यूरेका
यूरेका
मुन्ना बाबू ,शाला जाने के लिये निकल पड़े।रास्ते में कभी पैरों से छोटा सा पत्थर उछालते,कभी हवा मे कल्पनीय बॉल उछाल क्रिकेट खेलते । कल रात ही उन्होने अपनी माँ से लिपट,गलबहिंयाँ डाल,पूछा था --"अम्माँ ,मै कैसे पैदा हुआ?"
"डॉ ने हमारे पेट का ओप्रेशन किया,और पेट से तुम्हे बाहर निकाल लिया"अम्माँ ने समाधान किया।
"सब बच्चें ऐसे ही पैदा होते है?"
"हाँ-----अब सो जा।"दिन भर की थकी हारी,उनींदी माँ ने मुन्ना बाबू को अपने से चिपटा लिया। सूरज आसमान मे लाल गोला बनकर उभर आया था।पहिली कक्षा के छात्र,मुन्ना बाबू के छोटे से भेजे मे कई दिनों से कुलबुलाती समस्या का समाधान माँ ने कर दिया था। हल्की सी सूरज की रोशनी और फैली।मुन्ना बाबू के मस्त कदम थोड़ा ठिठक गये। झाड़ियों का जंगल,गली मुहल्ले का कूड़ा करकट जहाँ पर पड़ा रहता है,कुछ लोग इकठ्ठा हैं। एक आदमी की गोद मे,कपड़े मे लिपटा कुछ है।मुन्ना बाबू ने उनकी आवाज सुनी,---बच्ची है---लड़की है--। घर की ओर अबाउट टर्न,कुछ बिजली सी कौंधी,तेजी से भागे----- यूरेका---------- "अम्माँ ---अम्माँ" "अरे,छुट्टी हो गई क्या स्कूल में"माँ के प्रश्न्ं को अनसुना कर बोले मुन्ना बाबू-"अम्माँ ,तुम तो कल कह रहीं थीं बच्चे माँ के पेट से पैदा होते हैं"
"हाँ "
"नहीं--ऐसा नहीं होता।"
"तो कैसा होता है,--तुम्ही बताओ?"
"सिर्फ लड़के मां के पेट से पैदा होते है।लड़कियाँ तो कचरे के ढ़ेर से------!