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Laxmi Kumari

Drama

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Laxmi Kumari

Drama

तुझे अपना बना लिया

तुझे अपना बना लिया

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प्यारा सा समा ! वो हर तरफ शोर कही हसीं तो कही बच्चों के खेलने व दौड़ने की आवाज। वो समय ऐसा था मानो जैसे बस अब ओर कुछ नहींं चाहिए।छोटी सी उम्र यही कुछ दस साल की रही होगी तब मैं पर प्यार जैसे एहसास को समझने लगी थी। मैं और समझती भी क्यों न आखिर प्यार ही तो करने लगी थी मै उससे। मनिष नाम था उसका और शायद तैराह वर्ष का होगा तब वो जब हमने पहली बार एक दूसरे को देखा। यूं तो प्यार कया है तब हम दोनोंं भले ही न जानते थे पर एहसास जरूर करने लगे थे।

ज्यादा नहीं पर याद है कि हम परीक्षा में साथ में ही बैठते थे। और बस बाते करते खेलते और जब कोई तिसरा हमारे बीच में आता तो बहुत अजीब सा एहसास मन को जझोंर के रख देता। हालांकि तब प्यार जैसे शवद मालूम न थे पर मासूमियत में शायद प्यार ही कर बैठे थे।

परीक्षामें जिस बैंच में साथ में बैठते थे वो बैंच हमारे लिए एक छोटी सी दुनिया थी। एक ऐसी दुनिया जो छल कपट या झूठ से नहीं बलकि मासुमियत से बनी थी और फिर एक दिन वो भी आया जब परीक्षा समापत होने थे। मन में उदासी थी मेरी तो मायूस वो भी था। प्रेमी-प्रेमिका के रिश्ते को तो नहीं जानते पर हमेशा साथ रहने का सोचा था।

पर फिर भी दोनों के मन में तसल्ली तो थी की एक ही स्कूल में रहेंगे। और यही सोच हम परीक्षा के बाद भी सकूल आते रहे और चोरी से एक दूजे को देखते पर अब न तो बात करते थे न बिना किसी बहाने एक दूजे से नज़रें मिलाते।

कभी पुसतक के बहाने से तो कभी कुछ करके उसकी कक्षा में जाती थी मै। तो वो भी कम न था पानी पिने के बहाने से मेंरे पास आता था और पानी पी चुपचाप चला भी जाता। जो भी था पर अचछा था मन में खुशी थी। पर फिर वो हुआ जो हमें मजुंर न था उसके पिता ने किसी कारण उसका सकुल बदल दिया और वो भी बिना कुछ कहे हमेंशा के लिए उस सकूल से ही नहीं बलकि उस सहर भी चला गया।

अब अकेली रह गई थी मैं। धीरे-धीरे समय बिता तो प्यार शब्द के पता चलने पर सबसे पहला ख्याल मनीष का आया। अपने सभी दोस्तों को उसके बारे में बताया और उसे ढूंढने का सिलसिला शुरु हुआ। उसके दोस्तों ने भी फिर कभी उसे नहीं देखा था। आखिर था तो था कहा वो।

ऐसे ही एक दिन सोशल मिडिया पर उसके नाम से एक संदेश आया। उस व्यक्ति ने कहा कि वो मनीष है पर इतने सालों बाद वो इतना कैसे बदल गया कि वो मेरे भी पहचान में न आया। कुछ दिन बात न करने पर मैंने ये जान लिया कि वो मनीष नहीं था बलकि कोई ठग था।

उस दिन के बाद से मैंने यह समझ लिया कि वो कहीं भी हो बस खुश हो प्यार तो मन से है और मन से ही अपना बनाया जाता है।

उसे किसी रूप की या वयक्तिगत तौर पर मौजूद होना भी जरूरी नहीं, बस प्यार कीजिए एक दिन तो वो आयगा ही और न भी आया तो क्या प्यार तो रहेगा ही।


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