Mukesh Chand

Others

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लकीर से फकीर

लकीर से फकीर

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राजू सुसंस्कृत और होनहार छात्र रहा है। अपनी मां बाप की बातों को ध्यान से सुन ली। बचपन में गांव में पला बढ़ा, उच्च शिक्षा प्राप्त कर भी गांव के रीतिरिवाज़ों को नहीं छोड़ता है। उसके गुरु ने उसे अच्छी पकड़ सिखाया है। अक्सर गुरु उसकी बातों को न सुनकर अपनी बात कह देता। राजू जब भी गांव की संस्कृति की बात करता है। गांव में लोग किस तरह दिनभर व्यस्त रहता है। खेत खलिहान, गाय, भेड़ बकरियों, दिन भर घास फूस इकट्ठे करते लोग किस तरह दिनभर व्यस्त रहते हैं।

राजू कहने लगा "मुझे भी इन कार्यों में काफी दिलचस्पी है। जब भी गांव जाता हूं। मैं डोग्रियों में जाता हूं पशुओं को चारा देता हूं। खेतों में फसल, फलों पर स्प्रे भी करता हूं।"

मास्टर जी ने कहा, "जब तुम्हारे पास सबकुछ है तो जहां थे वहीं रहते। यहां तुम्हारा दिमाग खराब होगा। यहां तुम पैसे कमाने के चक्कर में आते हो। गुजारा तो तुम वहां भी कर सकते हो।" मास्टर जी, किसी तरह उसका ध्यान पुस्तकों की ओर बढ़ाना चाहते थे। ताकि पढ़लिखकर सुसंस्कृत बन सके और प्रचारित रूढ़ियों को छोड़ सके।

मास्टर जी ने कहा, "तुम लकीर के फकीर हो, अपनी बात नहीं बदलते।" राजू भी कहने लगा, "मास्टर जी लकीर के फकीर हैं। दिनभर कुछ न कुछ लिखते फिर हमें सुनते।कविता, कहानी, लेख लिखते रहते। मुझे भी उत्सुक करते, तुम भी इस तरह काम करो। घर का कामकाज हमें न सुहाए, ये कठिन डगर है।"

" तुम्हारे मां बाप ने इन कठिनाइयों से उभरने के लिए तुम्हें उच्च शिक्षा की ओर बढ़ने का अवसर दिया है तुम इसे मत गवाओं नहीं तो जाकर तुम भी वैसे ही काम करोगे। हम सभी अपने रितिरिवाज से वाकिफ हैं जब जाओगे तो अपना सकते हो।"

राजू कहने लगा, मास्टर जी, "आप लकीर के फकीर हैं।"


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