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Ritu Garg

Abstract

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Ritu Garg

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इंतजार कैसा

इंतजार कैसा

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क्या हो गया है ? सभी पौधे सूख कैसे गए ?

 क्या वक्त की मार ने इन्हें भी सुखा दिया था ?

ओर ओर नानी को क्या हो गया ?

इनकी देखभाल नानी क्यों नहीं करती।

रीता काफी अरसे के बाद अपनी नानी से मिलने आई थी। 

मां ने काफ़ी जिद की कि एक बार नानी से मिल लो।

 दौड़ती हुई रीता नानी के कमरे की तरफ़ बढ़ती है।

नानी ओ नानी कहां पर हो.....

 शायद सो रही है सोच कर रीता पास जाकर सिर पर हाथ रखती है।

नानी बड़ी मुश्किल से बोलती हुई ,

अरे! बेटी तू कब आई?

 बस अभी नानी

 आप को क्या हो गया यह सभी कैसे हो गया।

 और और....

रीता आंखों से आंसू लुढ़क पड़े।

मामा कहां है?

 तुम्हारे मामा को दूसरे शहर में नौकरी मिल गई है।

कुछ रुक रुक कर बोलते हुए....

और आपका ख्याल.....

रीता की आवाज़ में नमी थी।

आती है काम वाली बाई आती है।

अब मैं बूढी हो गई हूं न तबीयत भी ज्यादा ठीक नहीं रहती।

 रीता खो जाती है अतीत के पन्नों में

नानी तो सभी की मिसाल बनी हुई थी। घर की व्यवस्था और कड़क और दयावान स्वभाव ।

अपने हाथो से हर रोज गमलों में लगे पौधों की देखभाल करती।

मेरा भी नानी के यहां पर खूब मन लगता था ।

 मामा भी तो बहुत दूर चले गए ।

बूढ़ा शरीर है, किसी तरह सांसों को गिन गिन कर समय व्यतीत कर रही है।

 अब तो पौधे भी नानी के शरीर के जैसे सूख गए हैं।

 पौधों को भी तो हरियाली के लिए वातावरण की जरूरत होती हैऔर मन को प्रफुल्लित करते हैं।

और नानी को भी अब किसी का इंतजार नहीं है।

इंतजार है तो ईश्वर के घर जाने का मन ही मन अपनी सारी बातें शायद भगवान के साथ कर लेती होगी।

 यह सोच कर रीता उदास हो जाती है।

इंतजार करते-करते आंखें सूख जाती है मगर नहीं आता कोई भी।

और इंतजार हो भी तो किसका।

सभी की धारणा यही है कि छोटा परिवार सुखी परिवार लेकिन ऐसा तो कभी होता ही नहीं क्योंकि कोई रिश्ते भी नहीं बचते और इंतजार भी नहीं बचता।

सभी अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाएंगे पीछे बचेगा इंतजार और बूढ़े मां-बाप का तिरस्कार।

रीता की आंखें भीग जाती है और सोचती है वक्त न जाने क्या-क्या करवाएगा।


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