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Sunita Mishra

Others

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Sunita Mishra

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एक भूल

एक भूल

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लम्बे केश, छरहरी काया, बड़ी बड़ी बोलती आँखें, हँसता चेहरा और रंग, सुबह निकली सूरज की किरणों सा। ऐसा छन्नो का रूप। लगता मानो राजा रवि वर्मा की पेंटिंग शकुन्तला प्रगट में सामने आ गई हो। आज तो अलग ही निखार था सुबह सुबह जब दूध की डोलची ले हमारे घर आई। माँ को आवाज दी-- "भाभी , दूध ले लो" "क्या बात है छन्नो। ये गुलाबी साड़ी तो तुमपर बहुत फ़ब रही है। आज तुम छन्नो नहीं, गुलाबो लग रही हो" खिलखिला पड़ी वो और दूसरे ही पल उसकी मोटी मोटी आंखों में बादल तैरने लगे। "तुम बहुत अच्छी लग रही हो, इसलिये कहा, मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाने का नहीं था" "नहीं नहीं , भाभी। बस ऐसे आपकी बात से बाबू याद आ गये, वो मुझे गुलाबो ही कहते थे" इतना कह उसने जल्दी से अपनी डोलची उठाई और आँचल से आँखें पोंछती चली गई। पापा का ट्रांसफर इस शहर में हुए छ महीने हुए। पापा सरकारी अस्पताल में आँखों के डॉक्टर थे। जैसे ही हम यहाँ आये सबसे पहले मेरे लिये गाय के दूध की तलाश की गई। पता नहीं क्या बीमारी थी की मुझे अनाज हजम नहीं होता था। बचपन से ही गाय के दूध के अलावा मैं कुछ भी पचा नहीं पाती थी। शरीर दुबला था जबकि मुझसे दो साल छोटी बहिन नीति तंदुरुस्त थी। लोग उसे मेरी बड़ी बहिन समझते। पता चला पास ही कोई महिला गाय पालन कर दूध बेचती है। माँ ने नौकर को वहाँ भेजकर पता करवाया। दूसरे दिन सुबह ही जो महिला दूध लेकर आई, --- माँ, मैं और नीति उसे कुछ पल देखते ही रहे। जैसे कोई अप्सरा देख ली हो। वो मुझसे सात या आठ साल बड़ी होंगी। उन्होंने ही नाम बताया अपना, ---छन्नो --। "भाभी मैं ही दूध लाया करूँगी गुड़िया के लिये, देखना चार महीने में गोल मटोल न हो जाये गुड़िया रानी।" गोल मटोल तो नहीं पर मेरा स्वास्थ्य सुधार में था। छन्नो धीरे धीरे कब कैसे हमारे परिवार के करीब होती गई हम लोग भी न जान पाये और बन गई माँ की अंतरंग सखी। छन्नो जितनी रूपमती उनके पति ठीक उनसे उल्टे। दुर्बल काया, शराबी तो थे ही , साथ में जुआ खेलने के शौकीन। शराब ने लीवर बेकार कर दिया। एक बार तो इतनी पी ली की नाले के किनारे बेहोश पाये गये। पापा ने अस्पताल में एडमिट करवाकर, इलाज करवाया। ज्यादा पढ़े लिखे न होने के कारण जब वो ठीक हुये तो पापा ने ही उन्हें अस्पताल में अस्थायी तौर पर सफाई कर्मी की नौकरी लगवा दी। मैं और नीति बातें करते इतनी सुन्दर लड़की को कैसे पति के पल्ले से बाँध दिया। कितने हृदय हीन रहे इनके माता पिता या शायद कोई मजबूरी रही होगी। राखी का दिन था, सुबह ही छन्नो आ गई। गाय के दूध से बने रसगुल्ले ले। साथ ही पतले रेशम के धागे । बोली-"भाभी आज हम डॉ भईय्या के राखी बांधना चाह रही हैं। वो हमारा सुहाग बचाए ही नहीं, उसे काम भी दिला दिया। बड़ा उपकार है उनका।" राखी बंधी और उस दिन से छन्नो, हम दोनों बहिनों की छन्नो बुआ हो गई।

