स्वर्ग का द्वार दीपों की पंक्ति
स्वर्ग का द्वार दीपों की पंक्ति
आज विमा कुछ उदास हो कुछ सोच रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपना मन कैसे लगाएं। इतना सूनापन तो उसने कभी भी महसूस नहीं किया था।
बच्चों की भी छुट्टियाँ थी और दीपावली भी नजदीक ही थी।
दीपावली की सफाई में काफी सामान ऐसा निकल आया था कि उसे फेंकने का भी मन नहीं कर रहा था।
विमा शुरु से ही परोपकारी थी।
हमेशा सभी के दुःखों को हल्का करने की सोचती ।
अचानक उसके दिमाग में कई आइडिया आए और उसने सभी पुराने सामान, मोती, सीडी बोतल, अन्य ओर भी बहुत सा सामान एक जगह इकट्ठा किया।
अब उसका मन उत्साहित था। अपने एकांकी पन में उसने अनेक सपने सजा लिए।
अब वह बच्चों की. सहायता से उन पुराने बेजान से सामान में कुछ सपने संजोने लगी।
कभी पुराने दिए पर रंग करती तो कभी सी डी , गमलों इत्यादि पर।
देखते ही देखते उन्होंने बहुत सुंदर दिए और बनरवाल, गमले और भी कई सजाने के सामान में जान भर दी।
अब विमा के चेहरे पर मुस्कान देखते ही बनती थी।
विमा ने मन ही मन निश्चय किया कि वह यह सामान उन सभी को देगी जो अभाव में दीपावली पर अपना घर महंगे सामान द्वारा नहीं सजा पाते हैं।
विमा ने समय के सदुपयोग के द्वारा अपने मन से उदासी को तो दूर किया ही साथ में उनकी खुशियों के बारे में सोचा जो कभी सोच भी नहीं सकते कि खुशी क्या होती है।
आज रविवार के दिन आसपास की कुछ महिलाओं के साथ पहुंच जाती हैं उस बस्ती में जहां कुछ महिलाएं हर रोज की तरह झाडू, पानी भरना, इत्यादि कार्य कर रही थी।
वो सभी विमा के साथ कुछ महिलाओं को देखकर चौंक जाती है।
विमा ने गाड़ी से उतरते हुए उन सभी को इशारे से अपनी ओर बुलाया।
सभी के साथ प्यार भरी बातें की ओर कहा आज आप सभी को हम दीपावली की शुभकामनाएं देने आए है।
अचानक सभी को आया देखकर सभी सहम जाती है।
अरे बहनों ! संकोच मत करो। विमा ने कहा।
सारा सामान गाड़ी से उतार कर एक साफ चबूतरे पर सजाया।
जब उन गमलों, तोरण ,सुंदर दिए को सभी ने देखा तो मंत्रमुग्ध की हो देखते रह गए।
सभी परिवारों को तेल और बाती के साथ सजावटी दिए और पौधे लगे गमले, तोरण इत्यादि दिए गए तो सभी ने प्रसन्नता से इस कार्य की सराहना की।
आज विमा ने सभी की चौखट को दीपों की पंक्ति से सजा दिया था।
जहां माता लक्ष्मी हमेशा के लिए आने वाली थी, विमा ने इस तरह स्वर्ग का द्वार दीपों की पंक्ति द्वारा तैयार कर लिया था।
आज उस बस्ती के सभी बच्चों और महिलाएं खुश होकर विमा को आशीर्वाद दे रहे थे।
विमा ने जाते-जाते सभी को मिठाई का डब्बा भी दिया जिसमें अपने हाथों से बनाए गए मिष्ठान उसमें भरे थे।
आज के बाद विमा कभी भी उदास नहीं हुई। अब वह जिस रास्ते पर चल रही थी वहां सिर्फ आनंद ही आनंद था।
जब भी कभी विमा का मन करता तो वह उन बस्ती वालों के लिए कुछ सामान लेकर जाने लगी।
जिससे उसे स्वर्ग का सा आनंद का अनुभव होता।