कितने झरोखें बंद करूँ?
कितने झरोखें बंद करूँ?


लड़कियाँ पढ़ती रहती है और आगे बढ़ती रहती है।अपनी जहानत से वह किसी बड़े ओहदे पर काम करने लगती है और एक मुकाम पा लेती है। ऑफिस जाने के लिए जब वह तैयार होकर घर से निकलती है तब देवरानी नजरों से ही कह देती है,"घर का सारा काम हमारे पल्ले डाल कर मेमसाब जा रही है तैयार होकर।"
एक प्यारी सी मुस्कुराहट से हाथ हिलाकर वह उस झरोखे को बंद कर देती है जहाँ से वे नजरेें उसका पीछा करती है। ऑफिस में अगर वह टेक्निकल काम करती है तो उसे हर बार प्रूव करना पड़ता है कि वह काम भी जानती है। फिर एक और झरोखा बंद करके वह साबित करती है कि यह पोजिशन उसको सिर्फ औरत होने की वजह से नहीं मिली है।
बच्चों के स्कूल से वापस आने के समय पर वह घर मे फ़ोन करती है तो पुरुष सहकर्मियों की खामोशी बहुत कुछ कहती सी लगती है की घर सँभालो या फिर ऑफिस।बच्चे को कल बुखार था तो दवाई के लिए फ़ोन किया था कहते हुए वह एक और झरोखे को बंद करने की नाकाम कोशिश करती है।
"शाम को जल्दी आना ऑफिस से। मैंने शर्मा फैमिली को डिनर पर बुलाया है।"ऑफिस की हर शाम की वीकली मीटिंग के शेड्यूल के अपने प्रेजेंटेशन को तैयार करते हुए पति को हाँ भरती है। शाम को मेहमानों के लिए खाने की व्यवस्था को लेकर दिमाग मे ढेर सी प्लानिंग के साथ वह तेज कदमों के साथ मेट्रो लेकर घर के लिए चल पड़ती है। घर जाकर सारी तैयारी करने के बाद वह स्माइलिंग फेस के साथ मेहमानों की आवभगत करती है।सब लोग खाने की तारीफ करते है। इस एक झरोखे को वह बंद नहीं करना चाहती।क्योंकि यह उसमे एक खुशनुमा एहसास भर देता है।
एक वर्किंग वुमन बहुत सी जिंदगीयाँ एकसाथ जीती है।और पढ़ी लिखी होने के कारण उससे स्मार्ट मैनेजमेंट की अपेक्षा की जाती है और इस प्रोसेस में न जाने कितने झरोखों को बंद करती जाती है खोलते जाती है...…