Sunita Mishra

Abstract

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Sunita Mishra

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खुशी में

खुशी में

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"क्या बात है आज तो थाली व्यंजनों से सजी है।आज इस परहेजी पर इतनी मेहरबानी किस खुशी मे बहू" स्वाति ने कोई जवाब नहीं दिया।बस मुस्करा दी। "पापा, आपकी सारी रिपोर्ट नॉर्मल है।अब आपको इज़ाजत दे दी है डॉ साहेब ने,महिने मे एकाध बार परहेजी खाने की हड़ताल कर सकते है"बेटे अनुज ने आकर उन्हे उनकी मेडिकल रिपोर्ट देते हुए कहा। "अच्छा, रिपोर्ट नॉर्मल है,इस खुशी मे" "पापा आज माँ का जन्मदिन है।इस खुशी में।

मां आप की थाली भी परोस दी है, आप और पापा खाना खा लें।" बहू ने जैसे ही यह कहा,बाबू दया शंकर जी का ध्यान वहीं खड़ी उनकी पत्नी पर गया। सफेद बालो के बीच माँग मे भरा सिन्दूर,माथे पर बड़ी लाल गोल बिन्दी,हरे रंग की सिल्क की नयी साड़ी में, बहुत प्यारी लगी उन्हे अपनी सह धर्मिणी कल्याणी। सारा आयोजन अनुज और बहू का होगा।आँखे छलछला आई उनकी। अनुज उनका सबसे छोटा बेटा,उनका नालायक बेटा।

अनुज के दो बड़े भाई विदेश मे,भारी भरकम पैकेज के साथ बड़ी कंपनी मे उच्च पदों पर आसीन है। अनुज के दोनो बड़े भाई बचपन से ही पढ़ाई मे ज़हीन, कक्षा मे अव्वल,बोर्ड परीक्षा के टॉपर,उसके बाद तो उन दोनो ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।विदेश मे अपने परिवार सहित सेटल हो गये। गर्व होता था अपने दोनो बेटो पर उन्हे। अनुज, अल्प बुद्धि,जैसे तैसे, पासिन्ग मार्क्स से स्नातक की पढाई कर पाया। बाबू दया शंकर जी के दिये गये विशेषणों का शिकार होता। "अपने भाईयों को देख,कुछ तो शर्म कर,क्या करेगा जिन्दगी में, नालायक, गधा,

अनुज नीची गर्दन किये,आँखो मे आँसू भरे सब सुनता। कल्याणी ने कई बार उन्हे टोका भी"इतने अपशब्द क्यों बोलते हैं उसे,क्यों उसके भाईयों से तुलना करते है उसकी।

सबकी क्षमता एक सी नहीं होती।उसके आत्म सम्मान को भी चोट लगती है" पर दया शंकर जी को अपने दो हीरे जैसे बेटो के साथ ये तीसरा कोयला बहुत नागवार लगता। रिटायरमेंट के बाद अपनी साख से अनुज की अपने ऑफ़िस मे ही क्लर्क की नौकरी लगवा दी।

विदेशी बेटों का धीरे-धीरे स्वदेश से प्रेम न के बराबर हो गया।उनके परिवार को यहाँ का मौसम रास नही आता। उम्र की रफ्तार से ज्यादा बिमारियों की रफ्तार ने दया शंकर जी को तोड़ दिया।शरीर ने साथ देना छोड़ दिया। पिछले साल सीवियर हार्ट अटैक ने तो जैसे जिन्दगी का रुख ही मोड़ दिया,

जब पैसो की चिंता न करने की हिदायत देते हुए दोनो विदेशी बेटे ने उनके पास आने मे असमर्थता जताई । यही अनुज और बहू स्वाति ने अपनी सेवाओं से उन्हे मौत के मुँह से बाहर निकाला । वर्तमान मे लौट आये दयाशंकर जी,अपनी छलछलाई आँखो को पोछा बोले " इस खुशी मे अनुज, स्वाति,

बेटे तुम लोग भी आ जाओ। सब साथ मिलकर खाना खायेंगे।"


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