Sheela Sharma

Tragedy

4.4  

Sheela Sharma

Tragedy

किसान ना जाने क्यों

किसान ना जाने क्यों

4 mins
194


 ना जाने क्यों सदा प्रसन्न चित्त रहने वाला ,परोपकारी दुबला पतला हड्डी का ढांचा , उसके आगे पीछे चलने वाले मजाक करते ""जरा संभल के, तुम तो हवा के झोंके से ही उड़ जाओगे"" वह झट हंस पड़ता ऐसा व्यक्तित्व था हंसमुख का यथा नाम तथा गुण ।दो-तीन साल से सूखा पड़ने पर सरकार और साहूकार से लिया कर्जा कहां समा गया उसे समझ ही नहीं आता था। वेदनायें घुमड़ती।

 आज छोटू दूध पीने के लिए मचलने लगा तो मजबूरन उसे पानी में आटा मिलाकर देना पड़ा ।मैंने कितना नीच काम किया है। उसे याद आने लगे वह दिन जब उसके घर में खुशहाली थी ।बापू की जिद थी कि वह पढ़ लिखकर शहर में ठाठ से नौकरी करें पर उसे अपनी मिट्टी से अलग होना मंजूर नहीं था ।एक सप्ताह तक तकरार चलती रही बापू ने हर तरह से समझाने की कोशिश की कि वक्त बदल रहा है शहर जाओ बेटा यहां तो नौकर चाकर खेती संभाल ही लेंगे पर वह टस से मस नहीं हुआ।            

उसे क्या पता था कि इन बीस सालों में मानवता तो छोड़, प्रकृति भी साथ नहीं देगी। खेती का प्रकृति के साथ गठजोड़ है वे एक दूजे के बिना अधूरे हैं ।उसे लगा सुख दुख तो सभी के साथ हैं पर हमारे ऊपर कुछ ज्यादा ही वज्रपात हो रहा है।

दिन रात उसकी आंखें आकाश की ओर ताकती धुंधली हो चली थी पर एक बूंद भी पानी का छींटा पड़ता दिखाई नहीं देता । उलट मन में झंझावात शुरू हो जाती ।कर्जे के तगादे आने शुरू हो गए थे पर कहां से कैसे चुकाये? जैसे तैसे थोड़ा बहुत अनाज होता भी था। वह अपने परिवार का पेट काटकर सरकार को या बाजार में बेचता तो कीमत भी कम मिलती। दलालों की ओर टुकुर टुकुर देखते उसकी सोच और गहरी हो जाती हमसे तो यह दलाल अच्छे हैं बैठे-बिठाए दो तीन गुना इसी अनाज पर कमा लेते हैं ।हमें तो खून पसीने का भी पैसा नसीब नहीं होता । कई बार हंसमुख के मन में ख्याल आता क्या करूं मर जाऊं ?


मरा भी तो नहीं जाता, पीछे परिवार है उन का क्या ?हिम्मत रखनी होगी फिर ऊर्जा से भर उठता ।शायद कल बारिश आ जाए प्रकृति को हमारे ऊपर रहम आ जाए।

 

मेघ बरसने लगे गांव वाले खुशी से झूम उठे थे।किसान अपने बैलों को लेकर जोतने बुवाई का काम करने दौड़ पड़े ।हंसमुख भी अपने बैल रौशन के साथ खेत की तरफ जा पहुंचा ।चारों ओर लोगबाग नाचते गाते हुए, बीज बो रहे थे ।वहीं हंसमुख अपने होश खो बैठा एक ह्रदय विदारक चीख के साथ ,जैसे-जैसे उसकी आत्मा कलप, बिलख रही थी बरखा भी झमाझम बरस रही थी। ऐसा लग रहा था मानो मेघ भी उसके साथ रुदन कर रहे थे ।

           सूखे की वजह से किसान टूट चुके थे गरीबी से भूख से इंसान ही नहीं पशु भी उसके गवाह थे ।हंसमुख के पास जोड़ी में से एक ही बैल रौशन बचा हुआ था जिसे वह बच्चे जैसा जी जान से प्यार करता था ।उसका परिवार भले ही पानी पीकर रह जाए पर बैल के चारे की ,उसकी भूख पूरी करने की कोशिश करता ।कहां बैल कहां इंसान ,रौशन बेहद कमजोर हो चुका था ।

बैल को लेकर वह खेत तो जा पहुंचा।पर हंसमुख का मन बैठा जा रहा था उसका रोशन ठीक से चल नहीं पा रहा था ।आज उसकी आंखों में पानी भी आ रहा है ?वह समझ नहीं पा रहा था शायद बचवा कुछ कहना चाहता है ।

       खेत की जुताई के दौरान वह रौशन से बातें भी करने लगा" बचवा तुम तो बहुत बहादुर हो बस थोड़ा सा और इस बरस भगवान ने चाहा तो खूब खुशहाली आएगी ।हां पोले पर तुम्हारे लिए कौड़ी की माला बनवाऊंगा ।तुम्हें बहुत अच्छी लगती है ना? दूसरों के गलों में देखकर तुम्हें भी लगता था कि मेरे गले में ऐसी माला हो ।देखना मैं तुम्हें ऐसा सजाऊंगा , गांव में सबकी नजर तुम पर टिकी रहेगी हां काला टीका जरूर याद दिलाना कहीं मेरे बचबा को नजर लग गई तो?खाने मे पूरनपोली भी इतनी होगी तुम्हारा जबड़ा चबा चबा कर थक जाएगा पर वह खत्म नही होगी ।

 देखना इस बार दीपावली में हमारे घर में भी रोशनी होगी। हां तुम्हारी पसंद का मीठा होगा। मुझे पता है तुम्हें क्या पसंद है पर दो-तीन साल से हम तुम्हें खिला नहीं पाए , पर तुमने मांगा भी तो नहीं? तुम बोलते नहीं तो क्या मुझे पता है तुम बहुत समझदार हो, सब जानते हो अब तुमसे कुछ छुपा भी तो नही, दीपावली पर जी भर के खाना।

वह भूल गया था कि वह खेत जोत रहा है अचानक उसको झटका लगा , अनियंत्रित होने पर वह भोंचक रह गया ।जल्दी से रोशन के शरीर से बंधे हल को खोल, बाल्टी लेकर वह पानी भरने दौड़ पड़ा। वापस आकर जो दृश्य देखा उसका दिल तड़प उठा ।बचवा लेटा था सदैव के लिए ना उठने के लिए ।जिसके कारण वह घर के दीए जलाने के सपने देख रहा था वह रोशनी ही उसे अंधेरे में कर गई थी।

 आज हंसमुख ने सोचा भी ना था मरने के बारे मे, पर रौशन के जाने का सदमा बर्दाश्त न कर सका। उसने भी अपने प्राण त्याग दिए।यह एक ऐसी बारिश थी जहां उस गांव में कई घरों में रोशनी आई ,और नई उम्मीद भी लाई लेकिन एक घर ऐसा भी था जिसका दीपक और उसकी बाती दोनों बुझ चुकी थी 

ना जाने क्यों एक किसान, जो हर भारतवासी का , अन्नदाता है वो ही अपना पेट काटने के बावजूद मरने ,आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाता है।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy