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Laxmi Yadav

Drama

4  

Laxmi Yadav

Drama

त्रिशंकु

त्रिशंकु

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सुमन अपने बेटे की विवाह की निमंत्रण पत्रिका लेकर अपने मायके जाने के लिए निकली। उसकी मोटर कार विद्युत गति से आगे बढ़ रही थी। पर उससे भी तेज सुमन का मन अतीत की गलियों में चला गया। उसे अपना बाबुल का आँगन, बारिश की बचपन की मस्ती, सहेलियाँ , विद्यालय और हमारी इमिरीति चाची। क्योंकि सुमन ने उनका भी निमंत्रण पत्रिका रख लिया था। इमिरीति चाची तो बस इमिरीति ही थी। सुमन के माँ की सुख दुःख की साथी। घर मे अचानक कुछ खत्म हो गया चाची से ले लो, बीमार हुए तो डॉक्टर के जाने के बाद नज़र उतारने चाची को बुलाया जाता। तीज- त्यौहार तो उनसे ही पता चलता था। उनके घर हर त्यौहार की तैयारी चार दिन पहले ही शुरू हो जाती थी। फिर त्यौहार वाले दिन चाची खुद सजी धजी, मेहंदी - महावर और पूजा प्रसाद जो भी हो बस इमिरीति चाची का उत्साह देखते ही बनता था। सुमन की सहेली उनकी बेटी पुष्पा थी। दोनों घर एकदम एक परिवार जैसे रहते थे। सुमन और पुष्पा भी हर जगह साथ साथ रहती थी। दोनों के पिताजी प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक थे। अतः सभी काफी समानांतर विचार धारा के थे। इमिरीति चाची को एक बेटा भी था। सुमन का भी भाई था। समय पंख लगाकर उड़ते हुए कब सभी बच्चों को विवाहयोग बना दिया पता ही नहीं चला। इमिरीति चाची का बेटा अब इंजीनियर बन गया था। पुष्पा की पढ़ाई रोककर उसकी कम उम्र में शादी कर दी थी। क्योंकि वो लोग सिर्फ बेटे को पढ़ाना चाहते थे। आखिर इमिरीति चाची के भाइयों ने खूब दान दहेज लेकर अमीर घर की बेटी से शादी करवा दी। चाची को भी बहुत घमंड हो गया था अपने बेटे और बहु पर। समय चक्र में सुमन की माताजी का देहांत हो गया। सुमन के पास इमिरीति चाची आती रहती थी पर उनमें वो पहले वाली बात नहीं थी। उनकी बहु भी आती रहती थी सर पर पल्लू लिए हमेशा खूब गहने पहने हुए। सरला नाम था। सुमन की भी भाभी शशि आ गयी थी। उसके पिताजी ने एक साधारण शिक्षक की बेटी को ही बहु बनाया था। सुमन अभी अपने विद्यालय की गुलमोहर, कनेर , अमलतास और पलाश के फूलों की गलियाँ स्मरण कर ही रही थी कि ड्राइवर ने गाड़ी रोकी। सुमन की तंद्रा भंग हुई तो देखा सामने पति सोमेश् उसे दरवाजा खोलकर उतरने के लिए कह रहे थे। सामने उसके भाई भाभी भतीजी उसके स्वागत में मुस्कुरा रहे थे। सुमन थोड़ा आराम करके शाम को अपनी भाभी को लेकर बड़ी ही उत्सुकता के साथ इमिरीति चाची के घर गयी। 


पर यह क्या? जिस घर की झांकी उसकी यादों की स्वर्ण पोटली में थी ये उसके बिल्कुल विपरीत था। जो द्वार गुड़हल के हरित वृक्ष और तुलसी वृंदावन से स्वागत करता था वहाँ अब आधुनिक बंद गेट लग गया है। सुमन को वो स्वीकार करना मुश्किल हो रहा था। भाभी ने डोरबेल बजाई। सुमन अभी सोच ही रही थी कि चाची क

ा घर तो हमेशा खुला रहता था क्योंकि इमिरीति चाची कभी सोती ही नहीं थी। सुमन अपनी अतीत से बाहर आई देखा किसी अंजान शख़्स ने दरवाजा खोला। अंदर से आवाज आ रही थी " कौन है? " वो लड़की शशि भाभी को देखते हुए बोली "पड़ोसी है " ये सुमन के लिए थोड़ा असहज था क्योंकि वो तो इसे अपनी चाची का घर मानती थी। इतने मे सामने जो महिला धूमिल मेक्सी पहने भीमकाय काया मे आई उसे पहचान की कोशिश करते हुए सुमन के मुँह से निकला " अरे, सरला कैसे हो? " यह सुन कर वो तुरंत पैर छूने शेषांक.... 

और अपनी नौकरानी से दुपट्टा मांग कर ओढ़ने लगी। कह रही थी कि जीजी एक फोन कर दिये रहते। पर सुमन का मन तो अपने बचपन की चाची के पुराने घर आँगन को ढूंढ रहा था। उतनी ही बेसब्री से अपनी इमिरीति चाची को क्योंकि वो कही नज़र नही आ रही थी। सुमन तो सोच रही थी कि चाची सजी धजी आराम से अपने नाती के साथ खेलते हुए मिलेगी। सरला और शशि कुछ अपने नये विषय पर बात कर रही थी। सुमन को घर मे कही भी चाची की उपस्थिति का एहसास नही हो रहा था। सुमन निमंत्रण पत्रिका अपने माँ के स्थान पर चाची के हाथ मे देकर आशीर्वाद लेना चाहती थी। सरला से निवेदन कर वो चाची के कमरे मे ले गयी। पर यह क्या..... 


ये तो वो चाची थी ही नही। जो बालों की लंबी चोटी सदा गजरा के फूलों से महकती थी अब सन् जैसे उलझे सफेद बॉय कट बाल। 

रेशमी रंगीन साड़ी की जगह मैली सी मेक्सि। जो कलाई कभी चूड़ियों बिना नहीं रहती थी, चूड़िहारे से घँटों बैठकर चूड़ी छटवाती थी वो कलाई किसी ठूंठ वृक्ष की तरह अपनी विवशता की दास्ताँ बयाँ कर रही थी। पायल बिछिया विहीन पैर लाचार वृद्धा अवस्था की दुहाई दे रहे थे। जब आँखों में आँसू भरकर सुमन ने अपने बेटे का निमंत्रण पत्र उनके हाथ में रखते हुए चरण स्पर्श किये तो इमिरीति चाची बच्चे जैसी फफक कर रो पड़ी। फिर उठी अपने अलमारी से एक बनारसी साड़ी निकालकर देते हुए बोली " इसे अपने बेटे को लेकर चौक में बैठते समय शगुन में पहनना। " सुमन ने उनसे विवाह में आने का आग्रह किया पर उन्होंने हाथ जोड़ लिया कि अब नहीं आ पाऊँगी। उनसे ही पता चला कि पुष्पा ने दहेज की प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली। जब उनकी बहु अंदर गयी तब उन्होंने मुझे पछताते हुए कहा " काश, मैंने अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर तुम्हारी तरह शिक्षित घर में ब्याह किया रहता या तुम्हारे माँ पिता की तरह दहेज का लोभ ना करके साधारण परिवार की बेटी लाई रहती। ना मैं जी पा रही हूं या मर पा रही हूँ। पुष्पा सपने में आकर कई बार पूछती हैं कि मेरी क्या गलती थी? "


सुमन आई तो इतने उत्साह से थी पर अब दोबारा कभी ना आने की दुआ करते हुए अपने घर की ओर चल दी.... 



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