ज्योति परमार्थ की
ज्योति परमार्थ की


आज दिन बोझिल सा लग रहा था।मद्रास से दिल्ली के लिए जाने बाली ट्रेन स्टेशन पर आ गई थी ।कोच में काफी चहल-पहल थी। सभी अपनी अपनी सीट नंबर देखने की कोशिश कर रहे थे। दूसरी तरफ से जोर जोर से बोलने की आवाज सुनते ही मैं मेडिकल किट लेकर दौड़ पड़ी शायद शर्मा अंकल की फिर से तबीयत खराब हो गई।
अंजान लोगों को अपनी तरफ देखते हुए मुझे अपनी स्थिति का एहसास हुआ। यह मुझे क्या हो जाता है ?शर्मा अंकल को गए हुए पूरा एक साल हो चुका है फिर भी जब भी मैं दिल्ली जाती हूं। टिकट इसी कोच की लेती हूं , इस आशा से शायद शर्मा अंकल आ कर चुपचाप मेरे पास बैठ जाएंगे ।उनके प्यार, की छांव तले सफर कट जाएगा ।वह अंकल के मृदुल रेशों के तानेबाने बुनने लगी ।
उस दिन भी ऐसा ही शोर शराबा था ।ट्रेन रफ्तार पकड़ते ही माहौल थोड़ा शांत हुआ तभी "कोई डॉक्टर को बुलाओ जल्दी से"पुकार के आते ही लोग उसी दिशा में दौड़ लिये ।मैंने लोगों को हटाते हुये कहा मै डॉक्टर हूं मुझे जान दो। सामने लेटे हुए मरीज को देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गई शर्मा अंकल लेटे हुये थे ।उनकी क्षीण काया को देखकर कलेजा मुंह को आ गया। अपने स्वास्थ्य के लिए सदैव सचेत रहने वाले इंसान की आज ऐसीहालत? उनका चेकअप कर , इंजेक्शन लगाकर मैंने आंटी की तरफ देखा जिनके चेहरे पर अभी भी घबराहट झलक रही थी ।
बहुत सी बातें दिमाग में खलबली मचा रही थी पर हमारे बीच गहरा सन्नाटा छाया हुआ था। सभी अपनी अपनी जगह चले गए थे ।कुछ समय बीत जाने के पश्चात उन्हें होश आया ।उनके चेहरे पर चिर परिचित मुस्कान उभर आई ।मैंने गौर किया उनकी मुस्कान ने ही आंटी के अंदर उत्साह भर दिया था ।वह एकदम जोश उत्साह से अतीत के किस्से सुनाने लगी ,जब मेरे पापा शर्मा दंपति के अर्थात अंकल के पड़ोसी थे ।तब अंकल का मुझ पर विशेष दुलार रहता था ,वहअपनी जिंदगी में बेटी की कमी ,मुझ पर प्यार लुटा कर पूरी किया करते थे ।
"आंटी जी आप लोग एकदम विदेश कैसे चले गए और यहां कब आए "?मैंने पुरानी यादों के तार जोड़ने चाहे"
" बस बेटी जवानी में पैसे की चकाचौंध खींच लेती है पर समय के साथ-साथ ये नशा उतर ही जाता है और आपको अपनी देश की मिट्टी की सौंधी महक आने लगती है । हम भी उसी महक से खिंचे हुए वापस लौट आए "
पुरानी यादों के छोटे मोटे किस्से याद कर हम आपस में काफी देर तक हँसते खिलखिलाते रहे ।बातों बातों में मैंने वीरेंद्र एवं सुरेंद्र भैया के विषय में पूछा दोनों नजर नहीं आ रहे? आपके ही साथ होंगे क्या दूसरे कोच में जगह मिली?
