अबकी दीपावली उसे बोझिल सी लगने लगी। कैसे वह हर काम मां के बिना करेगी। वह जानती थी मां से सभी काम सीख लिया है। लेकिन बड़ों के आर्शीवाद के बिना तो रोमा को हर काम फीका सा ही लगता। अब इस बार दीवाली पर कुछ भी दीवाली जैसा नहीं लगा रहा था। मां जो नहीं थी।
क्या मां के बिना भी कभी घर में दीपावली हो सकती है? रोमा अपने आँख से लुढ़कते आँसुओं को रोक न सकी। आज उन उनके आशीर्वाद से सभी कुछ तो था मगर वह रौनक नहीं थी। दीपक जला कर रोमा ने बहुत ही धैर्य के साथ दीपक जलाकर लक्ष्मी पूजन किया और दोनों हाथ जोड़कर परिवार की खुशियों के लिए अनुनय विनय करने लगी।
रवि और रोमा बच्चों के साथ रहकर भी मां के बिना स्वयं को अधूरा महसूस कर रहे थे। आज उनके बिना सब अधूरा सा था।