Laxmi Yadav

Tragedy Inspirational

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Laxmi Yadav

Tragedy Inspirational

कलियुग की सीता

कलियुग की सीता

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आज वसुधा का ससुराल में पहला दिन था। अपने बड़े पिताजी के परिवार में पली बढ़ी वसुधा आगे पढ़ना चाहती थी। पर उसके होने वाले पति को आगे पढ़ाई में रुचि नहीं थी इसलिए ससुर ने वसुधा की पढ़ाई पर रोक लगा दी। बारहवीं उत्तीर्ण होते ही उसका विवाह हो गया। सत्रह वर्ष की कमजोर कंधों पर घर- गृहस्थी का बोझ डाल दिया गया। वसुधा बहुत सुंदर तो थी ही संस्कारी व समझदार भी थी। इस नये परिवार को उसने दिल से अपना लिया। दिन भर घर का काम करती। सास उसकी कमियाँ निकालती पर वो कभी शिकायत नहीं करती। अपने बारे में सोचने का समय ही नहीं था। समय का चक्र अपनी गति से चल रहा था। वह अब दो बच्चों की माँ थी पर शराबी, गैर जिम्मेदार और बीमार पति की पत्नी का लेबल लग चुका था। वसुधा के नारित्व में कोई कमी ना होते हुए भी उसके पति ने पर स्त्री गमन किया। जिसकी सजा अप्रत्यक्ष रूप से परिवार ने वसुधा को भोगने पर मजबूर किया। गजब की सहन शक्ति थी उसमें। उसके सारे गहने कभी देवर का कर्जा तो कभी ननद की शादी में बिक गए। पति की मृत्यु के बाद उसने नौकरी करने की जरूरत महसूस हुई। सास ने घर से निकाल दिया। बेचारी अपने बच्चों के भविष्य की खातिर नौकर के रहने वाले घर में रहने लगी। मंगलसूत्र पहनकर ही काम पर निकलती। कई लोगों की सवालिया नजरे उसे घूरती रहती। पर वसुधा अपना स्वाभिमान व सतीत्व दोनों की गरिमा कायम रखती। उसने जीवन में अग्नि को साक्षी मानकर सिर्फ और सिर्फ अपने पति को ही अपना सर्वस्व समर्पण किया था। ताउम्र उसी अग्नि में जलती रही। उसका जीवन ना सुहागन में रहा ना विधवा में। समय बदला, आखिर वसुधा का संघर्ष पूरा हुआ। दोनों बेटे अपने अपने कार्यालय में उच्च पद पर आसीन हुए और वसुधा ने अपने सेवा से निर्वृत्ति ले ली। आज उसके अपने भवन जिसका नाम बच्चों ने "वसुधा सदन' रखा था उसी का गृह- प्रवेश था। सभी रिश्तेदार आये थे। वसुधा ने एक नज़र अपने भवन पर डाली फिर अपने दोनों बच्चों पर और अंत में अपने स्वर्ग वासी पति के चित्र पर जिसने जीवन में कोई सुख ना दिया। वो जाकर अपने कमरे में सुकून की नींद सो गई। ऐसी चिर निद्रा में सोई की फिर उठी ही नहीं........। सुबह उसके सिरहाने उसकी डायरी के पन्नों पर पक्तियाँ लिखी थी---

कलियुग में अब भी जनक सुता,

तनिक सुख ना पाती है, 

पति प्रिया बनने की मृग तृष्णा

अब भी अधूरी रह जाती है....... 



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