एक पल को वातावरण में निस्तब्धता छा गई। मुझे लगा शायद मैंने कोई गलत बिषय छेड़ दिया था आंटी ने तुरंत बात संभाली " वीरेंद्र विदेश में है अपनी पत्नी व बेटे के साथ और सुरेंद्र यहीं मुम्बई में ,उसका एक बेटा है पत्नी इंजीनियर है दोनों जॉब करते हैं " "अरे वाह !तब तो आप दादा दादी बन चुके आपको देखकर उम्र का पता ही नहीं चलता "
मैंने चुहल करते हुए वातावरण को फिर से हल्का करना चाहा ,पर दोनों गंभीर वार्ता के मूड में आ गए थे "'उनके भेजे पैसों से ही इनका इतना महंगा इलाज डायलिसिस इत्यादि संभव हो पा रहा हैं " आंटी ने कहा
" पर यहां अंकल की देखरेख कौन करता है '? मैंन जिज्ञासावश पूछ ही लिया
"यहां नागपुर में इनका पूरा परिवार है सभी सम्भाल लेते हैं ।वीरेंद्र और सुरेंद्र से हमारी वीडियो चैट से बात हो जाती है। दोनों ही अपने पापा के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहते हैं । वीरेंद्र का कहना है कि वे देखाबे के लिये आने-जाने में पैसा बर्बाद नहीं करना चाहते बल्कि उसे पापा के इलाज में लगाना चाहते हैं!"
मैं पूछना चाहती थी क्या वह अपने बेटों की इस सोच से सहमत है?।शायद अंकल को मेरे मनोभावों से पहले मेरे मन में घूमते प्रश्नों का पूर्वाभास हो गया था अंकल कहने लगे उनकी सोच प्रैक्टिकल है ।मैं उनकी सोच का सम्मान करता हूं बेटी! बीरेन्द्र ने तो यह भी कहा कि यदि हम लोग वहां इलाज करबाना चाहे तो सुरेंद्र हमें वहां ले जायेगा,''
"तो फिर आप लोग चले क्यों नहीं जाते"? लोग तो इलाज के लिए विदेश जाते हैं और आपका तो वहां घर ही है "प्रत्युत्तर में आंटी अंकल को देखने लगी। मैं समझ गई वे वहां नहीं जाना चाहते।
एक गहरी सांस भरकर अंकल ने बोलना शुरू किया "मेरा दर्द अब लाइलाज हो चला है। वहां इलाज से कोई फायदा होगा ऐसी कोई गारंटी नहीं है और हो गया तो क्या होगा ?ज्यादा से ज्यादा छह महीने और जिंदा रह लूंगा ।पर मेरी नजरों में सांस लेना जिंदगी नहीं है। क्या करूंगा इन बढी़ हुई सांसो का ,जिनमें बेबसी ,लाचारी ,अबहेलना की महक होगी? मैं अपने परिवेश में अपनों के बीच अन्तिम सांस तक रहना चाहता हूं "'? मैंने देखा वह बोलते हुए हांफने लगे थे ।आराम करने की सलाह देकर, मैं अपनी जगह वापस आकर बैठ गई ।
तभी आंटी आई शायदअकेले में कुछ बात करना चाहती थी" बच्चे इनकी मन:स्थिति नहीं समझते ।यहां रहकर सबके बीच में यह अपनी बीमारी भूल जाते हैं जैसे अभी तुम्हारे संग भूल गए थे । तुम्हें नहीं पता हम यहां पिछले पांच सालों से रह रहे हैं"
"मैं बिल्कुल हैरान थी "आपने इसके बारे में हमें कुछ बताया भी नहीं इतना पराया कर दिया "?
"बेटा बस यूं समझ लो किडनी की इस बीमारी ने ,डॉक्टरों को दिखाने के अलावा मुझे और कुछ सोचने ही नहीं दिया ।खैर अब गिले-शिकवे छोड़ो ,हम मिल ही गए तो अब नहीं बिछड़ेंगे" ।
बीच-बीच में मैं अंकल को जा जा कर देख भी रही थी ।रास्ते में मुझे उनकी तबीयत ठीक नहीं लगी तो आंटी ने नागपुर स्टेशन पर उतरने का फैसला कर लिया । ।वह अकेले ही उतर जाना चाहती थी क्योंकि नागपुर ही उनका अस्थाई निवास स्थान था। पर अंकल की तबीयत देखते हुए मैं जबरन उनके साथ उतर पड़ी ।हम कैब में बैठ गए । कैब के रुकते ही खिड़की का शीशा उतार कर मैंने देखा पर ये क्या !आस पास कोई हॉस्पिटल नहीं बल्कि सामने गेट पर एक बोर्ड टंगा दिखा जिस पर लिखा था मदर टेरेसा अनाथ आश्रम । अंदर कुछ बच्चे खेलते हुए नजर आ रहे थे। हमें देख कर अंकल आ गए अंकल आ गए चिल्लाते हुए दौड़कर आये और उनका हाथ पकड़ कर सहारा देते हुये उतार लिया ।उन्होंने हाथों हाथ सारा सामान लिया और अंकल को भी ले जाकर बैड पर लिटा दिया ।
