करनी कथनी
करनी कथनी
अनुज को अपने गुरु से इतना भरोसा था कि एक दिन पढ़ लिखकर बड़ा इंसान बनूंगा। दिन रात गुरु के सानिध्य में ही रहता था। उसका मित्र तनुज भी खास मित्र बना। दोनों गुरु जी के कहे अनुसार कदम बढ़ाते और दोनों का उठना बैठना साथ रहा। लगभग दस वर्षों से दोनों का मिलना जुलना रहा। एक दिन अचानक अनुज की तबीयत खराब हुई। काफी दिनों तक बीमार ही रहा। तनुज अपना कार्य करता चला गया। अनुज का काफी कार्य अधूरा रहा। उसको उम्मीद थी कि एक दिन उसका काम भी समयानुसार समाप्त हो जाएगा। तनुज अपना कार्य करता चला गया। उसकी नौकरी भी लगी। अब अनुज अकेला रह गया आखिर उसको जितना भरोसा था अपने गुरु पर खरा नहीं उतरा। एक दिन गुरु जी ने उसे इनकार किया कि तुम्हारा जितना रुका कार्य है अब नहीं होगा समय निकल चुका है। भ्रमित होकर अनुज वापस घर लौटा। आखिर जिसका भरोसा था। उसने भी इन्कार कर दिया। तनुज भी कोई मदद नहीं कर सका। दिग्भ्रमित होकर अनुज सोचने लगा कभी किसी पर भरोसे के सहारे नहीं रहना चाहिए। अपना काम स्वयं ही समाप्त करो तो अच्छा है। मैं इतने वर्ष किसी के भरोसे बैठा फिजूल में समय बर्बाद हुआ।
करनी भरनी जीवन का खेल है। जैसा करोगे वैसा भरोगे। उसके हाथ करनी मिली, अब यही सहारा। जैसा किया वैसा करनी भरनी। करनी हाथ लिए मकान हो या खेत समतल करता रहता है। जितना करनी में भर लेता है उतना संतुष्ट हो जाता है। मिस्त्री बनकर बड़े बड़े मकान के रूप को आकार देने लगा। आज कुछ कमाने का समय सोचकर करनी भरता और ईंट पर ईंट खड़ा करता चला जाता। सचमुच करनी करनी है जो उसके आजीविका का साधन मिला।