चिकन करी
चिकन करी
रेलवे स्टेशन के फुट ओवरब्रिज की सीढिय़ों पर कदम रखते ही मालती को आभास हो चला कि कोई उसका पीछा कर रहा है। उस पर नजर गढ़ाए हुए है। उम्र के चालीस बसंत पार कर चुकी मालती एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती है। चौदह और बारह साल के दो बच्चों की मां होने के बाद भी उसके रूप-सौंदर्य में कोई कमी नहीं आई थी। मानो बढ़ती उम्र के साथ-साथ उसका सौंदर्य भी और ज्यादा ही निखरता जा रहा था। राह चलते मनचले भी उसे घूरने से बाज़ नहीं आते थे। गोरा रंग, तीखे नयन-नक्श और गठीला बदन।
लेकिन उसे अपना रूप-रंग और खूबसूरती संवारने की फुरसत कहां। उसका तो सारा समय पति व बच्चों की देखभाल और गृहस्थ जीवन व्यतीत करने में ही गुजर जाता है। हल्के बादामी रंग का ब्लाउज और प्रिंट वाली सफेद साड़ी में वो आज भी एक सिम्पल हाउस वाइफ ही लग रही थी। अपना पर्स संभालते हुए बड़बड़ाई...! कहीं कोई चोर-लुटेरा तो नहीं। एक-दो बार पीछे पलटकर भी देखा लेकिन ऐसा कोई दिखा नहीं जो असामान्य सा या संदेही दिखे। चलते-चलते मालती ने पल्लू ठीक करते हुए साड़ी से अपनी कमर और पेट छिपाने का नाकाम प्रयास किया।
रेलवे का ओवरब्रिज पार करते ही सब्ज़ी मंडी है। करीब एक किलोमीटर पैदल चलकर मालती हफ्ते भर की सब्जियां लेने आती है। मंडी से उसे ताजी और सस्ती सब्जि़यां मिल जाती हैं वरना इतनी दूर पैदल जाकर सब्ज़ी लाने की कोई तुक है भला। अपने रास्ते जाना और अपने रास्ते लौट आना। वो कभी पीछे मुड़कर या दाएं-बाएं भी न देखती। परंतु आज वो अनायास ही बार-बार पीछे मुड़कर और दाएं-बाएं भी देख रही थी। चेहरे पर घबराहट थी। कदम भी तेजी से बढ़कर अपनी मंजिल को पा लेना चाहते थे। किसी दार्शनिक की किताब में एक बार उसने पढ़ा था कि यदि कोई व्यक्ति घूरकर या टकटकी लगाकर आपके जिस्म के किसी भी हिस्से को लगातार देखता रहे तो आपकी नजर भी कम से कम एक बार उस और जरूर जाती है। बरबस ही आपका ध्यान उस तरफ जाना लाजमी है। मालती ने पलटकर देखा भी था लेकिन उसे कोई क्यों नज़र नहीं आया। खुद ही जवाब भी ढूंढ लिया, शायद भीड़ अधिक है इसलिए नहीं दिखा।
कहीं कोई विकृत मानसिकता वाला साइकिक तो पीछा नहीं कर रहा। सीधे-सादे स्वभाव वाली मालती फिलहाल बहुत डरी हुई थी। टीवी पर, फिल्मों में और सोशल मीडिया पर भी कितने तरह के साइको टाइप के सीरियल किलर्स के समाचार और कहानियां देखती आई है। पाश्विक प्रवत्ति के ऐसे लोग सिर्फ कुछ पल के मजे और क्षणिक उत्तेजना की पूर्ति के लिए महिलाओं की दुर्गति कर उन्हें मौत के घाट उतार देते हैं। सब्ज़ी मंडी से अपने पसंद की सब्जियां लेकर जैसे ही घर लौटने को हुई, अचानक उसे जोर का एक धक्का लगा।
किसी ने उसके कूल्हे पर हाथ मारा था। मानो काटो तो खून नहीं। उसका पूरा जिस्म बर्फ की तरह ठंडा पड़ गया , माथे पर पसीना भी छलछला गया। उसने फौरन पलटकर देखा लेकिन भीड़ इतनी अधिक थी कि सब सामान्य और खरीददारी में व्यस्त नजर आए। मालती बहुत डर गई । चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगीं। लगा जैसे घर पहुंचने से पहले ही कोई साइको उसे अगवा कर मौत के घाट उतार देगा। वह जल्द से जल्द सही-सलामत घर पहुंच जाना चाहती थी। लिहाजा बिना कुछ सोचे और समय गंवाए रिक्शा लेकर वो घर आ पहुंची। घर में कदम रखते ही उसने झट से दरवाजा बन्द किया और राहत की सांस ली। मानो वो दुनिया की सबसे महफूज जगह पहुंच गई हो। कुछ देर बाद दोनों बच्चे भी स्कूल से आ गए। ऑफिस के काम के सिलसिले में पति दो दिन के लिए शहर से बाहर गए हुए थे। वह कल सुबह ही घर लौटेंगे। पति के घर में न होने की कमी उसे बहुत खल रही थी। लगा कि अब पति के लौटने के बाद ही वह सामान्य हो सकेगी और तभी खुद को सुरक्षित भी महसूस कर सकती है। बार-बार उसके ज़हन में सब्जी मंडी की घटना कौंध रही थी। रात होते-होते उसने सारे काम निपटा लिए। भोजन करने के बाद बच्चे भी अपने कमरे में जाकर सो चुके थे।
