खौफ कजरी और प्रेम 4
खौफ कजरी और प्रेम 4
पिछले अंक में आपने पढ़ा कि मयंक लच्छो से बात करके उसके जीवन के बारे में जानना चाहता है मगर कुछ बातें बता कर लच्छो उसे वहां आने से मना करती है अब आगे..
लच्छो से मुलाकात का खौफ अभी उसके मन में समाया हुआ था। वह यह समझ ना पा रहा था कि वह लच्छो थी या कजरी?? कजरी जीवित है या वह भी मर गई?? कजरी का जीवन बहुत ही खौफ और रहस्य भरा प्रतीत होने लगा?
बैड पर लेटा लेटा मयंक लच्छो द्वारा कही हुई बातें सोचने लगा। सच में कितना अत्याचार होता है इन महिलाओं पर? लेकिन सब खामोश!! कोई मदद के लिए भी हाथ नहीं बढ़ाता!! कितने परिवार पलायन कर जाते होंगे!! शायद हत्या, आत्महत्या तथा पलायन के पीछे यह भी एक बड़ा कारण होता होगा!! कब तक झेलना पड़ेगा यह दंश बेचारी इन महिलाओं और इनके परिवारवालों को!! क्या सचमुच कोई मसीहा यह सब बदल पाएगा?? सोचते सोचते उसे नींद आ गई !
मयंक के कुछ दिन यूं ही बीते। वह प्रतिदिन गांव के लोगों से मिलकर रग्घू के परिवार के बारे में जानकारी जुटाता लेकिन कुछ ही दिनों में उसने महसूस किया कि रग्घू के परिवार से किसी को कोई हमदर्दी न थी। जो हुआ उसके लिए उनके मन में कोई पश्चाताप तक न था। सामाजिकता और मानवता के कारण मयंक के मन में कजरी के लिए दया भाव उमड़ आया। एक बार फिर खौफ के बीच उसने कजरी से मिलने का निश्चय किया। वह अंदर से डरा हुआ था क्योंकि लच्छो की चेतावनी भी उसे याद थी। फिर भी उसके मन में दया भाव, उत्सुकता और प्रेम ने उसे उस शमशान की ओर जाने के लिए अग्रसर कर दिया। वह जानता था कि यह मिलन खतरों से खाली नहीं है किंतु फिर भी वह एक बार फिर से सच्चाई जानना चाहता था। उसके कदम शमशान की ओर बढे जा रहे थे कि अचानक चक्रवात जैसी हवा आई जिसने मयंक को अपने घेरे में ले लिया मयंक घबरा गया!! तभी छन ... छन की आवाजें उसे सुनाई दी। थोड़ी देर में चक्रवात थम गया। मयंक अब कजरी के कमरे की ओर बढ़ा तो वहां देखा कजरी अकेली बैठी बैठी बात कर रही थी। लेकिन इधर उधर देखा पर वहां कोई ना था। वह घबराया....... पर हिम्मत बांधते हुए उसने आवाज दी.... कजरी..... कजरी
आवाज सुनते ही जैसे कजरी की निद्रा भंग हुई। उसने पलट कर देखा.... अरे सर.. आप.? आज फिर से ? क्यों आते हैं आप यहां??
यह भला कैसा प्रश्न किया तुमने कजरी!! क्या मैं तुमसे मिलने नहीं आ सकता??
नहीं सर यह बात नहीं है पर यहां आपकी जान को खतरा है।
कजरी मुझे बेहद अफसोस है कि मैं अपने विचारों से गांव वालों के मन में तुम्हारे लिए कोई दया भाव पैदा न कर सका। उन्हें तो तुम्हारे जीवित होने पर ही शक है। वह तो मुझे ही पागल समझते हैं। पर आज मैं भी इस सच्चाई को जानना चाहता हूं जो तुम्हारे परिवार के बारे में है।
अचानक से तेज आंधी आई। चारों ओर धूल एवं अंधेरा छा गया। मयंक की आंखों में धूल भर गई। वह झपकती आंखों से श्मशान भूमि की ओर देखने लगा। पर अचानक से वह उस दृश्य को देखकर डर गया जब कुछ प्रकाशित छायाएं उस कमरे की ओर बढ़ रही थी। वह कजरी से लिपट गया और एक पल में कई छाया उसके पास आ गई और उसे कजरी से हटाकर दूर पटक दिया। पटकने से लगी चोट ने मयंक के मुख से चीख निकाल दी । वह कुछ संभलते हुए बोला..... "कजरी ..क्या यह सच्चाई में कभी न जान पाऊंगा कि तुम्हारे साथ क्या हुआ?? मैं तो तुम्हारा भला करना चाहता हूं? पर शायद यह आक्रोशित आत्माएं आज मुझे जीवित न छोड़ेंगी? कजरी में तो तुम्हें सहारा देना चाहता था? हर व्यक्ति चाहे वह किसी जाति व धर्म का हो खराब व दूषित विचारों वाला ही नहीं होता?? पर शायद इस समाज की तरह में इन आत्माओं को भी समझाने में असमर्थ रहा !! अगर मेरा जीवन रहा तो तुम्हारी मदद जरूर करूंगा !! यह मेरा वचन है!!"
