Ritu Garg

Inspirational

4.5  

Ritu Garg

Inspirational

मुझे अच्छा लगा अनपढ़ होना

मुझे अच्छा लगा अनपढ़ होना

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लघु कथा

शीर्षक;मुझे अच्छा लगा अनपढ़ होना।


घर में सबसे छोटी चुलबुली रीता को मां का गुस्सा करना एकदम भी अच्छा नहीं लगता था। छोटी-छोटी बात पर टोकना और साफ सफाई का ध्यान रखना मां के व्यवहार में शामिल था। 

रीता की मां अनपढ़ थी लेकिन समझदार काफी थी हिसाब किताब तो जैसे उंगलियों पर ही आता था। हमेशा अपने व्यवहार से सभी का दिल जीत लेती थी।

अचानक से घर में मेहमान आने पर सभी ने घर के रखरखाव की बहुत ही तारीफ की। और बातों की बातों में मां से रीता की भी तारीफ की। मां जवाब में कुछ नहीं कहती बस मुस्कुरा देती थी।

मन ही मन रीता को एहसास हुआ कि वह घर के किसी भी कामकाज में हाथ में नहीं बटाती है। 

हमेशा पढ़ाई का बहाना बनाकर इधर-उधर किताब लेकर बैठना रीता के स्वभाव में शामिल था।

रीता की मां अनपढ़ होते हुए भी हर काम सलीके से करती एवं अपने बच्चों को बहुत ही प्यार और सम्मान के साथ सभी बात समझाती । खाली समय में हस्त कारीगरी के द्वारा सुंदर-सुंदर आसन, गुलदस्ता , अचार इत्यादि बनाकर बिक्री करती थी। रीता के सर पर पिता का साया ना रहने पर भी मां ने कभी अपने बच्चों को किसी प्रकार की कमी का अनुभव नहीं होने दिया। अपनी व्यवहार कुशलता एवं कारीगरी द्वारा वह प्रसिद्ध हो चुकी थी। अपने अनपढ़ होने का उसे कभी दुख नहीं हुआ। उसको अच्छी आमदनी हो जाती थी।

 जिससे पारिवारिक स्थिति भी अच्छी थी। रीता पर भी इसका बहुत गहरा असर पड़ा।

रीता पढ़ाई के साथ-साथ अपनी मां के घर के कामों में भी हाथ बंटाने लगी और उसने भी धीरे-धीरे सभी काम सीख लिए।

पहले हमेशा वह सोचती कि मां अनपढ़ है हम सब का क्या होगा। लेकिन अब रीता की भ्रांति दूर हो चुकी थी। अब उसे अनपढ़ मां बहुत अच्छी लगती थीं जो हमेशा उन्हें प्यार दुलार देती और हमेशा खुश रखती थी।

रीता अब मन ही मन खुश थी और सोच रही थी अनपढ़ होना बुरा बात नहीं है, बुरा है अच्छा बर्ताव न करना , ढंग से बातचीत ना करना और किसी का आदर सत्कार न करनाअपनी पढाई का घमंड करना। अब उसेअनपढ़ ओर पढ़े लिखे समझ आ चुका था।


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