सफर का डर
सफर का डर
अक्सर पर्यटकों का देवभूमि हिमाचल में आना जाना रहता है गर्मियों की छुट्टी बिताने और प्रकृति का मनमोहक नजारा देखने सैलानी मैदानों से पहाड़ों की ओर आकर्षित होते हैं। ऐसा ही वाकया बीते दिनों मेरे गांव से कुछ ही दूरी पर स्थित दूसरे गांव में हुआ।
पहाड़ से चट्टानें खिसकने के कारण पर्यटकों से भरी टेंपो चपेट में आ गई। साथ ही कुछ व्यक्तियों की मृत्यु हुई। नितिन और शिरील को हल्की चोट लगने के कारण बच गए। दुर्घटना के चंद ही मिनट बाद नितिन ने सड़क से आवाज लगाई। शिरिल को कहा कि किसी पत्थर के पीछे छिप जाओ। ऊपर से नीचे पत्थर गिर रहे हैं। कुछ ही देर बाद दोनों मिलते हैं। दोनों को हल्की चोट लगी इसलिए बच गए। नितिन ने लोगों को जानकारी दी कि गाड़ी पर चट्टान गिरी और हमें खिड़की से बाहर फेंक दिया। कुछ गाड़ी में ही थे, जो बच नहीं पाए, उन्हें गाड़ी समेत नदी किनारे सड़क पर फेंक दिया। दोनों के सिर से लहू बह रहा था। उनकी हिम्मत से बच गए तुरंत पुलिस को फोन किया।
शीरिल कहने लगा एक तो कोरोन्ना की मार ऊपर से प्रकृति भी हमारे खिलाफ। तुम्हारे को गम्भीर चोट लगी है शीरील ने नितिन से कहा, नितिन कहने लगा एकबार उन सभी को ढूंढते हैं जितने गायब है न जाने किधर बिखर गए। दोनों सड़क से होते हुए नीचे पहुंचे जहां वाहन गिरी थी। दोनों ने एक के बाद एक सभी को देखा और हताश रह गए। गांव वालों ने समझाया कि बरसात में इस तरह नहीं घूमना। कल भी पत्थर गिरे थे, चेतावनी भी दी थी समाचार में, फिर भी अनदेखी कर दी। इसी का नतीजा है आज जो कुछ हुआ। कुदरत के आगे किसकी बिसात नितिन कहने लगा। मरना ही हो, तो भी वहीं मरते जहां हमेशा कोरॉन्न का डर सता रहा था।
चलो आज घूमने जाते हैं शशि
बॉर्डर के इस ओर?
वहां का नजारा देख आते हैं।
अभी नहीं बारिश रुकने को नहीं!
जारी है!
राजेश ने बात टालने की कोशिश करी!
उधर कमल खासा उत्सुक,
पहाड़ लांघना तो बाएं हाथ का खेल समझता है, मीनू ने कहा!
राकेश बात टालता रहा, उसे मालूम था, हिमालय की चोटी कभी भी दरक जाती है।
सोच समझकर ही आगे बढ़ना होगा।
बॉर्डर पार जाने की बात तो फिलहाल एक दो दिन के लिए टाल दी।
शशि ने कहा, चलो फिर किसी दूसरे गांव का रुख करते हैं
दो दिन हो गए।
एक ही स्थान पर बैठे नहीं रह सकते।
अगली सुबह ड्राइवर ने कहा! चलो वापस लौटते हैं आगे निकल कर विचार करते हैं किस ओर जाना है
आह! शशि
मौसम भी साफ है आज
सभी गाड़ी में सवार हुए और फोटो खिंचवाकर निकल पड़े।
कुदरत की कहर कौन समझ सकता है थोड़ी दूर दस किलोमीटर पहुंचते ही सड़क पर पत्थर गिरने लगे।
मीनू ने कहा, गाड़ी रोको।
सभी स्वयं को संभालने में व्यस्त रहे।
गाड़ी के सामने सड़क खिसकता नजर आने लगा।
पीछे भी नहीं जा सकते। शशि ने कहा।
जो किस्मत में होगा। देखा जाएगा, ड्राइवर ने कहा! उसकी आंखों से आंसू निकलते रहे।
अब क्या होगा।
आगे भी पत्थर,!
पीछे भी!
अब क्या करें, कमल कहने लगा।
सभी गाड़ी से उतरे, समान गाड़ी में रहने दिया। कोई पेड़ के पीछे तो कोई चट्टान के साइड छिप गए।
कुछ ही देर में गाड़ी भी सड़क से नीचे जा गिरी।
थोड़ी देर बाद, ड्राइवर ने आवाज लगाई?
कहां हो सब, देखो इधर।
सभी इकट्ठे हुए।
सभी की आंखों में आंसू छलक रहे थे। गनीमत रही कि हम सभी सुरक्षित है। रोंघटे खड़ी करने वाली मंजर से निकल सभी की आंखों से खुशी के आंसू छलकने लगे।
मीनू ने फोन पर घर को बता दिया, कि मुसीबत से बाहर निकले हैं। कुछ ही दिनों पहले इस स्थान पर काफी लोग मरे थे। अभी सभी सुरक्षित बचे हैं।
ड्राइवर ने कहा! इस खुशी के आंसू का कोई मोल नहीं।
किसी को बुरी नजर नहीं लगी।
जय हो बोले नाथ की।