हड़ताल तीज आई। माँ भी व्रत रखती थी पर पापा ने उन्हें कभी निर्जला व्रत न रखने दिया। छन्नो बुआ निर्जला थीं । मैंने ही उनके और माँ के हाथ में मँहदी लगाई। घर मे बुआ ने फुलौरा सजाया, पाँच तरह के पकवान बनाएं। रात में पंडित जी ने पूजा करवाई। फिर रत जगा । भजन और नाच। छन्नो बुआ की दिपदिपाती सिन्दूरी माँग, हाथों की मेहंदी , चेहरे पर व्रत का तेज उनके रूप को विस्तार दे रहा था। सारी रात उनकी ढोलक बजी, नाची भी खूब। हर कला मे प्रवीण छन्नो बुआ ।नीति उनका ये रुप देख कहती "हे भगवान, छन्नो बुआ ऐसे पति के लिये इतना व्रत पूजा करती, हमसे तो न हो।" बुआ एकदम सत्यवान की सावित्री सी लगती। माँ भी सुहगिनों के व्रत त्योहार पर उन्हें उपहार में सुन्दर सी साड़ी और सुहाग का सामान भेंट करती। हमारी बोर्ड की परीक्षा चल रही थी।नीति का टेन्थ और मेरा ट्वेल्थ था। अचानक माँ की तबीयत खराब हुई। डायरिया ने उन्हे बेहद कमजोर कर दिया था।ऐसे मे छन्नो बुआ ने पूरा घर सम्भाल लिया। माँ की खूब सेवा की। एक दिन घर की कम्मो महरी को उन्होंने खूब डाँटा बोली-कई दिनों से देख रही हूँ कम्मो, बर्तनों में जूठन लगी रहती है। घर की मालकिन बीमार है तो इसका ये मतलब तो नहीं की तुम सफाई से काम ना करो "डांट कर बुआ तो माँ के पास आ गई । इधर कम्मो महरी बड़बड़ा रही थी "बड़ी आई चौधरानी , मेरे काम में खोट देखने वाली, पहिले अपना चरित्तर तो देखे।" मै उस समय वहीं खड़ी थी। कम्मो की बड़बड़ाहट सुनी पर बात की गहराई न समझ पाई। कम्मो और छन्नो बुआ एक ही गाँव की थी। समय अपनी गति के साथ बढ़ता रहा। मैं पी जी कर रही थी। नीति बी एस सी फायनल। छन्नो बुआ हमारे घर की सदस्य सी हो गईं थीं । पापा छोटी बहिन की तरह उनसे स्नेह करते। इसी बीच मेरी शादी तय हो गई और इसी के साथ छन्नो बुआ की व्यस्तता भी। घर की पहिली शादी। माँ तो चिंता से बेहाल। पर छन्नो बुआ का ये कहना "भाभी, हम हैं न। देखना गुड़िया की शादी कितने धूमधाम से होगी। नाहक परेशान हो रहीं हैं आप।" उनकी बातों से माँ का बी पी बैलेंस में रहता।

