कोलाहल डायरी 21 दिन
कोलाहल डायरी 21 दिन


"माँ तुम क्या कर रही हो।"
"बेटा रोज का ही काम है, नहा धोकर मैं सबसे पहले भगवान की पूजा ही करती हूँ उसके बाद ही कोई काम।
क्या हो गया बेटा कोई परेशानी है क्या।"
"नहीं परेशानी नहीं, पर इस तरह घर रहकर मैं बोर भी हो गया हूँ और सड़कों के सन्नाटे से भयभीत भी।"
"तुझे कोलाहल की आदत पड़ गई है बेटा।"
"कोलाहल, यही तो ज़िन्दगी है माँ।"
"बेटा, ज़िन्दगी के मायने बदल गए हैं, हमारे समय मे शांत, निर्लिप्त थी ज़िन्दगी, न शोर गुल ना ही दिखावा।"
"तुम्हारा मतलब "
"मतलब यह बेटा हर परेशानी का हल बाहर नही मिलता कभी अपने मे सिमट कर देखो, अपने अंदर भी झांको, बहुत सुंदर है जिंदगी।"
"क्या भगवान हमारी कुछ मदद करेगा "
<p>"वह तो तैयार बैठा है, पर लेने जब कोई जाए "
"मतलब "
"मतलब, भगवान ने कभी किसी का बुरा नही चाहा, उसने सबको देने के लिये ही प्रकृति की रचना की पर यदि हम उसका दुरुपयोग करने लगें तो भगवान का क्या दोष।"
"माँ तुम तो दार्शनिक की तरह बात करने लगीं।"
"बेटा तुझे ऐसा लगता है, मैं तो सीधी, सच्ची बात कहती हूँ, जितना प्रकृति से छेड़छाड़ होगी उतना हमारा नुकसान होगा यदि हम उसके सारे नियम अपना लें तोऑटोमैटिक सब कुछ ठीक हो जाएगा।"
"चल अब लॉक डाउन का दुख मत झेल योग -नियम से कुछ अपने आप मे भी झाँक ले, जहाँ एक सुंदर सकारात्मक सोच तेरी राह देख रही है, फिर तो सन्नाटा टूटना ही है और कोलाहल शुरू होना है तब तक फायदा उठा ले इस जिंदगी का।"