"आप उनके साथ है मैंने आपको पहली बार देखा"। "जी सर" उनकी वृद्धावस्था देखते हुए मैंने अनुमान लगाया कि यहां के संचालक होंगे। "सर क्य आप इन्हें जानते हैं"? "हां क्यों नहीं बहुत अच्छी तरह से "।
"क्या आप इनके बारे में मुझे कुछ बता सकेंगे"? मैं अपने आप को रोक नहीं सकी "हां हां क्यों नहीं "।वृद्ध व्यक्ति कहने लगे "ये यहाँ पहली बार चालीस साल पूर्व आए थे ।आश्रम की खराब हालत देखकर बिना कुछ बोले चले गए, फिर कुछ दिनों बाद , पांंचसौ का चेक देकर और सब बच्चों के कपड़े दिला कर चले गए ।तभी से साल में दो बार यहां चैक के साथ बच्चों के लिए चॉकलेट कॉपी किताबें खेलने की सामान भिजबाने का यह सिलसिला सालों साल चलता रहा। हमने कई बार शर्माजी से कहा भी ,इसके बदले दीवार पर टंगी डोनर लिस्ट में अपना नाम तो लिखवा दीजिए ताकि लोगों को पता चले आपके बारे में ,उन्होंने मना कर दिय। पांच साल पहले यहां बीमारी की हालत में आये तब से इनकी देखभाल हम कर रहे हैं " बातचीत करते हुए हम कमरे तक पहुंच गए। मुझे आश्चर्य में देखकर शर्मा अंकल कहने लगे "तुम्हारे मन में बहुत से सवाल उठ रहे होंगे । मैं बताता हूं। "इक्कीस साल की उम्र में ग्रेजुएट होने के बाद नौकरी की तलाश करते हुये मैं एक दिन यादों को तरोताजा करने के लिए पुराने स्कूल के सर्टिफिकेट वगैरह अलमीरा से निकाल रहा था, जो मम्मी ने बड़े जतन से संभाल कर रखे थे। उनके बीच पीला पुराना सा कागज जमीन पर गिरा ।उस दिन उस कागज के टुकड़े ने मेरी दुनिया हिला कर रख दी ।उस पर अठारह साल पुराना अनाथ आश्रम का पता था जिस पर यहां का पता मेरे मम्मी पापा के नाम के साथ लिखा था कि वह एक तीन साल के बच्चे को गोद ले रहे हैं ।
मैंने किसी को कुछ नहीं बताया और दोस्तों के साथ घूमने फिरने का बहाना लेकर अनाथ आश्रम देखने आ गया। यहां आकर पता चला कुछ महीने की उम्र में ही मुझे इस अनाथालय के गेट पर कोई छोड़ गया था ।तीन साल तक मैं यहां पला बढ़ा फिर पापा ने मुझे नई जिंदगी दी। उन्होंने मुझे ना तो कभी इस बारे मे बताया ,ना इस बात का जिक्र कर एहसास दिलाया कि मैं उनका अपना खून नहीं हूं। मैंने भी उन्हें यह भी पता भी नहीं चलने दिया कि मुझे सब कुछ मालूम हो चुका है ।उन्हें लगता था मैं कुछ समय छुट्टी लेकर हर साल दोस्तों के साथ घूमने के लिए जाता हूं ,पर मैं यहां आता था ।
सच बेटी !मैं क्या कोई भी इतनी बड़ी उम्र में अचानक पता चलने पर कि मैं कौन हूं मुझे जन्म देने वाले माता पिता मुझे यहां क्यों छोड़ गये ,क्या मैं किसी के शोषण धोखे का नतीजा हूं या फिर किसी शर्म की वजह ? । दिल में तूफान खड़ा करने वाले ऐसे कई सवालों के बवंडर में मैं फंस गया था ।।
जिंदगी ने एक अजीब मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया ।जहां एक तरफ मेरा अस्तित्व है तो दूसरी तरफ अस्तित्व विहीन भी हूं ।सोचता था भाई बहन भी होंगे और शायद जिंदगी मैं उनके पास से गुजर भी लूंगा पर कभी पहचान नहीं पाऊंगा ।इन सवालों के जवाब के लिए दो साल तक मैं भटकता रहा ,शराब के नशे में भी डूब गया ।