मूँग की दाल की बड़ी, पापड़, अचार बनने लगे। गहनों साड़ी, कपड़ों के लिये बाज़ार छाना जाने लगा। कोई कमी न हो। बारात कहाँ ठहरेगी, क्या लेन , देन होगा। पकवानों की सूची, सास की पेटी मे क्या क्या जायेगा, बुआ चकरघिन्नी की तरह चारों ओर घूम रही। मेहमानों का आना शुरु हो गया। कानपुर से ताऊ, ताई, आगरे से मौसी, भोपाल से ममेरी बहिनें ।हाँ देहरादून से दूर के रिश्ते में लगती पापा की बहिन भी आईं, यानी मेरी बुआ, जिन्हें मैंने पहिली बार देखा। घर की रौनक और छन्नो बुआ की फुर्ती देखने लायक थी। न खाने की सुध न खुद के सजने संवरने की। बस एक ही धुन उनकी गुड़िया रानी के ब्याह में कोई एक भी नुक्स न निकाल पाये। बारात आई, शादी की रस्में शुरु हुई। सभी रस्में सानंद सम्पन्न हो रही थी। पर बुआ कहीं नहीं दिख रहीं थीं ।एक रस्म के अनुसार मेरे पैरो में बुआ को बिछिया पहनानी थी। पर बुआ कहाँ ?मैं पानी लेने भंडारे की ओर गई, जानती थी बुआ भंडारे की देख रेख में व्यस्त होंगी। बुआ भंडारे में बैठी आंचल से अपने आँसू पोंछ रहीं थीं। "बुआ मेरे विदा होने में देर है। कुछ आँसू विदा के लिये बचा कर रखो" कह कर लिपट गई मैं उनसे । मुझे ऐसे लगा जैसे वे अपनी मुठ्ठी में कुछ छिपा रहीं हैं। मैंने उनकी बंधी मुठ्ठी खोली, खूबसूरत बिछिया के दो जोड़। मैं पापा को बुला लायी, साथ में माँ भी आ गई।" क्या हुआ बेटा" जब भी पापा स्नेह से भरे होते बुआ को बेटा ही कहते। "कुछ नहीं भईय्या" आँसू पोंछ मुस्करा दी बुआ। जिस कमरे में मेरे विदाई का सामान रखा था। एकांत था, पापा , माँ को वहाँ लेकर गये। मैं भी पापा के साथ गई। "अब बताओ छन्नो रोई क्यों "पापा ने मां से पूछा। "कुछ नहीं, मैंने कहा गुड़िया को बिछिया देहरादून वाली जिज्जी पहनाएंगी। बस इतनी सी बात " "लेकिन बिछिया की रस्म तो छन्नो के हाथों होनी थी। तुम ही बोली थीं।" "हाँ कहा था तब , जब हम उसके अतीत से अनजान थीं" "ऐसा क्या अतीत है छन्नो का जो तुम्हें अपना निर्णय बदलना पड़ा" "अरे आप नहीं जानते जब ये आठवीं में पढ़ती थी, तो किसी लड़के के साथ भाग गई थी। बड़ी थू-थू हुई थी इनके समाज में इन लोगों की। पिता तो इस सदमे को सहन ही नहीं कर पाये। अचानक अकेली लौटी तो दो महिने का पेट लेकर। भाइयों ने गर्भपात करवाया। और फिर मुकेश(बुआ के पति)से ब्याह करा कर संबंध तोड़ लिया बहिन से।" "तो इससे गुड़िया को बिछिया पहनाने की रस्म का क्या संबंध " "अरे कैसी बात करते है। उस चारित्र हीन से मैं बिटिया की बिछिया रस्म तो नहीं करवाऊंगी " पापा कुछ पल तो चुप रहे। मां के आरोप से या बुआ के अतीत से वे अवाक थे। फिर बोले--गुड़िया की मां, जिस उम्र में छन्नो ने गलती की वो उम्र नाजुक ही नहीं नासमझ भी होती है। अगर सही दिशा न मिले तो किसी से भी ऐसी गलतियाँ हो सकती है और फिर छन्नो अपनी गलती का प्रायश्चित भी तो कर रही है, मुकेश के साथ बँध कर ।नहीं---नहीं, एक भूल की उसे इतनी बड़ी सजा मत दो । गुड़िया को बिछिया पहनाने की रस्म छन्नो ही करेगी। ये मेरा निर्णय है। जाओ छन्नो से कहो तैयार हो मंडप में पहुँचे और अपनी गुड़िया बिटिया की बिछिया रस्म पूरी करे।"



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