एक सफ़र ऐसा भी।
एक सफ़र ऐसा भी।
उस दिन पहली बार घर से अकेली एक ऐसे सफ़र पर चल पडी जिसकी मंजिल क्या होगी यह मुझे खुद को मालूम न था। जवानी के जोश में मैने अपने सपनों को पूरा करने का ठान लिया था। मै रेलगाडी में एक कोने कि सिट में अकेली बैठ गई। कुछ अफसोस तो कुछ गुस्सा मन में लिए खिडकी से बाहर देखने लगी कि तभी एक लडका उदास आंखो से आंसु बहा रहा था।
जब अधिक हुआ तो मैने उससे पुछा कि ऐसी भी क्या मुसीबत से गुज़र रहे आप जो ऐसे रो रहे? शायद वो भी किसी से अपना दुख बाटना चाहते थे। इसलिए वो अपनी आप बीती सुनाने लगे। मै यही पास का रहने वाला हुँ, अभी एक साल पहले ही कालेज में दाखिला लेकर अपनी प्रेमिका के साथ अपनी एक अलग ही दुनिया बसाये बहुत खुश था मै। मेरा भाई, मै और मां-बाबा हम सब एक बेकरी में काम करके अपना पेट पालते थे।
गरीबी में भी सुख था। पर किसे पता था कि मेरी खुशीया एकाएक खतम हो जाऐगी। मै चुप चाप उनके दुख में खो सी गई। उन्होने आगे कहा, "जाने कैसे प्रेमिका के घर में सब पता चल गया कि हम प्रेम में है। और एक शर्त रखी गई की यदी मै अपने आप उनकी बेटी के जीवन से न गया तो वे अपनी बेटी की शादी करवा देंगे, मै डर गया और अपनी प्रेमिका को मेरा इंतज़ार करने को कहा। वो च़ुप रही। मै दिन रात सोचता कि कैसे खुद को काबिल बनाऊ? तभी मेरे बडे भाई ने मुझे हौसला दिया कि जब तक वो जीवीत है वो हमेशा मेरा साथ देगा। मै भाई के भरोसे मां-बाबा को छोड एक नए शहर के लिए निकल पडा। दिल टूटने का दर्द हर पल मारता है। वैसे आप यु अकेली कहा जा रही है?"
मैने कहा कि मै अपने सपनो को पुरा करने निकली हुं। मेरी कहानी किसी आम भारतीय लडकी कि है जिसे अपना सपना पुरा करने के लिए दुनिया से अकेले ही लडना पडता है और लोगो के सवाल अलग से सुनो।
मेरे इतना कहते ही हम हसने लगे। कि तभी उसी मुसाफिर लडके का मोबाईल बजने लगा उसने फोन उठाया ओर कुछ ही पलो में वो शांत धिरे धिरे आसुं छुपाने लगा, मैने कहा कि, "कुछ हुआ है क्यां?" मुसाफिर लडके ने दबी हुई आवाज में कहा, "मै लडका हुं मुझे रोने का अधिकार नही और न ही मुझमे हिम्मत है।" मै कुछ समझ पाती मुसाफिर लडके ने रेलगाडी की चेन खिंची और जल्दी में रेल से उतर गए। मै भौंचकी कुछ समझ पाने कि कोशिश करती कि मेरा ध्यान उनके मोबाईल में गया जो वे जल्दी में भुल गए थे लेकिन अब गाडी चल पडी थी मैने मोबाईल उठाया और देखा कि उसमे बहुत सारे मैसेज आने लगे कि, "आपके भाई के मौत पर अफसोस है हम कल संस्कार में आपके साथ रहेंगे..."
मेरी आत्मा कांप उठी कि ये सब अचानक कैसे कि तभी एक मैसेज आया जो एक लडकी का था जिसमे लिखा था कि, "आज मेरी शादी है मुझे माफ करना..."
मै अपने आसु को छुपाने कि कोशिश करते करते रेल कि पटरीयो को देखने लगी कि जिंदगी का एक सफर ऐसा भी जहां न लडका न लडकी है तो बस सघंर्ष और पीडा, और रेलगाडी युं ही चलती रही कही अधेंरे से सफ़र कि ओर।
मै फिर दुबारा कभी उस मुसाफिर से न मिली जो अजनबी न था, था तो सिर्फ एक मुसाफिर लडका जिसके जीवन का सफ़र एकाएक गुमनाम हो चुका था।