लाल रुमाल
लाल रुमाल


शिवम अपने माँ बाप को बहुत साल के बाद काफी मनौती के फलस्वरूप प्राप्त संतान था। उसका लालन पालन बहुत ही लाड प्यार से हो रहा था। उसकी माँ सरस्वती उसे एक पल के लिए भी आँखों से ओझल ना होने देती। पर कुदरत का नियम सबके लिए समान होता है।
एक दिन शिवम के पिता चिर निद्रा में लीन हो गए। अब शिवम के समक्ष जीवन की नई चुनौतियाँ थी। अपनी जिंदगी के साथ बूढ़ी होती माँ की जिम्मेदारी भी थी।
समय का पहिया चलता गया.....
शिवम एक सरकारी डाक्टर बनकर अपने गाँव के अस्पताल संजीवनी में अप
नी सेवा देने लगा।
एक दिन वो उसी बरगद के पेड़ के नीचे बैठा जहाँ अक्सर अपने पिताजी के साथ बैठा करता था।
उसने अचानक उपर खोह में नज़र गई जहाँ उसके पिताजी ने लाल रुमाल खोसा था।
उसके पिताजी ने कहा था कि भले लाल रंग क्रोध, जुनून और जोश का प्रतीक है पर इसे जीवन में एक शक्ती के रूप में ही इस्तेमाल करना, माँ दुर्गा सदा तुम्हारी रक्षा करे.....
शिवम ने उस रुमाल को मस्तक से श्रद्धा से लगाकर जेब में रख लिया और देवी माँ की आरती के लिए चल पड़ा.......