आज गर्मी कुछ ज़्यादा ही थी। बर्तन धोने के बाद वह नहाने चली गई। क़रीब पंद्रह मिनट के बाद वो बैडरूम के आदमक़द आईने के सामने खड़ी होकर बाल सुखा रही थी। खुले गीले बाल और स्लीवलेस काले रंग की पिंडली तक ऊंची नाइटी में वो बला की खूबसूरत मादक अप्सरा लग रही थी। नहाने से मन हल्का और दिमाग तरोताज़ा हो गया। दोपहर की घटना को अब वह लगभग भूल सी गई थी। बालों पर कंघा फेरते-फेरते मालती फिल्मी गीत गुनगुनाने लगी। तभी अचानक, खट की आवाज़ के साथ बैडरूम का दरवाजा बन्द होने की आहट हुई। उसने फौरन पलटकर देखा। मुंह से दबी सी चीख निकल गई। दरवाज़े के पास एक आदमी खड़ा था। उसके हाथ में क़रीब डेढ़-दो फिट लम्बा लोहे का चाकू चमचमा रहा था। होठों पर क्रूर मुस्कान और आंखों में हवस के शोले साफ झलक रहे थे।
मालती के पैरों तले जमीन खिसक गई। दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। सारा शरीर कँपकँपा रहा था। मारे डर के कंघा हाथ से छूटकर कब फर्श पर गिर गया पता ही नहीं चला। हाथ मे लंबा चाकू देखकर लगा कि अब बेरहम मौत यक़ीनन है। दिमाग़ अचानक तेज़ी से चलने लगा। क़रीब दस क़दम दूर था वो। मदद के लिए शोर मचाया तो मरना तय है। दूसरे कमरे से जब तक बच्चे यहां पहुंचेंगे तब तक तो वो भयानक साइको उसके पेट में चाकू घोंप चुका होगा। और फिर बच्चे...। बच्चों का क्या करेगा। बच्चों का खयाल आते ही उसकी रूह कांप गई। सब्ज़ी मार्केट से पीछा करता हुआ यहां तक आ धमका। मिन्नतें करके गिड़गिड़ाकर उससे रहम की भीख मांगती हूँ , शायद उस पर दया आ जाये। उसने सुन रखा है कि ऐसे लोग सनकी भी होते हैं। पल में कुछ तो अगले पल कुछ और।
अचानक मूड बदल भी जाता है। लिहाजा हाथ जोड़कर मालती ने दो कदम आगे बढा दिए।...लेकिन उसके मुंह खोलने से पहले ही हैवान सरीखे दिखने वाले बदमाश ने लपककर उसे दबोच लिया। गले पर चाकू अड़ाकर उंगली के इशारे से खामोश रहने की धमकी दी और उसे घसीटकर बिस्तर पर पटक दिया। मालती के लिए जैसे समय थम सा गया। वो रात उस पर क़यामत की रात सी गुज़री। बाथरूम में नल से पानी टपकने की आवाज़ सुनकर मालती की आंख खुल गई। सुबह के करीब साढ़े छह बजे थे। कसमसाते हुआ उसने बिस्तर से उठने का प्रयास किया लेकिन उठ न सकी। उसके दोनों हाथ पलंग के सिरहाने दोनों और रेशम की रस्सी से बंधे हुए थे और वो शैतान अब भी उसके बगल में गहरी नींद सोया हुआ था। पलंग से लगी छोटी टेबल पर लम्बा तेजधार चाकू रखा था। अचानक दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई।
मम्मी स्कूल की फीस दे दो। आज आखिरी दिन है। नहीं तो टीचर क्लास के बाहर खड़ा कर देगी। पप्पू की आवाज़ सुनते ही मालती हड़बड़ा गई। फुर्ती से उसने बगल में सोए शैतान को अपनी कोहनी का धक्का देकर जगाने की कोशिश की। ऐ जी...। उठो । जल्दी हाथ खोलो। पप्पू स्कूल जाने के लिए तैयार हो गया है । उसे फीस भी देनी है...। मालती के पति ने बमुश्किल अपनी आंखें खोली और एक हाथ से मालती के हाथ की रस्सी खोल दी। फर्श पर पड़ी नाइटी पहनते हुआ मालती के होठों पर शरारती मुस्कान थी। धीरे से बुदबुदाई...अब उठ भी जाइये।