Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Bhawna Kukreti

Abstract

4.8  

Bhawna Kukreti

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"कोरोना लॉकडाउन-12(आपबीती)"

"कोरोना लॉकडाउन-12(आपबीती)"

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फिर सुबह अफरातफरी सी मची है मेंरे घर में।इन्हें निकलना है,कुछ सामान कल लाना बाकी रह गया था तो ये निकले हैं,पास की दुकान तक।मम्मी जी पूछ रहीं है कि दोपहर का खाना भी बना दें अभी? ये साथ ले जा लेंगे।वो झटपट नाश्ता तैयार करने मेंं व्यस्त हैं सो अभी बेटे के सोने की तरफ ध्यान नहींं है वो मस्ती मेंं सोया पड़ा है।जल्दी-जल्दी मेंं शायद गिलास गिर गया है ।मम्मी जी ,"उन्ह. दिन भर ठं ठं" कहते हुए कढ़ाई मेंं सब्जी चला रही है।लेटे-लेटे महाभारत की संजय जैसी हो गयी हूँ।बिना उस जगह हुए, सब देख सुन रही हूँ।आवाजों से अब अच्छी पहचान हो गयी है।ह ह ह क्या रे कोरोना जी आपने तो ये योग्यता भी विकसित कर दी मुझमें!!!


ये आ गए हैं , बेटा फिर नाराज हो गया है।कल रात इन्होने ऑफिस बात करते उसके साथ आज खेलने को शायद हाँ कह दिया था।मगर जाना है, कुछ संवाद सूत्र जानबूझ कर कोरोना को लेकर गलत खबरें भेज रहे है जिस से धार्मिक असंतोष बढ़ सकता है।आज उनके साथ कानफ्रेनसिंग करेंगे ये। शुक्र है सबके पास स्मार्ट फोन हैं नहीं तो सब ऑफिस आ जाते।पर बेटे को ये सब नहीं सुन ना, "हाँ क्यों कहा था आपने फिर ?" उसकी सुई इसी पर अटकी है।इधर मम्मी जी नाश्ता करने को कह रहीं है, बेटा अलग मुह फुलाये है,फोन पर स्टाफ बात कर रहा है ।ये इयरफोन कान मेंं लगाये ,एक हाथ से बेटे का सिर सहला रहे हैं ,एक हाथ से सैनिटाइजर, ग्लव्स वगैरह बैग मेंं रख रहे हैं।


ये जाने लगे थे,मुझसे मिल चुके थे फिर भी मेंं उठ कर बाहर चली आयी इन्होंने मम्मी जी और बेटे के सामने ही गले लगा लिया।बोले "उठना जरूरी था क्या? सुधरी नहीं हो अभी भी, अपने मन की ही हो ,माना करो यार बात ,अब मत उठना ज्यादा।" मम्मी जी हँसने लगी। बेटा बोला "गुड गुड पापा" । ये नीचे चले गए तो बोलीं, "जाओ बालकनी मेंं जा कर देख लो..।"


मम्मी जी अब पूजा स्थान पर है।" हे दुर्गा!! बाबू लोगों की रक्षा करे,सरस्वती माता विद्या दें।"


गुड्डी आ गयी है,उसने भी कल रात आशा के दिए जलाए। मम्मी जी उस से कह रहीं है लोग कह रहे हैं कि गर्मी बढ़ेगी तो ये रोग खत्म हो जाएगा।अब गर्मी बढ़ ही रही है।उसको चाय के लिए कह रही हैं मगर वो मना कर रही है कह रही है कि घर से सीधे चाय पी कर ही निकली है।


मम्मी जी मेंरे कमरे मेंं डस्टर ले कर आयी हैं,आज मेंरे कमरे की अच्छे से सफाई होनी है।मैं जब से पड़ी हूँ तब से सिर्फ एक बार मैंने करी थी फिर कर नहींं पाई और हाउस हेल्प को इज़ाज़त नहींं है इसकी। मम्मी जी हैरान है ,उनको जगह जगह से 1, 2, 5 और 10 और पुराने सिक्के मिल रहे है। बोल रही हैं "ये क्या है भावना!!? पैसे कहाँ कहाँ डाल रखी हो।ऐसे रखा जाता है क्या?!लक्ष्मी की कद्र की जाती है" बेटा शिकायती लहजे मेंं मुहँ औऱ आवाज बना-बना के बोल रहा है "पापा भी टोकते हैं पर मानती नहीं, कहीं भी रख देती हैं।फिर ढूंढती रहती हैं ....यार! मैने कहां रख दिया,यहीं कहीं तो था!" अब मम्मी जी को क्या बताऊं की खो न जाय मुझसे, इसलिए जहां ठीक लगता है दबा के रख देती हूँ ,आदत है।पर फिर भूल भी जाती हूँ ,शायद ये आदत गलत है। एक बार अजीम प्रेम जी की वर्कशॉप के लिए देहरादून मेंं एक होटल मेंं रुकी थी। वहां भी लगा था की शायद हंसी उड़ी थी मेंरी, इस आदत पर, जब रूम छोड़ते समय उचक-उचक कर रखे पैसे खोजने लगी थी। खैर बेटा मुझसे भी नाराज हो गया है ।उसे लगता है कि मैं रुकने को बोलती तो पापा जरूर रुकते पर मैने कहा नहींं।अब लेटे लेटे उसको मनाने की जुगत सोचनी है।चलो इस काम में कुछ समय तो कटेगा।


