खेत खलिहान और बरसात मेहरबान
खेत खलिहान और बरसात मेहरबान
अब तक जो लोग आकाश की ओर नज़र गड़ाए बैठे थे और इन्द्र भगवान को पूज रहे थे, उनकी प्रतीक्षा का समय समाप्त हुआ और अचानक आकाश पे काले बादल छाए और बीजली ंकड़की और घनघोर बारिश शुरू हो गई। तपती धरती और झूलसे हुए लोगों को निजात मिला। सब कुछ जादु और चमत्कार जैसा हुआ।
लोग बारिश में अपने घर नहीं भागे बल्कि पूरा आधा धंटा वर्षा जल में भींगते रहे, मीठापूर गाँव रेवड़ी, झीड़मुठ और तरैया के लोगों ने भी अपने-अपने गाँव में खुशी मनाई।
मीठापूर गाँव के मुकन्द महतो और उसी के खानदान के लवणी महतो में जमीन में जल-संचय को लेकर जो विवाद था, वो भी कम हुआ। अब तो लवणी महतो के खेत की तरह मुकन्द महतो के खेत में भी पानी है।
अभी तो सुखाड़ से लोग निजात पा रहे थे लेकिन जब बरसात का मौसम था तो भी कलह-तनाव बना ही रहता था। खैर आज तो सारे लोगों के साथ-साथ लवणी महतो भी झुम गा रहे हैं।
सुबह उठकर जब मुकन्द महतो जब खेत में मिले तो एक ही मेड़ पर दोनों ने खड़े होकर कसमें खाई। मुकन्द महतो ने कहा ’’ भाई लवणी, हमलोग व्यर्थ ही एक दुसरे से झगड़ते रहे, गाली-गलौज भी की, हल्की मार-पीट भी की और देखो आज मेरे खेत में कितना पानी भरा हुआ है। आज के बाद लड़ाई बंद। ’’
लवणी महतो ने भी कहा ’’ हाँ मेरे भाई, हमलोग एक दुसरे से बेकार में लड़ते रहे। तुम्हारी खेती के समय पानी की एक बुंद भी तुमको नहीं दी, और देखो तुम्हारे भी खेत में उतना ही पानी भरा है जितना कि मेरे खेत में। इस बार तुम्हारी भी फसल अच्छी होगी। ’’ दोनो एक दुसरे के गले मिले।
सब के खेतों में पूरा पानी भरा था जो फसलों के लिए अच्छा था। उसी रात और भी मुसलाधार बरसात हुई और सबके फसल डुब गए। पानी पगडन्डी से उपर बहने लगी। जो फसलो ंके लिए बिल्कूल भी ठीक नहीं था। सारे लोग भगवान के खेल समझकर भगवान पर ही छोड़ दिए, और समय अच्छा होने की प्रतीक्षा करने लगे।
मगर लवणी महतो ने पगडन्डी काटकर थोड़ा पानी कम करने की सोची और चुपचाप कर भी दिया। इस बात का पता जब मुकन्द महतो को चला तो उसने कहा ’’ भाई लवणी ,ये तो भगवान का खेल है, पूरे गाँव ने इसको भगवान पर छोड़ दिया है। ’’
लवणी महतो ने कहा ’’ तो क्या मैं भी भगवान पर ही छोड़ दुं ? अपनी फसल भी न बचाउं ? ’’
’’ तो क्या अपनी फसल बचाने के लिए मेरे खेत में पानी छोड़ेगा ? मेरी फसल बर्बाद करेगा ? ’’ मुकन्द महतो के मिजाज में गुस्सा स्पष्ट झलक रहा था।
लवणी महतो ने चाल चलते हुए कहा ’’ पागल मत बनो, पानी तो मिट्टी काटती ही है, अपना रास्ता बनाती ही है, अब इसमें मेरा क्या दोष ? ’’
’’ खुब समझता हूँ तुम्हारी चाल, तुम्हारी पगडन्डी पानी के दबाव में नहीं कटी है, सुखीया ने तुमको पगडन्डी काटते हुए देखा है, उसी ने आकर बताया। ’’ मुकन्द महतो ने कहा।
’’ हाँ काटी है तो ? ’’
’’ अगर तुमसे नहीं बन पड़ता है तो चलो मैं भी तुम्हारी मदद करता हूँ, दोनों मिलकर पगडन्डी बांध देते हैं। ’’ लवणी महतो के गुस्से का जवाब मुकन्द महतो ने शांत ढंग से दिया।
’’ ऐसा तो हरगीज भी नहीं होने दुंगा। ’’ लवणी महतो ने कहा।
’’ तुम्हारे खेत का पानी मेरे ही ख्ेात में बह रहा है, मेरा खेत इतना नीचे मंे है कि पानी निकलने का जगह भी नहीं है ’’ मुकन्द महतो ने कहा।
’’ तो मैं क्या करूं ? ’’ लवणी महतो झगड़ा पर उतर आया।
’’ मेरे लाठी में भी घुन नहीं लगा है और न लाठी चलाना ही भूला हूँ। ’’ मुकन्द महतो भी झगड़े पे आ गए। पूरे गाँव के साथ-साथ , उन दोनो के बीबी बच्चों ने भी उनको समझाया, अन्ततः झगड़ा शांत हुआ।
आज सबकी फसल लहलहा रही है,सब खुशी से झुम गा रहे हैं।
मगर लवणी महतो और मुकन्द महतो में छत्तीस का आंकड़ा है।
