वास्तविकता
वास्तविकता
किसी खास पुस्तक को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि हम भी वैसे ही होने लग गए हैं या वैसा ही सोचने लग गए हैं जो लेखक हमें सोचने को कहता है और हम एक चैप्टर के बाद खुद को वहीं पर खड़ा हुआ पाते हैं जहां पर लेखक हमें मंत्र मुग्ध करता है या कह सकते हैं हिप्नोटाइज करता है और हम सारी की सारी लेखक की बातों को सही मानने लग जाते हैं और उसे हिप्नोटाइज के चलते हम सोचते हैं कि हमने विश्व को जीत लिया है हम विश्व विजई हो गए हैं मगर सत्यता के धरातल से बहुत दूर चले जाते हैं जहां पर वास्तविक वास्तविकता का समावेश नहीं होता
