केसरिया दावानल
केसरिया दावानल


झुमकी आज बहुत खुश थी. उसके पास नई किताब, नया बस्ता और नवीन गणवेश जो थी. कल से उसे विद्यालय जाना है, ये सोचकर वह बहुत प्रसन्न व रोमांचित थी. अपने भैया को जब गणवेश मे बस्ता लेकर विद्यालय जाते देखती तो सोचती कि वो कब विद्यालय जायेगी? आखिर वो दिन आ ही गया....
झुमकी अपना नया बस्ता अपने सिरहाने रखकर जाने कब सो गई. अचानक कोलाहल मे कोई उसे गोद मे उठाकर भाग रहा था. उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, बस बड़ी बड़ी आसमान की तरफ ऊँची उठती लपटे. ना उसके माता पिता दिखाई दे रहे थे और ना ही भैया. उसने देखा लोग आग बुझाने की पूरी कोशिश मे लगे हुए थे. अंत मे तीन लाशें निकाली गई.जो की झुमकी के माता पिता व भाई की थी.
झुमकी को पड़ोसी खाना दे दिया करते थे. पर उसका अपने परिवार के खो देने की वजह से खाना- पीना सब मुश्किल हो गया. एक दिन झुमकी अपने जले हुए घर मे अपना किताब व क
ॉपी से भरा बस्ता व गणवेश लेकर रो रही थी, क्योंकि सब बुरी तरह जल कर खाक हो चुके थे उसके सपनों की तरह.....
अब झुमकी अनाथालय मे पल रही थी. अभी भी उसके सपनों मे अक्सर दावानल का दृश्य जीवंत हो ही जाता. आखिर एक दिन एक रईस जोड़े ने झुमकी को दत्तक ले लिया. झुमकी का नया नाम था ज्योति.अब ज्योति एक बार फिर नये गणवेश, नई किताबों के साथ नये विद्यालय मे प्रवेश करने जा रही थी.
समय पंख लगाकर उड़ चला.....
अब ज्योति कलक्टर बन गई थी. उसकी नियुक्ति उसके पुराने गाँव मे हुई. दौरा करते समय उसकी नजर अपने दावानल मे स्वाहा हुए घर के अवशेष की तरफ गई. ज्योति ने तुरंत सरकार से अनुमति लेकर प्राथमिक पाठशाला का कार्य आरंभ कर दिया..
अब केसरिया अग्नि के हवन कुंड वाला स्थल विद्या की ज्वाला बनकर ज्ञान का प्रकाश फैला रहा था....