रंग हीन साये (रंग बरसे)
रंग हीन साये (रंग बरसे)
चेहरे और कपड़ो में तमाम रंगो से रंगी परी, अपनी दोनो हथेलियों मे रंग भरे, मम्मी के गालों को रंगने के लिये जैसे ही दोनो हाथ बढ़ाये, कि ममता का तमतमाता हुआ चेहरा देख सहम कर खड़ी हो गई ।
सामने परी को देख ममता को लगा ये परी नही वो खुद अपनी मां के सामने खड़ी है।रंग से सरोबार। यही उम्र होगी उसकी, 5-6बरस की , सुबह से होली खेलकर वो दोपहर मे घर लौटी।
छोटे चाचा सामने ही खड़े थे बोले-- भौजी, लो आ गई आपकी राजकुमारी, जाने किस किस से रंग पुतवा कर"
"छोटी बहू, लड़की जात है, बेटी पर कमान कसकर रखा करो "ताऊ जी बोले।
चाची, ताई , हँस रहीं थी, अपनी अपनी साड़ी का पल्ला मुँह मे दबाये।
माँ रसोई मे थी।वहाँ से उठकर आईं, ममता को, बाँह पकड़कर घसीटते हुए चूल्हे से बाहर निकली गरम राख के ऊपर खड़ा कर दिया।वो बिलबिला गई ।
चाची और ताई वैसे ही खड़ी हँसती रही।
रोती सिसकती जाने कब वो सो गई, नींद मे उसे लगा की उसके पैर गीले हो रहे हैं ।उनींदी आँखो से देखा माँ उसके पैरो को अपनी गोदी मे रखे , उसके तलुए सहला रही है , बुदबुदा रही है---तू नहीं जानती मेरी बच्ची, विधवा के जीवन को।बिना पति के उसकी पत्नी और पितृ हीन बेटी के ऊपर हमेशा रंग हीन साये मंडराते रहते है।"
वो उठी मां के गले लग रोते हुए बोली-"मत रो माँ, अब कभी रंग नही खेलूंगी" रंगो की दुनियाँ से खुद को समेट , उसने पढाई पर ध्यान लगाया।
आलोक से उसका विवाह हुआ।पर भाग्य मे जीवन की खुशियाँ अधिक नही लिखी थी।चार साल की परी को उसके गोद मे छोड़ आलोक दुनियाँ से चले गये। उसे आलोक की जगह नौकरी मिल गई ।
वो चौंकी, परी अभी भी सहमी सी खड़ी थी, नहीं परी की जिन्दगी रंगहीन नही होगी।उसने परी की ओर दोनो बांहे फैला दी, दौड़कर परी ममता के गले लगीऔर अपनी हथेलियों का रंग ममता के चेहरे पर लगाने लगी।