Anita Sharma

Classics Inspirational

4.2  

Anita Sharma

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किसान भाई

किसान भाई

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"पूजा हम सब घूमने जा रहे हैं, तो तुम अपने भाई से बोल दो कि चार, पाँच दिन यहीं आकर रुक जाये| क्योंकि इतने दिनों के लिये हम घर खाली नहीं छोड़ सकते हैं।"

पूजा के पति नीरज ने पूजा से कहा और बिना उसका जवाब सुने फोन पर बात करता हुआ बाहर निकल गया। पूजा मन मसोस कर रह गई। क्योंकि वो जानती है कि इस मौसम में उसका भाई अपने खेतों में कितना बिजी होगा। फिर भी इन्होंने कहा है तो एक बार फोन तो करना ही पड़ेगा।

तभी पीछे से पूजा को सासो माँ की आवाज सुनाई दी...... "अरे बहू अभी तो जाने के लिये दो दिन का समय है, तो तुम अपने भाई को एक दिन बाद भी फोन कर दोगी तो कुछ बिगड़ नहीं जायेगा। वैसे भी उसके पास काम ही क्या है, अभी तो तुम अपने काम पर ध्यान दे। सभी को भूख लगी है जल्दी से खाना बना लो। "

पूजा गाँव में रहने वाले एक किसान की बेटी है। जिसकी शादी नौकरी के लिये गाँव छोड़कर शहर में रहने वाले बद्रीनाथ के बेटे नीरज से हुई है । नीरज एक सरकारी ऑफिसर है , इसीलिये वो उसके मायके वालों को बहुत कम आंकते है। क्योंकि उनकी नजर में खेती करने वाले लोग गंवार होते है। उनका कोई वजूद नहीं होता।

पढ़ी-लिखी होने की वजह से पूजा ने अपने आप को पूरा नीरज के हिसाब से ढाल लिया है।

वहीं पूजा का भाई अपने आप को किसान कहलवाने में गर्व महसूस करता है। उसने तो अपनी  पढ़ाई भी कृषि विज्ञान लेकर की है । जिससे वो नई - नई टेक्नोलोजी इस्तेमाल कर अच्छी गुणवत्ता वाली फसल उगाता है।

पर पूजा के पति की नजर में उसका भाई एक बेबकूफ बेरोजगार है, जो खेतो में अपना टाइम बर्बाद करता है।

इसीलिये जब भी नीरज को जरूरत होती है पूजा के भाई को बिना उसकी मर्जी जाने बुला लेते है। भाई भी अपनी बहन के प्यार और बहनोई को सम्मान देने के लिये बिना किसी शिकायत अपने सारे काम छोड़कर हाजिर हो जाता है।

पर इसबार पूजा ने भी सोच लिया कि वो अपने पति और ससुराल वालों की नजरों में अपने भाई के काम की इज्जत बना कर रहेगी। सो सासो माँ ने जो साथ ले जाने के लिये जो सूखा नास्ता और पूरी सब्जी बनाने को कहा था वो बैग उसने जाँनबूझ कर घर पर ही छोड़ दिया।

पूजा के भाई को घर पर छोड़ कर पूरा परिवार तय समय पर निकल पड़ा अपनी छुट्टियां मनाने।

नीरज गाड़ी चलाते हुये कभी अपने माँ ,पापा को बाहर के नजारे दिखा रहे थे। तो कभी अपने बेटे को किसी जगह के बारे में जानकारी दे रहे थे। कभी पूजा को अपनी कनखियों से देखकर मुस्करा रहे थे।

तो कभी अपनी छोटी बहन को छेड़ कर उसे परेशान कर रहे थे।

चलते - चलते अब सभी को भूख लगने लगी तो खाने वाले बैग की तलाश शुरू हो गई। पर वो बैग न तो था न ही मिला।

सास का गुस्सा झेलती पूजा नीरज से बोली ..... "अब खाना तो घर पर छूट गया।तो यहीं कहीं कोई होटेल या ढाबा दिखे तो खाना खा लेना। "

पर गाड़ी जहाँ से गुजर रही थी वहाँ दूर - दूर तक कुछ नहीं था। सो तीन चार घंटे सभी को भूखा रहना पड़ा।

