Sheela Sharma

Inspirational

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Sheela Sharma

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मील का पत्थर

मील का पत्थर

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सेठ दीनदयाल उद्विग्न से कमरे में चहलकदमी कर रहे थे। वह जितना उफन रहे थे, उनकी पत्नी कामिनी उतनी ही शांत थी। जो बात उन्हें परेशान कर रही थी वह थी उनकी इज्जत, लोग क्या कहेंगे? आखिर मैं घर का मुखिया हूँ मुझसे भी तो बेटी नैना को पूछना चाहिए था। पर नहीं दोनों मां बेटी ने खिचड़ी पका ली। इतनी गलत बे बुनियादी सोच उन्हें किसने दी? नौकरी के दौरान पेइंग गेस्ट रहकर भी नैना आराम से नौकरी कर रही थी। फिर आखिर ऐसा क्यों किया नैना ने?

नाज नखरों से पाली बेटी की आज विदा की घड़ी आ चुकी थी। कामिनी को अपना वह सब बीता वक्त याद आ रहा था। जब वह इसी दौर से गुजर रही थी ।मां उसके कपड़े अटैची में भरते हुए बड़े प्यार से समझा रही थी "कामिनी तुम मुझे दिन-रात देखती हो ना परिवार में, हम पन्द्रह लोग सभी एक दूसरे के सुख दुख के साथी हैं। किसी में भी संस्कारों की कोई कमी नहीं है। तुम भी अपनी ससुराल का हिस्सा बनने जा रही हो यहां के संस्कार, वहां की रीत रिवाज, खानपान सभी में तारतम्य तुम ही को स्थापित करना होगा? कामिनी अपनी मां को केवल हां कह पाई और उनके गले लग कर फूट फूट कर रोई। वो अंतिम दिन था।

विचारों का तांता टूट गया दीनदयाल जी बेटी को ढूंढते हुए आए। उनकी तेज आवाज ने कामिनी के शरीर में कंपन भर दी पैर थरथराने लगे "नैना बोलो तुमने ऐसा क्यों किया मेरी इज्जत दांव पर लगा दी। ससुराल भी तुम्हारा समृद्ध है और जमाई का भी अपना फ्लैट है फिर तुम्हें अपना फ्लैट लेने की क्या जरूरत थी। तुम समाज के सामने, मेरे समधी के सामने मुझे गिराना चाहतीं हो। क्या यही परवरिश तुम्हारी मां ने की है क्या इसमें वह भी शामिल है?"

"नहीं पापा ! जब देखो तब मम्मी को जलील करते हुए शायद आपको अपना बड़प्पन लगता होगा। आप सभी के सामने कहते थे घर छोड़कर चली जाओ।मम्मी कहां जाती उनका तो अपना कुछ था ही नहीं ? ना मायका न ससुराल !अकेली लाचार गलत न होते हुए भी अपमान सहन करते, तिल तिल घुटते हुये मैं उन्हें देखा करती थी। बताइए पापा ! क्या फर्क है आप में और उनमें ? जबकि वह तो गृह लक्ष्मी भी कहलाती हैं? "

पर अब नहीं --मैं सबल हूं। दीनदयाल जी की आंखों से अंगारे बरसने लगे। पर कामिनी के चेहरे पर मुस्कान थी। तभी नैना मां के गले आकर लग गई।

कामिनी उसे रुंध गले से इतना ही कह पाई "तुम मेरा अंश हो उसे जिंदा रखना ?"


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