एक दिन मैंने सोचा मैं यह क्या कर रहा हूं बजाए यह सोचने के मैं कितना खुश किस्मत हूं, मैं कैसे हालात से निकलकर आज इतनी अच्छी जगह हूं और फिर भी शराब में डूब रहा हूँ क्यों?फिर इन सवालों से समझौता करने का निश्चय कर लिया। यहां मन नहीं लगा तो विदेश चला गया । नियमित रूप से भारत में रुपये भेजते देखकर बच्चों ने पैसे भेजने का अर्थ ही गलत निकाल लिया ।उनकी निगाह में मेरा यहां भी एक परिवार है जिसके लिए मैं पैसे भेजता हूं ।पत्नी के दिमाग में भी उन्होंने यही जहर भर दिया था ,जिंदगी नरक बन गई । मजबूरन मुझे इसको बताना पड़ा कि मैं यह पैसा अनाथ बच्चों के लिए भेजता हूं। चाहो तो फोन करके पूछ सकती हो ।यह भी सवाल जवाब करती रही आखिर क्यों भेजते हैं? कुछ समय बाद मुझे निरुत्तर देख मुझ पर विश्वास कर लिया ,पर बच्चों ने चरित्रहीन ही समझा। मेरी ही पैसा फिर भी मेरी अव हेलना ।मैंने हालात से समझौता भी कर लिया था ।लेकिन जब मुझे इस बीमारी का पता चला तो उनके आश्रित होने की बात मुझे गंवारा नहीं थी। जो मुझे पूरी जिंदगी समझ नहीं सके ,उनसे क्या आशा करता ।अपने अनाथ होने की बात आज सिर्फ मैं तुम्हारे साथ ही शेयर कर रहा हूं, तुम्हारी आंटी को भी पता नहीं है ।देख रही हो यह बच्चे !मेरे ही समान यतीम है ।अगर मैं इनके लिए कुछ करता हूं तो कोई एहसान नहीं है ।मैं नास्तिक जरुर हूं ,पर मेरे लिए मेरे माता-पिता भगवान से कहीं ऊपर हैं ।उन्होंने मेरे लिए जो किया ।वह मैं इनके लिए करूंगा क्योंकि जिसने तकलीफ और दर्द को झेला है वही उसे समझ कर घाव में मलहम लगाने का काम कर पाएगा और किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता ।यह उसूल है इस समाज का।"
उनकी आंखों से आंसू बहते जा रहे थे और गला अब तक सूख चुका था । मैं क्या बोलूं कुछ समझ नहीं आ रहा था ।मेरी ट्रेन का भी टाइम हो गया था उनसे विदा लेकर निकली । मैं दिल्ली की कान्फ्रेंस अटैण्ड करके वापस अपने घर भी आई । आँखें खोई हुई थी पर मन एकदम शांत था। अगर किसी और से उनके बारे में सुनती तो मनगढ़ंत कहानी लगती, पर अपनी आंखों से देखने के बाद जाना कि सच वाकई कितना कड़वा है।सच वाकई कल्पना से भी अजीब होता है।
जब उनके निधन की खबर मिली ।जेहन में विचार आया इंसान के चेहरे पर कितने नकाब होते है। इतने लंबे समय तक मैं उनके साथ रही पर एक पल को भी अनुमान नहीं लगा सकी कि उनके हंसते खेलते चेहरे के पीछे इतना दर्द छुपा है ? इस एहसास ने मुझे झिंझोड़ कर रख दिया और समाज के बारे में जो उनकी राय थी उसने एहसास दिलाया कि वाकई अंकल जैसे गिने चुने लोग कितने महान हैं जो किसी भी तरह के शोषण से पीड़ित लोगों की, कितनी आसानी से अपनी तकलीफों को नजर अंदाज कर के ,उन्हें हल करने में लग जाते हैं।
उन्होंने मुझे नए तौर-तरीके से जीना सिखा दिया शायद अब उनके लिए मेरे दिल में सहानुभूति से कहीं ज्यादा इज्जत बढ़ गई है। बिना दिखावे के लोगों की भलाई करने की प्रेरणा मिल गई। एक सफर वह था जिसमें वह हमसफ़र थे और एक सफर आज है जिसमें उनकी यादें हमसफर हैं।ऐसे ही लोगों के लिए हरवक्त दिल में यह जज्बा उठता है , नतमस्तक हो दिल बार बार कह उठता है कि लौट आओ मुसाफिर!