पूजा अपने पर्स में जो बिस्किट के पैकेट लाई थी वो उसने अपने बेटे और ससुर जी को खिलाकर दवाई खिला दी।

पर वाकि लोगों की भूख के मारे हालत खराब हो गई थी। अब नीरज के चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं थी। न ही पूजा की सास में पूजा को डांटने की ताकत बची थी। अब गाड़ी के बाहर के नजारे फीके हो गये थे।

नीरज बस बड़बड़ाये जा रहे थे ... "इतना पैसा होते हुये भी सभी को भूखा रहना पड़ रहा है।" और बीच - बीच में खाने का बैग न रखने की गलती के लिये पूजा को जलती आंखो से घूरे जा रहा था।

तभी सड़क किनारे एक छोटा सा ढाबा दिखा । तो नीरज ने तुरंत गाड़ी रोक कर उस ढाबे के मालिक से खाने की बात की । उसने बताया कि "उसके पास सिर्फ दाल बची है। तो वो उसमें तड़का लगाकर साथ में रोटियाँ दे सकता है बस। "

भूख में सभी को वो दाल रोटी ही छप्पन भोग लग रही थी। तो सभी लोग बहुत प्यार से खाना खाकर तृप्त हो गये । पेट भर जाने से सभी के चेहरे की चमक लौट आई थी।

हाथ पोंछते हुये नीरज अपनी माँ से बोला.... " मम्मी किसी ने सही ही कहा है कि '* भूखे भजन न होए गोपाला *"!

तभी पूजा ने मौका देख चौका मारा और नीरज से बोली.......

" देख लीजिये आप , आप जो पैसा कमाते हो वो तो आपकी जेब में ही था। पर आप उसे तो नहीं खा पाए। भूख तो आखिर आपकी खाना खा कर ही मिटी। और ये खाना जिस अनाज से बना है वो मेरे भाई के जैसे ही किसी किसान ने उगाया होगा।

माना कि आप पैसे से खाना खरीद तो सकते हो ,पर पैसा खा तो नहीं सकते। और जो खा सकते है वो मेरे भाई जैसे हजारों, लाखों किसान भाई ही उगाते है।

अपने कभी सोचा कि अगर सभी आपकी तरह खेती को बेकार का काम समझने लगे तो इस दुनिया का क्या होगा?

दुनिया का छोड़ो अच्छा आप बताओ मान लो कि अगर आपको कहीं से खाना न मिले तो आप अपना और अपने परिवार का कैसे पेट भरोगे? "

नीरज निरुतर होकर खड़ा था। उसके पास सच में पूजा के सवाल का जबाव नहीं था।

तभी पूजा अपनी रॉ में बोली... " मेरा भाई बेरोजगार नहीं, अन्नदाता है। जो बिना भेदभाव आप जैसे पैसों वाले और बिना पैसों वाले सभी का पेट भरने के लिये अन्न उगाता है। मुझे गर्व है अपने किसान भाई पर।

आज नीरज और उसकी पूरा परिवार समझ गया था कि किसान कितनी महान हस्ती होती है। हम कितनी भी तरक्की करले, हम सोने चांदी के बर्तन तो खरीद सकते है पर उन मै रख कर तो अन्न ही खायेंगे।

तभी गाड़ी की तरफ जाती पूजा एक बार फिर मुड़कर बोली "मेरा भाई आपके बुलाने से हर बार इसलिये नहीं आता कि वो फालतू है बल्कि वो तो मेरे प्यार और आपके सम्मान के खातिर अपना जरूरी काम भी छोड़ कर आ जाता है। तो आगे से समझ लेना किसका काम ज्यादा जरूरी है"|

नीरज और उसका पूरा परिवार आज पूजा की कही हर बात को बहुत गहराई से समझ रहा था। और पूजा अपने भाई के लिये सभी की सोच बदलने के लिये मंद - मंद मुस्करा रही थी।

दोस्तों हम अक्सर किसान भाईयो को कमतर आंकते है। चाहें उनके बच्चे खेतों में कितना भी काम करले पर ज्यादातर सभी के मुँह से यही निकलता है कि वो कुछ नहीं करते। पर कभी सोचा है कि अगर किसान न हो तो इस दुनिया का क्या होगा? इसलिये उन्हें बेकार नहीं अपना अन्नदाता समझे और उनका सम्मान करें।


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