आज़ाद है हम ! आज़ाद रहने दो।

आज़ाद है हम ! आज़ाद रहने दो।

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कितनी अज़ीब बात है न आजा़द देश के नागरिक तो बन गए हम पर क्या सच मे इस देश के युवा , इस देश की बेटियां आजा़द है ?

कहानी दो दोस्तों कि है 'लक्षिता और प्रिया' कि लक्षिता और प्रिया दोनों ही मध्ययम व्रग परिवार की थी। वैसै तो प्रिया लक्षिता से दो साल छोटी थी उम्र में पर बातें तो उसकी किसी भी मरे हुए में भी प्राण भर देती। एक दम जीवित और आजा़द ख़्यालात कि थी प्रिया । तो लक्षिता सुलझी हुई, सुदंर और एक प्यारे व्यक्तित्व की लड़की थी।

प्रिया हमेशा वक़्त से लेट रहती तो वही लक्षिता कभी वक़्त के साथ तो कभी वक़्त के पहले रहती। दोनो एक दूसरे को पूरा करते थे।

सब सही था पर आचानक एक दिन प्रिया के पिता की बिमारी से मौत हो गई । प्रिया तो अभी भी स्कूल में पढ़ती थी व जब वो अपने अंतिम स्कूल वर्ष मे थी तब यह सब हो जाने से वो मानो टूट सी गई। लक्षिता को गले लगाकर रोती की 'कितने सपने देखे थे उसने अपने पापा के लिए सब ख़त्म हो गए।'

समाज कि एक नई सच्चाई दोनों के सामने आने लगी थी। एक बिन बाप की बेटी को यह समाज खाने के लिए मचलने लगा था। प्रिया ने लक्षिता कि दोस्ती और प्यार के सहारे खूद को संभाल लिया और अपनी माँँ का ख़्याल रखती। दोनो कि दोस्ती समदंर से भी गहरी होती चली जा रही थी । दोनों युवती बन रही थी, युवा जोश व सपने संजोयें दोनों ने कभी एक दूजें का साथ न छोडने की कसम खाई।

पर समाज ने कब बेटियो के सपनो को पूरा होने दिया है! लक्षिता के घर वाले लक्षिता को प्रिया से मिलने से रोकने लगे थे । रोज नए लडाई ने लक्षिता कि दोसती व इरादे ओर मजबूत किए। पर हर तरफ प्रिया के व उसकी माँ के चरित्र पर कीचड़ उछलने लगे। लोगो को प्रिया के आजा़द सोच खटकने लगी थी। व सबने मानो जैसे लक्षिता और प्रिया की दोस्ती को तोड़ने की ठान ली थी।

आए दिन लक्षिता को डराया धमकाया जाता पर लक्षिता ने मानो जैसे कसम खा ली थी की अब यह दोस्ती मरने पे भी न टूटेगी। लक्षिता ने कभी भी प्रिया के सामने जा़हिर न होने दिया कि उसके लिए कैसी बाते समाज मे चल रही थी। पर फिर समाज़ का एक नया खोफनाक सच ने दोनो की जिदंगी ही बदल के रख दी।

अब जब भी दोनों बाजा़र निकलती तो पुरूष दोनों का पीछा करते व एक दिन तो प्रिया के हौसलें ने तब जवाव दे दिया जब एक रात को मंदीर से घर आते वक़्त किसी ने प्रिया को रात के अधेंरे मे अभद्र तरीके से छूआ।

प्रिया सहम गई थी ।लक्षिता ने प्रिया को समझाया।

पर एक दिन लक्षिता के घर में उसके भाई ने लक्षिता को खूब मारा क्योंकि लक्षिता के पीछे एक लड़के ने बवाल मचा रखा था। पर हर बार की तरह इस बार भी सारि दोष एक स्त्री पर डाल दिया गया। लक्षिता के घर वालों ने बिना सोचे समझे लक्षिता को ही दोषी ठहराया । और आवाज़ उठाने पर उसे खूब मारा गया जिससे लक्षिता के सिर में अंदरूनी चोटे आई। पर लक्षिता ने ये बात प्रिया को न बताई कि उसे चोट लगी थी।

दोनो ने अपने सपनो के लिए शहर छोड़ने का विचार किया पर लक्षिता के घर वालो ने आपत्ति जताई व प्रिया कि माँ ने तो साफ कह दिया कि वो अपनी बेटी को कहीं जाने न देंगी।

लक्षिता के खूब मनाने पर उसे कहा गया कि अभी घर मे पैसे नहीं है, पर फिर आचानक आई एक शादी मे खूब खर्चा किया गया । यह देख लक्षिता बुरी तरह से टूट गई थी। दोनों के घर मे आए दिन नय झगड़े होते उन पर उगलीं उठती। दोनो को लज्जाहीन कहा जाने लगा। लक्षिता अदंर ही अदंर मर रही थी तो वही प्रिया कि माँ से प्रिया का हाल देखा नहीं गया व उन्होंने प्रिया को अपने सपने पूरे करने के लिए दूसरे शहर भेजने का फैसला किया।

प्रिया लक्षिता से दूर भी नहीं जाना चाहती थी क्योंकि दोनों को पता था कि एक दूसरे से दूर होकर वह अधूरी थी। पर लक्षिता ने प्रिया को अपने सपने पूरे करने को कहा। दोनों जुदाई का गम छुपाय अलग हुई।

पर नए शहर कि नई चुनोतियो से लड़ पाना प्रिया के लिए नामुमकिन सा था और हद तो तब हुई जब प्रिया को नया व अकेला पा वहां के लड़कों ने उसके साथ बतमिजी़ करने कि कोशिश की।

जबयह बात लक्षिता को पता चली तो वो समझ गई कि यह समाज हमेशा उने कैद़ करके रखने कि कोशिश करेगा व अकेला होने पर तो किसी को उनके मिटने से भी कोई फरक न पड़ेगा । लक्षिता ने प्रिया के पास जाने का फैसला किया व इस बार वह किसी की भी सुनने को तैयार न थी। लक्षिता ने अपना सामान उठाया व अपने पास थोड़े से जमा रुपये लेकर वह प्रिया के पास चल दी।

इस तरह से प्रिया व लक्षिता ने अपने सपनो व अपने दोस्ती , मान- सममान के लिए एक नई जंग छेड़ दी...।


प्यारे दोस्तों न लड़की होना कोई गुनाह है न अलग सोच का होना। हम आज भी आजाद देश के गुलाम नागरिक है। ग़ुलामी समाज की, गुलामी माता - पिता

की , गुलामी डर की। माता - पिता के लिए कुछ भी कर जाने को तैयार रहते है सिवाए बच्चों को उनके सपने जिने देने के।

लक्षिता व प्रिया की कहानी आज हर लड़की की खूद कि कहानी है। जहाँ कई लक्षिता मरती भी हैं व कई प्रिया को समाज की बली भी चढ़नी पड़ती है।

लक्षिता ओर प्रिया जैसी लड़कियों की निडरता ही देश की तरक्की में सहायक है।

अतंः बस इतना ही कि आजा़द है हम! आज़ाद ही रहने दो।



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