हरित क्रान्ति
हरित क्रान्ति


पारितोष को प्रकृति से बहुत लगाव था। वो चाहता उसके घर के चारों ओर हरियाली ही हरियाली हो। वह प्रति सप्ताह एक वृक्षारोपण स्वयं भी करता और लोगों मे भी हरियाली जागरूक अभियान चलाता।
उसे आज भी याद है,वो जब यहाँ नया रहने आया था तब नजदीक के बगीचे मे कोई नहीं जाता था। क्योंकि वहाँ की हालत बहुत खराब थी। सारे वृक्ष सूख रहे थे, फूल की क्यारियों मे बड़ी बड़ी घास उग आई थी। पौधें जल व उचित देखभाल के अभाव मे पीले पत्तों से लद गये थे। हरियाली तो मानों इस बगीचे से रूठ गई थी । यह दृश्य पारितोष के लिए असहनीय हो रहा था।
उसने अपना बागवानी का सामान लिया और चल पड़ा , अपने हरित क्रांति की ओर.....
उसका जोश देखकर बाकी लोग भी जुड़ते गए। आखिर देखते ही देखते वो पीला दृश्य हरे रंग व रंग! - बिरंगे सतरंगी फूलों मे बदल गया । बच्चे- बड़े- बूढ़े सभी बगीचे मे सुबह शाम जाने लगे। प्रकृति देवी की विशेष कृपा बरसी । बच्चों के लिए भी हरियाली से हर्षित एक छोटा बगीचा और बन गया।
इस सफलता से परितोष बहुत प्रसन्न था। आखिर हरे रंग मे ही जीवन का सुकून है......