कलम ज़ादे

Abstract

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कलम ज़ादे

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खोटा सिक्का

खोटा सिक्का

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अपने छोटे से कोठलीनुमा कमरे में घुसते ही सामने पड़े पुराने टूटे-फूटे सोफे पर जा धंसा। गर्मी और गुस्से से उसका पूरा चेहरा पसीने से तर हो रहा था। सांस तेज धौंकनी सी चल रही थी। हद होती है....। मोहल्ले के सारे लडक़ों से नैन-मटक्का करने वाली मनचली आज अचानक शरीफजादी बन बैठी है। कौन नहीं जानता उसके रोज-रोज के किस्से। मजाल है कि राह चलते किसी लडक़े को उसने मुस्कुरा कर न देखा हो। नजदीकी पड़ोसी होने के नाते उसने उससे खास दूरी बना रखी थी। न बातचीत और न ही नजरें उठाकर उस तरफ देखना। तीज-त्योहार पर अलबत्ता बधाई संदेश या मिठाई-पकवान आदि का आदान-प्रदान दोनों परिवारों के बीच चलता रहता है। लेकिन आज अचानक यह कैसी खुन्नस निकाली। सिर्फ इसलिए कि वह उस मनचली की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखता। क्या उसे नहीं देखना, उसका अपमान है। उसके अहम को ठेस लगती है। यदि नहीं तो फिर क्यों उसका भाई अपने मूुंंहबोले मामा के साथ धड़धड़ाता हुआ हमारे घर के भीतर आ घुसा। मां-पिताजी घर के दालान में ही थे। मां को देखते ही उसने शिकायती खंजर चला दिया था। देखो, मम्मी जी! आपका संयम हमारी बहन के साथ छेड़छाड़ करता है, फब्तियां कसता है और भद्दे इशारे भी करता है। अपने होनहार और शरीफ बेटे के बारे में ऐसी घिनौनी शिकायत सुनकर मां-पिताजी आवक रह गए। वह कुछ समझ ही न सके। मां ने सिर्फ इतना ही कहा था, अच्छा बेटा! हम बात करते हैं, उसको समझा देंगे। जब वो दोनों बाहर जा रहे थे तब मैं अपने घर में दाखिल हो रहा था। विस्मय से मैं उसे देख रहा था और समझने का प्रयास कर रहा था कि आखिर अचानक वो हमारे घर में कैसे आ गए। वह नजरें चुराते हुए बाहर चले गए। मां ने सारी बात बताई...साथ ही नसीहत भी दे डाली। बेटा, पढ़ाई में दिल लगाओ। चौक-चौराहों पर खड़े रहने से कौन सा भविष्य बनने वाला है। आवारा लडक़ों से मेल-मिलाप बंद करो। लेकिन, मां ने एक बार भी नहीं कहा कि पड़ोसी की लड़की से छेड़छाड़ क्यों करते हो...? मां है वो...। हर मां अपने बच्चों के गुण-अवगुण से भलीभांति परिचित रहती है। शायद मां जानती है कि किसी की बहू-बेटियों पर बुरी नजर रखना उसके बेटे की फितरत नहीं। लेकिन फिर भी मां ने विरोध क्यों नहीं किया। खामोशी से उनकी शिकायत क्यों सुनती रहीं। फटकार क्यों नहीं लगाई उनको । जबकि मां भी उस लडक़ी के चाल-चल से बहुत अच्छी तरह वाकिफ हैं। क्यों नहीं कहा कि जाओ, पहले अपनी बहन को समझाइश दो। उसके बाद मेरे सीधे-सादे शरीफ बेटे की शिकायत लेकर आना। 

दरअसल संयम और उसका परिवार बेहद ही सरल, सहज और सुलझे लोगों की श्रेणी में गिना जाता है। संयम ने भी कुछ दिनों से ही घर से बाहर मोहल्ले में आना-जाना शुरू किया था। इस बार उसकी बोर्ड की परीक्षा थी। मोहल्ले के एक गरीब लडक़े से उसकी घनिष्ठता बढ़ गई थी। पढ़ाई से दिल ऊबने पर वह अक्सर उस लड़के से मिलने चला जाता था। लेकिन उसे नहीं मालूम था कि जो लड़का उसका दोस्त बना है उस मनचली ने उस पर भी अपना जादू चला रखा है। दोनों के बीच भयंकर तौर पर नैन मटक्का चलता रहता रहता है। इस बात की जानकारी उस लडक़ी के भाई को भी थी। संयम का कुसूर सिर्फ इतना ही रहा कि कई बार इशारेबाजी के दौरान वह अपने दोस्त के साथ ही था। लेकिन एक नजर भी उसने उस ओर नहीं देखा था। भाई और उसके परिवार की मजबूरी यह थी कि वे चाहकर भी इसका विरोध नहीं कर सकते थे। वजह थी मेरे उस दोस्त का दबंग होना। वह और उसके परिवार में सारे के सारे मारते खां थे। जरा सी बात पर चाकू-छुरी लेकर सामने आ जाते थे। अपनी बिगड़ैल बेटी को समझाने के साथ-साथ परिवारवालों ने उसके साथ मारपीट भी की और यहां तक कि उसको दो-दो दिन कमरे में बंद भी रखा गया। लेकिन जितना विरोध उतना ही प्रतिरोध...।

वह नहीं मानी। अब वह खुलकर अपने परिवार की इज्जत तार-तार करने लगी थी। परिवार के लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि घर की इज्जत और समाज में हो रही जग-हंसाई को कैसे रोका जाए। शायद इसीलिए उसके घर शिकायत भेजी गई थी कि ताकि एक तीर से दो निशाने लग जाएं। एक तो संयम का उस लडक़े के साथ मेलजोल बंद हो जाएगा और दूसरी ओर वह लड़का भी अपनी हरकतों से बाज आ जाएगा। लेकिन वे लोग यह क्यों नहीं समझते कि जब अपना ही सिक्का ही खोटा हो तो जमाने से कैसी शिकायत करना। बहरहाल, इस शिकायती हरकत का असर भी हुआ और वो लडक़ा भी थोड़ा होशियार हो गया। बात पूरे इलाके में फैल गई। लोग अब मुझ पर ऊंगुलियां उठा रहे थे। छेड़छाड़ को लेकर मेरे बारे में कई तरह की छोटी-छोटी कहानियां गढ़ ली गईं। एक छोटी सी झूठी शिकायत के चलते अब मैं एक आवारा मनचला साबित हो चुका था। मेरे अति संवेदनशील ह्दय पर भी इसका विपरीत असर पड़ा। मेरा मस्तिष्क अब एकाग्र नहीं हो पा रहा था। शायदा इसका असर मेरी पढ़ाई और भविष्य पर भी पड़े।


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