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Sheela Sharma

Inspirational

4.8  

Sheela Sharma

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पुनरावृति

पुनरावृति

5 mins
588


छमाही परीक्षा की तैयारियां जोर शोर से चल रही थी। गणित की शिक्षिका कक्षा में आई ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिखकर विद्या र्थियों को उतारने के लिए कह कर, कॉपियां चेक करने लगी।

 उनके हाथ में सुधीर की कौपी आई।जिसके ढीले धागे ने पन्नों को बेतरतीब कर दिया था उन्हें संभालना मुश्किल हो रहा था। वैसे भी उनका गुस्सा सुधीर जैसे छात्रों पर ही उतरता था।पर आज सुधीर की सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे हो रही थी। दिल धड़क रहा था कि अचानक गुस्से से कॉपी पटक कर मैम चिल्लाई ""सुधीरःः

सुधीर की मानो सांसे रुक गई ,पूरी ताकत से फेंकी गई कॉपी पीछे की दीवार से टकराते ही कक्षा में पन्ने बिखर गए। शर्म से पानी हुआ सुधीर सभी पन्ने समेंटने लगा। तभी आवाज आई ""कान पकड़कर सामने खड़े हो जाओ फटीचर कहीं के""।

वह पूरे समय कक्षा में एक पैर खड़ा रहा इस तरह की बातें उसके लिए आम थीं। पानी की तरह पी जानी पड़ती थी तो पैर दर्द का क्या सोचना। वह चाहता तो रो कर अपनी बात अपने दोस्त श्रेयस से बांट सकता था पर ऐसा करने के लिए उसके व्यक्तित्व में रचे -बसे स्वाभिमान संकोच ने उसका मुंह बंद करवा दिया।कक्षा में आते ही वापस वह सब के साथ हंसने बोलने लगा।

 श्रेयस प्राया अपने दोस्त को इन्हीं हालातों में देखता पर कुछ कह कर नहीं पाता आज वह कुछ सोच कर सीधे प्रिंसिपल के पास पहुंचा"" सर मैं नहीं जानता मैं गलत हूं या सही और मुझे आपसे शिकायत करनी भी चाहिए या नहीं ,पर अभी जो कुछ हमारे साथी के साथ कक्षा में हुआ वह नहीं होना चाहिए था"" कहते हुये उसने सारी घटना प्रिंसिपल महोदय को बता दी।कक्षा की शिक्षिका को बुलबाया गया।

 शिक्षिका ने आते ही कहा "'सर इस बच्चे की उपस्थिति पचास प्रतिशत से अधिक नहीं है। मेरे विचार से ऐसे बच्चे को स्कूल में प्रशिक्षित करने से न केवल स्कूल का ही नाम बदनाम होता है। बल्कि दूसरे बच्चों पर भी इसका गलत असर पड़ता है मानो स्कूल नहीं कोई बगीचा है जब मन किया आ गये नहीं तो नहीं "'।

 ""सर !मैम क्या कहना चाहती हैं? मैं समझ नहीं पा रहा हूं जबकि सुधीर की परिस्थिति यह अच्छे से जानती हैं "" श्रेयस ने कहा शिक्षिका ने उपहास भरे स्वर में कहा ""गरीब है तो यहां शिक्षा न ले। सर!मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहती हूं कि इंसान ने अपनी सामर्थ्या नुसार काम करना चाहिए ,कॉर्पोरेशन के भी तो बहुत से स्कूल खुले हुए हैं इन लोगों के लिए फिर यहां ही क्यों ""?

""सर अब मैम को क्या कहूं ?आप भी तो जानते होंगे कि प्रतिवर्ष हमारा यही दोस्त कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करता है चाहे वह कक्षा में उपस्थित हो या नहीं""

     चेहरे के भाव दबाते हुए नाराजगी भरे स्वर में वह कहने लगीं "' स्कूल के भी तो कुछ नियम होते हैं "" श्रेयस बीच में ही बोल पड़ा ""हां सर ऐसे गरीब पर आत्मअभिमानी होशियार बच्चों को तो स्कूल की तरफ से स्कॉलरशिप मिलनी चाहिए ,ताकि उनका ध्यान पढ़ाई में लगे।वे पढ़ लिख कर देश में तरक्की करें और दूसरों को भी राह दिखाएं ःः न कि उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाना लज्जित करना इस तरह के नियम""

प्रिंसिपल शांत रहें उन्होंने थोड़ी देर बाद धीरे से कहा मैं कल बताता हूं क्या करना है?    

