ईमानदार
ईमानदार
राजू एक दिन बस में सफर कर रहा था जब वह बस से उतर गया तो उसकी नजर ताकि की ओर जाने लगा। बस थोड़ी देर रुकी थी वह पिछली ताकी से उतरा उसके पीछे आगे भी काफी लोग उतरे। उसकी नजर घड़ी पर लगी। ताकी के पास ही चमक रहा था टाइटन का घड़ी। पहले तो उसने सोचा किसी के हाथ से छूट गया होगा। उसने घड़ी उठाई और चिल्ला कर कहा "ये घड़ी किसकी है?" सभी कहने लगे मेरे पास तो है। राजू उन दिनों पढ़ाई कर रहा था उसे कई बार जरूरत होती है इम्तिहान में घड़ी की। उसने उस्ताद से कहा कोई पूछेगा तो उसे दे देना।
उस्ताद ने कहा "यह तुम्हारी किस्मत में है जब कोई नहीं ले रहा।" उस्ताद को उसकी ईमानदारी पर विश्वास हुआ। यह कम से कम सभी से पूछ तो रहा है
उस्ताद ने कहा "यह तुम्हारी किस्मत है इसे तुम रखो।"
राजू खुश हुआ लेकिन उसके मन में डर था कि कहीं कोई चुरा लिया हो न समझे कोई पूछेगा तो क्या जवाब दूंगा। कुछ दिनों के बाद वह घड़ी लगाने लगा। परीक्षा में घड़ी उसके काम आने लगा समय देखने के लिए। एक दिन उसके हाथ से घड़ी कुछ ही महीनों में उसी तरह गायब हुई जैसे उसे मिली थी । उसे काफी अफसोस हुआ वह सोचने लगा ढूंढ़ना भी फिजूल है मेरा तो था नहीं जैसे मिला वैसे ही गया। लेकिन उसे दुख बहुत होने लगा घड़ी मंहगी थी। उसने सोचा जब मुझे मिला था मैं भी दे रहा था। कोई और होता तो पूछता भी नहीं चुपचाप लेकर जाता। उस घड़ी की कीमत उसे महसूस होने लगी। अब वह समय का सदुपयोग समझने लगा था उसने मन में ठान लिया कि घड़ी अपनी होनी चाहिए।
उसने समय देखना शुरू किया घड़ी खरीदी अब उसे घड़ी गुम होने का एहसास नहीं हुआ। ईमानदार इन्सान को मुफ्त की हो या कीमत की जी चाहो मिल ही जाता है। सुजल ने कहा, इस तरह कोई चीज मुझे मिलती तो मैं कभी दूसरों को नहीं दिखाता सीने से लगाए रखता क्योंकि कुछ मिलना भी उपहार होता है। जिसका भाग्य हो उसे ही मिल जाता है। राजू का मित्र अक्सर पूछता था तुम्हारे पास ये घड़ी कैसे , ये तो बड़ी मंहगी है।इसे लौटा दो तुम किसी को जिसकी हो तो वो कितना खुश होगा। जैसे शरीर का कोई अंग लग दोबारा।
