सोशल नेटवर्किंग साइट्स
सोशल नेटवर्किंग साइट्स
कशिश काफी उदास रहता था उसने डिग्रियां भी काफी लिया है। मनचलों के साथ रहना व समय बिताना उसे कतई पसंद नहीं भाता है। कुछ समय दोस्तों के साथ खेल में बिताया करता था।
डिग्रियां ले चुके कशिश को नौकरी के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। एक दिन अचानक मोबाइल फोन उसके हाथ लगी। फोन देख उसके मन भी जिज्ञासा हुई कि क्यों न फोन खरीद लिया जाए।
पहले उसने फोन लिया धीरे धीरे कंप्यूटर की ओर भी आकर्षित हुआ। मित्रों के पास कंप्यूटर होने के कारण उसने मन में ठान लिया कि मैं भी कंप्यूटर लेता हूं।
जब कोई मित्र नहीं मिलते बात करने तो कशिश मोबाइल पर फ्रैंड रिक्वेस्ट आने वालों का नाम देखता और चैटिंग शुरू हो जाती है कई बार देर रात तक काम के वक्त तक।
एक दिन कंप्यूटर भी ले लिया। जब से कंप्यूटर हाथ में लगा, उसके बाद तो एक एक कर कई लोगों से फेसबुक में चैटिंग होने लगी। सोशल साइट्स पर दायरा बहुत बढ़ने लगा। अपनों से मिलन दूर और सोशल मीडिया पर नाम चमकने लगा।
फेसबुक पर कई मंचों में लेख कविता, कहानी छपने लगी।
प्रशस्ति पत्र प्रदान करने वालों का तांता बढ़ गया। एक के बाद एक कई मंचों से वाहवाही बटोरने लगा। उनकी इस वाहवाही को वजह वह समाज में निट्ठला लगने लगा। पेन और कागज से बहुत दूर चला गया। अब मोबाइल हो या कंप्यूटर कीपैड पर उंगलियां डेरा जमा चुकी थी। पुस्तकों को पढ़ना हो तो भी गूगल में ढूंढ कर पता चलता रहा है नई नई जानकारियां बटोरता फिर उस पर कमेंट्स करता मित्रों के साथ।
जहां भी कोई मित्र मिलते चाय पानी की बजाय यही बात चलती।
एक दिन अचानक कहीं किसी सेमिनार में जाना हुआ। वहां औरों को देखते उसने भी सोचा कि मैं भी इस तरह की आदत लगाता तो विद्वान बन जाता।
सभी के पास पैन और कागज था।
सिर्फ वही खाली, अपनी बात सभी मंच पर कागज पर नजर रख करते। उसकी बात कौन सुनता क्योंकि वो तो चैटिंग में मदमस्त रहता था। अगर कुछ बोलता भी किसी विषय पर क्या कहता। क्योंकि वो तो पुस्तकों से काफी दूर निकला था। सिर्फ मोबाइल और कंप्यूटर की आभासी दुनिया में खोया रहता था। अक्सर अपरिचित लोगों से ही उसकी बातचीत होती रही।
सोशल नेटवर्किंग साइट्स का दायरा इतना बढ़ गया है कि आज अब सभी लोग समक्ष मिलने की बजाय सारा काम इसी पर करने लगे हैं। चंद सेकंड में सारी जानकारी उपलब्ध होने लगी है किसी को कहीं जाना हो तो भी मोबाइल बिन कुछ नहीं।
