Sharama Saayli Giri

Abstract

3.3  

Sharama Saayli Giri

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खौफ!

खौफ!

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वो मेरे सामने खडा था, उसके चेहरे पर कोई भाव न थे। वो बस टकटकी लगाए एकाएक मुझे अपनी लाल आंखों से घूर रहा था।

मैं चिखना चाहती थी पर मेरे गले से आवांज निकलने का नाम ही नही ले रही थी। पसीने से पूरी तरह भीग गई थी मैं यहा तक की हिल भी नही पा रही थी।

कि तभी वो डरावना सा मेरे पैरों को पकड़ने लगा और जैसे ही उसने अपने बफ्र

से भी ठंडे हाथ मेरे पैर पे रखे मैं खौफ से चीखने लगी, चीखते हुए मेरी आंख खुली तो मैं पसीने से भीगी हुई डर से कांप रही थी

तभी एहसास हुआ कि यह सब तो ख्वाब था।

अभी मैं थोड़ा ठीक हुई ही थी कि किसी ने मेरे कधें पे हाथ रखा और मेरे कान पर जोर से काटां मैं जोर से चीखीं, मेरे कान से खून निकल रहा था। मैं दर्द मे थी, कि तभी एक औरत हाथो मे चाकुं लिए मुझे मारने मेरी तरफ आ ही रही थी कि तभी एक बार फिर मेरी आखं खुली।

इस बार मैं खौफ और डर से समझ नहीं पाई कि ये कोई खवाब था या हकीकत ? पर ये खवाब ही था। इस बार खुद को मैंनै रज़ाई मे पूरी तरह ढक लिया। अगली सुबह इसे कोई बुरा सपना सोच मैं सब भूल गई।

पर य हर बार का हो गया जब भी मैं सोने कि कोशिश करती ऐसे ही खौफ और दहशत से भरी निदें मुझे पागल कर देती।

मैं डाकटर के पास नही जाना चाहती थी पर मुझे एक खयाल आया। और अबकी बार जब मैं सोई तो फिर से वही सब होने लगा पर इसबार मैंने सपनो को अपने हिसाब से अंत करने कि कोशिश की।

कुछ खास फर्क तो नहीं आया।

पर अब इन खवाबो से मैंने डरना छोड दिया पर कुछ डर अब भी था मन मे। अब जब भी सोती तो एक नई जंग के लिए। नींद तो जैसे नाता तोड़ गई थी।

पर ये कोई अंत नहीं एक शुरूआत थी एक पूरी कहानी की।


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