   वह ज्यादा देर कुर्सी पर ना बैठ सके ,घर आए,अपने कमरे में बंद हो गए। उन्हें नजर आ रही थी वह कोठी, जिसमें उनका दोस्त कृष्णा रहता था  उनके जैसी ही कृष्णा की उम्र ,कद ,काठी थी।उस दिन वह स्कूल से लौट रहा था सफेद पेंट सफेद शर्ट और काले चमकदार पॉलिश किए शूज में।उसका स्कूल में एडमिशन हो गया था उसके पापा के पास रुपए थे, फीस भरने के लिए। 

मेरी तो केवल माँ थी।पढ़ाई में मैं उससे कम नही था। इसलिए उसका एडमिशन होते देख कर मुझे अच्छा नहीं लग रहा था जबकि वह मेरा पक्का दोस्त था मेरी मां तो उसकी कोठी के कार्यों में दिनभर उलझी रहती थीं वहां की नौकरानी जो थी।

किसी किसी दिन एक भी दाना पेट में नहीं जाता मां कुछ नहीं लाती वहां से,अब स्कूल भी जाने को नहीं मिलेगा ? उस दिन न जाने कब से पड़ा यही सोचता रहा भूख लगी तो भात लेने गया देखा चूल्हे में जरा सी भी तपिश बाकी नहीं थी। बगल में पड़ी देगची का जितना भी भात था कृष्णा के डॉगी मोती ने अंधेरा होते ही आ कर खा लिया था।जबकि उसको कोठी में बिस्किट, गर्म कपड़े ,बिस्तर दूध सब कुछ मिलता था फिर भी जैसे ही उसे मौका मिलता ,वह यहां झोपड़ी मे आकर देगची चट कर जाता।

 मैमसाहब को पता चलता तो उसे मार भी पड़ती थी। उन्हें नहीं पसंद था मोती का मेरे पास आना तो फिर कृष्णा का तो आने का सवाल ही नहीं उठता था फिर भी कृष्णा छुपते छुपाते मेरे साथ खेल लेता था मेरी पढ़ाई मे हरजा न हो इसलिए स्कूल में पढ़ाया हुआ भी लिखा सिखा देता था ताकि मेरी पढ़ाई जारी रहे।

माँ ने थोड़े बहुत रुपए जोड़े थे बस आज और थोड़े रुपए मिल जाएंगे तो कल मेरा नाम भी फिर से लिख जाएगा सोच कर अच्छा लग रहा था।माँ रुपये कम होने की वजह से फीस नहीं भर पाई थी, इसलिए मेरा नाम स्कूल से काट दिया गया था। इसी तरह कटते जुड़ते पिछले साल भी स्कूल जा पाया था और परिणाम में पहला स्थान मेरा ही था केवल कृष्णा के सहयोग से।    

 शाम को मां जब खाली हाथ काम करके वापस आई ,वेदना से पीड़ित मां के चेहरे पर बहते आंसू देख कर मैं समझ गया था कि आज रुपए नहीं मिले , पेट की भूख मिट चुकी थी। समझ नहीं पा रहा था मां को संभाल लूं या अपने आप को।कृष्णा ने हमारी मनोदशा भांप ली।वह तुरंत अपनी कोठी की तरफ दैड़ गया , दो रोटी लाकर मेरे हाथ पर रख दी ।मैं कुछ कहता, तब तक वह जा चुका था।

अगले दिन वह मुझे जबरन स्कूल ले गया पता चला स्कूल की फीस उसके पापा ने जमा कर दी थी। 

इस तरह हर साल मां उनकी कोठी में काम करती रहीं और चुपचाप कृष्णा के पापा बिना मेम साहब को बताए स्कूल में मेरी फीस भरते रहे। कुछ समय पश्चात हमें परिस्थिति बस वहां से जाना पड़ा पर कृष्णा के पापा का वह नियम जारी रहा

आज मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि जिस स्कूल ने मुझे शिक्षा दी उसी का प्रिंसिपल मैं बना हुआ हूं ,तो मैं किसी बच्चे का भविष्य अंधकारमय कैसे कर सकता हूं? मुझे भी एक अवसर मिला है, प्रिंसिपल लेने निर्णय ले लिया था। बस सुबह होने का इंतजार था।


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