नया वर्ष, नया सबेरा, नया संदेश
नया वर्ष, नया सबेरा, नया संदेश
आने को तो हर वर्ष नव वर्ष आता ही है। कहने को तो सिर्फ कैलेंडर बदलता है पर हम भी थोड़ा कुछ नया महसूस करते है। सुबह उठकर मंदिर जाते है, अपनी दिनचर्या अलग तरह से निबटाने की कोशिश करते है। युवा वर्ग व्यायाम शाला की ओर जाते नजर आते है। विद्यार्थी वर्ग नये जोश के साथ पढ़ाई की बातें करने लग जाते है। सुबह की सैर में नये सदस्य दिखाई देने लगते है। कुछ लोग वृक्षारोपण में जुटे रहते है। कहने का तात्पर्य सबका नया जोश, नया संकल्प और नव वर्ष से नई उम्मीदें ......
मेरे जीवन के उनचास वर्ष जिम्मेदारी निभाते हुए कब पलक झपकते बीत गए पता ही नहीं चला। बचपन से तरुणाई माता पिता बड़ी बहन की आज्ञाकारी बेटी बहन बनने में बीते। पर वो मेरे यादों की स्वर्ण पोटली के सबसे अनमोल मोती है। विवाह के पश्चात जिंदगी आदर्श बहू की कवायद में गुजरी ,भले वो परिवार आदर्श हो या ना हो। फिर आँचल आँगन में दो लाल का आगमन, फिर से एक आदर्श माँ की भूमिका शुरू। बच्चों में अच्छे संस्कार, अच्छी आदते, नियमित अध्ययन और उनके बाल सुलभ जिज्ञासा का संतोष जनक समाधान। ये सभी दायित्व मुझे पूरे परिवार की जिम्मेदारी को निभाते हुए करने थे। इसमें मेरा लेखन कार्य जो मै कभी रुकने नहीं देती। कितना संघर्ष मय होता है विरोधी व्यक्तित्व की भीड़ में अपने व्यक्तित्व को सिद्ध करना। पर एक ही पंक्तियाँ दूर कही सदा सुनाई देता रहा ' जो दुःख से घबरा जाये, वो नहीं हिंद की नारी ' ......
इसलिए जिंदगी को बड़े प्यार से गले लगाते रहे। ईश्वर ने इसका पुरस्कार मुझे मेरी जिंदगी बेरंग करके दिया। फिर भी कोई शिकायत नहीं किसी से ना ही ईश्वर से।
पर यह नया साल मेरी आज़ाद जिंदगी का पहला साल। तो इस साल से जिंदगी के भूले बिसरे सभी शौक पूरे करने है। आज मैं पचास वर्षीय लड़की हूँ, जिसकी आँखों में अभी भी अपने लिए कुछ सपने है। जिसे आँखें मूंद लेने से पहले पूरे करने है।
आपको भी नव वर्ष के नये सपनों की शुभ कामना......