मयंक द्वारा दिए गए वचन को सुनकर आंधी थम गई। रोशनी गायब हो गई । चारों ओर सन्नाटा छा गया।
कजरी रोने लगी.... वह बोली "बाबू मुझेसे भूल हो गई! जिस तरह ऊंची जाति के लोगों ने मेरा शोषण किया.... मुझे उनसे नफरत होने लगी!! आज मैं आपके प्राण ले लेती... किंतु आपकी बातों ने मेरा मन बदल दिया!! अब मैं आपको वह सारी बातें बताऊंगी जो तुम् मालूम करना चाहते हो!!"
"लेकिन कजरी क्या तुम चुड़ैल हो... !!??"
" नहीं बाबू मैं कजरी नहीं..... लच्छो हूं!! दरअसल बाबू उस रात जब दबंग मेरी और कजरी की इज्जत लूटना चाहते थे तो मैंने भी और इसके पिता ने उन दुष्टों को का विरोध किया लेकिन उन्होंने हम सबका गला दबाकर मरा समझकर छोड़ दिया मैं मेरा लड़का और इसके बापू तो मर गए मगर कजरी की कुछ सांसे चल रही थी। हम सभी की आत्माएं शरीर छोड़ चुकी थीं। देवदूत हमें ले जाने के लिए तैयार खड़े थे। मैंने उनसे प्रार्थना की कि वे कजरी को भी अपने साथ ले चलें मगर उन्होंने कहा.. कि उन्हें कजरी को अपने साथ ले जाने का हुक्म नहीं मिला है!! मेरा मन घबराया!! क्या होगा मेरी लाडली का?? क्या यह भी मेरी तरह अपने लूटी इज्जत का तमाशा देख कर जिंदा रहेगी ?? मेरा मन.. मां का मन था बाबूजी !! वह अपनी बच्ची के लिए द्रवित हो उठा !! मैंने देवदूतों से बहुत प्रार्थना की मगर उन्होंने मेरी एक न सुनी। वे तो यही कहते रहे कि हमें तो भगवान के हुक्म का पालन करना है। हम सब को भगवान जी के पास ले जाया गया। उन्होंने मेरे बच्चे और कजरी के बापू को दूसरी योनि दे दी मगर मैंने उनसे प्रार्थना की भगवन मुझे कुछ दिनों की मोहलत दे दो।"
प्रभु ने कहा... तुम्हारा शरीर एक बार छूट चुका है!! तुम्हारी उम्र पूरी हो चुकी है !!अब तुम्हें किस तरह मोहलत दे दूं !!
मैंने फिर से विनती की.... प्रभु कुछ तो रहम करो!! एक दुखियारी मां पर! कैसे जिएगी मेरी अकेली, अभागन बेटी इस संसार में !! मेरी आंखों से अश्रु धारा बहने लगी। प्रभु को मुझ पर दया आ गई!!
उन्होंने कहा ... लच्छो एक ही तरीका है.... कि तुम्हारा अगला जन्म कुछ समय के लिए रोक दिया जाए और तुम्हारी आत्मा यूं ही भटकती रहे बिना शरीर के!!
मैंने उनके इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और मैं अपनी बेटी के निकट आने के लिए आतुर हो उठी ।"
क्या करेगी लच्छो की आत्मा कजरी के निकट पहुंच कर! क्या कजरी को संभाल पाएगी उसकी मां...... जानने के लिए पढ़ते रहिए अगला भाग क्रमशः......