अभी बेटा जी कैरम ले आये।बोले, मेंरे साथ खेलो।कोई जुगाड़ निकालो, आप तो एक्सपर्ट हो न रास्ते निकालने के ?! मुझे ज्यादा बैठना खड़ा होना मना है।मेंरी पिछली नादानी की वजह से अब सबकी एक नजर मुझ पर होती है कि मैं क्या कर रही हूँ।सो बैठ तो सकती नहीं।फिर रास्ता निकला कि मैं लेटे-लेटे स्ट्राइक करूँगी और स्ट्राइकर को रखने का नियम स्ट्रिक्टली मुझ पर लागू नहीं होगा।होना क्या था ,गेम हार गई ,बेटे जी संतुष्ट की माँ ने खेला और वो खेल मेंं जीत गया।अब वो पास लेटा गाना गा रहा है " वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता है..."


ये घर ऐसा है कि सारे कमरों के दरवाज़े एक ही जगह खुलते हैं। तो किसी भी कमरे मेंं कोई बात हो तो लोकडाउन से पहले बस इतना लगता था कोई बोल रहा है पर अब इतना सन्नाटा है कि शब्द-शब्द साफ सुनाई पड़ते हैं। अजीब सा सन्नाटा है ये ।


अभी मुझे पता पड़ा कि देहरादून मेंं कोरोना पॉजिटिव बढ़ गए है ।एक सहेली ने थोड़ी देर पहले वहां का डेटा भेजा। अपनों की सोच कर एक दम से सिहरन सी दौड़ गयी। दोस्त और रिश्तेदारों को फोन करने को हुई पर पहली ही कॉल में ही पता चल गया नेटवर्क का बुरा हाल है,उधर से कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था ।फिर व्हाट्सएप्प पर हाल मिला तो सुकून हुआ। तभी मम्मी जी आईं और मैने फिर डांट खाई । फोन लगाने को बैठी थी, बैठी रह गयी और दवाई खाना भी भूल गयी थी। मुझे फोन पर समय कम करने को कहा है ।प्यार-डांट और सज़ा तीनो घुले मिले एक साथ...मेंरे भले के लिए ।ज़िन्दगी सच में अजीब है न?!


बेटा अब बहुत बेचैन हो गया है।नीचे बच्चे खेलते है तो उसे बैचेनी होती है।आज कह रहा था कि अब मैं चला जाऊंगा नीचे खेलने।बड़ी मुश्किल से उस से कहा मेंरे साथ चलना।जब मेंरा बेड रेस्ट पूरा हो जाएगा, अभी बस 3 दिन और हैं। बहुत उदासी के साथ राज़ी हुआ।अब वाकई उसके लिए मुश्किल हो रहा है।


टी वी पर कोरोना को लेकर मौतों के आंकड़े बता रहे हैं।बांग्लादेश मेंं 88 हज यात्रियों की मौत, मम्मी जी ने तुरंत चैनल बदल दिया है।उनका मानना है कि नकारात्मक बातें और नाम न सुनते हैं ,न दुहराते हैं।


अभी देखा ,आज फेस बुक पर मेंरे पेज़ भावना की पोस्ट्स पर 1000 लाइक्स हो गये।मेंरे फेस बुक के दोस्तों की मेंहरबानी है। वो उत्साह न बढाते तो मैं पेज नहींं बना पाती।पता नहीं जो भी वहां लिखती हूँ वो लेखन के हिसाब से औसत है भी या नहीं।पर सोच रही हूँ कि ये कोरोना का लॉक डाउन और मेंरी नस का दबना कष्टकारी तो है लेकिन इसी की वजह से जो समय मिला उस से स्टोरी मिरर, FB और अन्य साइट्स पर एक्टिव हो पाई।वरना नार्मल दिनों मेंं इतना समय शायद न मिलता। मेंरे दाएं तरफ कुछ दूरी पर दीवार से लगी मेंरी माँ की तस्वीर मुस्करा रही है।


इनका फोन नहीं मिल रहा ,आज इनसे सुबह से ठीक से बात नहीं हो पा रही है। बहुत तो बहुत ही व्यस्त होंगे। कितना वर्क प्रेशर होगा और वहां न परिवार साथ, न ढंग से खाना पीना ।मुझे पता नहीं क्यों अब बहुत चिंता होने लगी है। ।कुछ देर बाद फिर फोन मिलाऊंगी।


बात हो गयी ,सहारनपुर मेंं 5 कोरोना पॉजिटव मिल गए है। ईश्वर इनको सुरक्षित रखें।अभी-अभी तो बीमारी से उठे हैं।


रात के 2 बज रहे हैं। बहुत नेगेटिव हो रही हूँ। अभी जाने क्या-क्या, कहा-कहाँ लिख आयी हूँ। पता नहीं क्यों इतना भटकती हूँ।सब लोग अपने परिवार के साथ सुख से है और मैं...और ये नींद भी कहीं भटक ही रही मेंरी।ये ही आ जाती तो किसी का क्या जाता?


क्या करूं... ?



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