जीवन में सुख कहां ?
जीवन में सुख कहां ?
बीते पलों को याद कर बबलू सोचने लगा पहले भी स्थिति ऐसी थी। समय के बदलाव के साथ सुख दुख भी चलता रहा। बबलू अपने परिवार के साथ किराए के मकान में पिछले दस सालों से रह रहा था। बच्चों की पढ़ाई लिखाई करने शहर में ही रहता था। दवाइयों की कम्पनी में सुबह से शाम तक व्यस्त रहता था। पत्नी भी बच्चों को स्कूल छोड़ने के बाद किसी दुकान में काम किया करती थी। दोनों की मेहनत से बड़ी मुश्किल से घर का खर्चा पूरा होता था।
बच्चों को पढ़ाया लेकिन नौकरी नहीं मिली। बड़ी मुश्किल से लिपिक की नौकरी मिली। वो भी दूर दूसरे शहर में किसी को अपने पास रखने में असमर्थ था। सामाजिक बन्धन से मुक्त होकर अपने कार्य में व्यस्त रहने लगा। जीवन की कठिन डगर बाप बेटे दोनों पर बरसने लगी। शादी भी कर सकता था लेकिन डेलिवेज की नौकरी थी। रिंकू भी जीवन मूल्य को जानता था। थोड़े रुपयों में गुजर बसर करना उसे मालूम था।
एक दिन उसे अचानक अपने मां बाप की याद आती रही कि कैसे गुजर बसर किया करते थे। बबलू सोचता अब रिंकू की शादी करवा लूं। उसकी शादी करवा ली। फिर कैसे तुम सब रहोगे शहर में गांव का कामकाज भी छोड़ रखा है जब घर जाओगे तो कल को क्या खाओगे। बबलू अपने बेटों से कहने लगा। शादी में खर्चा भी बहुत हुआ। अब शहर में गुजर बसर करना मुश्किल होने लगा। किराया, पानी का बिल, बिजली बिल का खर्चा पूरा करना मुश्किल हुआ। फिर कभी दुकान के राशन की उधारी रहती थी।
पत्नी ने भी घर आने का मन बना लिया। गांव में पुरखों को जितनी जमीन बची वह भाइयों और बिरादरियों में टुकड़ों में बांट दिए।
बबलू कहने लगा जीवन में सुख कहां ? शहर तो शहर गांव भी दूर लगने लगा। जैसे तैसे गांव में गुजर बसर तो होने लगा। लड़का रिंकू और टिंकू भी खूब मेहनत करने लगे। पत्नी बीमार रहती थी। बच्चों और पोतू पोतों के साथ परिवार का खर्चा भी बढ़ गया। बबलू का काम तो दिन रात मेहनत करने के बाद बच्चों के साथ ही बीतने लगा। जो थोड़ी बहुत जमीन जायदाद बची है उसी में जेब खर्च और जीवन का गुजारा करने लगे। बच्चे बबलू की तरह शहर में रहने लगे। मां बाप की सुविधा के लिए घर छोड़ गए। जीवन में सुख कहां , दुख भी साथ साथ चलता है। समय के अनुसार चलना ही नियति है।