Shalini Dikshit

Abstract

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Shalini Dikshit

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खो खो खेल

खो खो खेल

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दम शराड का खेल पूरा हुआ, पुरुषों की टोली हार चुकी है अब वह क्रिकेट खेलने चले गए हैं।यही तो मजा है पिकनिक का कि सब साथ मिलकर खेल सकते हैं, काम का और घर से दूर रहने का तनाव कम कर सकते हैं।

"चलो हम भी अब कुछ और खेलते हैं।"- रीटा बोली।

"हाँ हम खो खेलते हैं ।"-परी ने कहा

निशा आज नहीं खेलेगी उसकी पैर की एड़ियों में कुछ दर्द है तो पैरों का आराम देना आवश्यक है।

"मुझसे इतनी उठक बैठक नहीं होगी मैं खो- खो नहीं खेलूंगी।" प्रवीणा बोली।

प्रवीण अभी इस पागल टोली में नई है उसको सारे तौर-तरीके पता नहीं है।

"अरे ऐसा कुछ नहीं है उठक -बैठक नहीं कर रही है।" निशा ने समझाया।

"अच्छा कैसे ?"-प्रवीणा ने पूछा।

"हम अभी(खड़े हो कर) खो खेलेंगे जिसमें दो की जोड़ी में आगे पीछे खड़े रहना है दौड़ने वाला जिसके आगे आकर खड़ा हो जाए और खो बोल दे ,तो उसमें सबसे पीछे वाला भागेगा ।"निशा ने समझाया

"अरे वाह यह तो मैं भी खेलूंगी।"- कहकर प्रवीणा खेलने चली गई।

निशा बैठी हुई सोच रही है बचपन में पसंदीदा खेल था खो -खो शायद उम्र बढ़ने के साथ इतनी उठक -बैठक ना कर पाए तो कैसे हमने खेल का प्रारूप ही बदल लिया ताकि वह आज भी हमारा पसंदीदा रहे और हम उसका आनंद ले सके।

आवश्यकता आविष्कार की जननी है बचपन में पढ़ा हुआ यह वक़्य उसको याद आ गया ।



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