खौफ कजरी और प्रेम 3
खौफ कजरी और प्रेम 3
मयंक कजरी की बातें सुनकर सन्न रह गया। उसका हाल बेहाल हो गया। वह सोचने लगा इसे मेरे हर काम की खबर है तब तो यह सच में चुड़ैल ही है। गांव वाले सच ही कह रहे थे । बिना वजह मैंने हिम्मत दिखाकर अपनी मौत को गले लगा लिया।
कजरी के हाथ उसके गले की ओर धीरे-धीरे बढ़ने लगे। वह बहुत घबरा गया और चिल्लाया..... "नहीं कजरी... मुझे माफ कर दो।"
कजरी ने कहा ....."अरे डरो नहीं सर... मैं कोई चुड़ैल थोड़े ही हूं जो आपको मार डालूंगी। मैं तो आपके गले से इस चीटे को हटा रही थी जो आपका खून पिए जा रहा है। पता नहीं आपको यह कब से काट रहा था । कजरी ने हाथ से पकड़ कर चींटे को हटा दिया। मयंक की धड़कनें बढी हुई थी। वह तेज तेज सांसें ले रहा था। कजरी ने उसे प्यार से बैठाते हुए कहा..... आप घबराइए नहीं सर... बताइए आप क्या पूछना चाहते हैं??"
मयंक ने एक टक कजरी को देखा तो उसके मन को शांति मिली। वह बोला... "कजरी तुम्हारे साथ बहुत अन्याय हुआ! पर एक बात समझ नहीं आई.... कि गांव के लोग कह रहे थे कि जब तुम लोग इस कमरे में रह रहे थे तो अचानक एक रात सभी मरे पाए गए!! किंतु ......तुम तो ......."
"हा... हा... हा.... अभी आती हूं सर जी...." कजरी उठकर मयंक को कुछ दिखाने के लिए अंदर चली गई !! फिर बाहर आते ही बोली ...."बाबू गांव वाले तो वह कहते हैं जो उन्होंने देखा और मैं वह बता रही हूं जो मैंने भोगा!! जिस रात हम लोग मरे पाए गए... जानते हैं उस रात क्या हुआ ??"
"क्या... हुआ... कजरी!! वही तो मैं जानना चाहता हूं"
"बाबू... यह दुनिया बहुत जालिम है !! हम औरतों को कैसे कैसे जीना पड़ता है... यह हम ही जानते हैं !! जिस रात हम लोग मरे ...उस रात हम लोग मरे नहीं... मार दिए गए.. वह भी गला दबाकर!!"
"गला दबाकर.... लेकिन किसने.... और क्यों...."
"क्यों ....इस ऊंच-नीच की भी गजब कहानी है। आज तक मैं अपने दिल में यह राज दबाए बैठी रही क्योंकि मुझे लोक लाज थी और अब मैं स्वतंत्र और ताकतवर हूं तो आज तुम्हें बता रही हूं। बाबू... हम लोग इस गांव में बहुत समय से रह रहे थे!! वैसे भी ऊंची जाति के गांव में रहना हम नीची जाति वालों के लिए आसान नहीं होता। हमारी स्थिति बहुत गई गुजरी होती है। हमारा न मान, ना सम्मान, और ना मर्यादा । मुंह सिल कर रहना पड़ता है हमें । पल पल हमें और हमारे परिवार को मर मर कर जीना होता है। पर हम तब भी रहते हैं क्योंकि सदियों से यह सब सहने की आदत जो पड़ गई है। यह ऊंची जाति के दबंग तो हमारी इज्जत से खिलवाड़ करते रहते हैं!"
"लेकिन.........." मयंक कुछ और कह पाता. लच्छो बोल उठी
" लेकिन.... क्या बाबू.... पति और परिवार के जीवन की खातिर यह कड़वा जहर हम औरतों को पीना ही पड़ता है !! यह पंडित पुजारी सब दिखावा करते हैं। ना तो यह स्वयं पवित्र हैं और ना यह मंदिर को पवित्र रख सकते हैं अरे जिसकी आत्मा ही अपवित्र हो बाबू वह किसी को क्या पवित्र करेगा। कितनी बार तो हम औरतों की इज्जत को तार-तार कर चुका है यह पुजारी ।"
"लेकिन ....क्या कोई कुछ जानता नहीं .... इन बदचलनों के बारे में ।"
" सब जानते हैं बाबू.... पर बहती गंगा में डुबकी तो सभी... लगाना चाहते हैं ना... और जो उसे साफ करना चाहता है... उसे रास्ते से हटा ही दिया जाता है,.. जिससे गंगा कभी साफ और पवित्र ही ना हो पाए और वे उसे गंदा कहकर समाज में हमेशा अपवित्र ही बना रहने दे । क्योंकि उनको भी तो अपनी मर्दानगी दिखानी होती है हम गरीब और कमजोरों पर।।
उस रात भी जब हम लोग कमरे में थे तो कुछ दबंग गंदी नियत से मुंह काला करने हमारे इस कमरे में आ गए। जब हमने और हमारे पति ने इसका विरोध किया और उन्हें पहचान भी लिया तो उन्होंने हमारे पूरे परिवार का गला दबा दिया।
लेकिन.... कजरी..... तुम्हारा परिवार..... पर तुम्हारी तो.. अभी शादी भी नहीं हुई!! लोग कह रहे थे कि रघु अपनी बीवी और बच्चों के साथ शमशान वाले कमरे में रहता था। हा... हा..... हा.... की आवाज गूंजने लगी!! मयंक डर से खड़ा हो गया! गूंजती हुई आवाज और हवा में बिखरे बाल। अजीब सा होता चेहरा देखकर मयंक के पसीने छूट गए। वह लड़की बोली... बाबू.... मैं लच्छो हूं .....कजरी नहीं
हा.... हा.... हा!"
" कौन लच्छो ......" मयंक ने घबराते हुए पूछा।
कजरी की मां..... "पर तुम घबराओ नहीं.... मैं तुम्हें कुछ ना कहूंगी ।
पर तुम यह सब बात मुझसे क्यों कह रही हो ??"
" क्यों कह रही हूं... अरे बाबू....तुम एक नेक दिल इंसान हो! इंसान के रूप में, मैं जिन बातों को कभी किसी से न कह सकी वह आज तुमसे कह दिया। इस संसार में दुखिया की बातें सुनना भी कौन चाहता है, मदद की तो बात दूर है बाबू। आवाज का यह कहते कहते गला भर आया। "
"पर लच्छो...." मयंक कुछ और कहता तभी...
"बाबू.... इतना सब कहते लच्छो डरावनी आवाज निकाल कर रोने लगी । तभी वहां गोल गोल चक्रवात घूमने लगे । थोड़ी देर में लच्छो बोली... बाबू भगवान सब जन्म सब को दे पर गरीब अछूत में औरत का जन्म कभी किसी को ना दे।"
चक्रबातों से डरावनी आवाजें आने लगी। बड़ाभयानक और डरावना दृश्य हो गया। मयंक की रूह कांपने लगी। वहां वह और खड़ा होना नहीं चाहता था। डर से घबराकर वह बोला मैं जाऊं... लच्छो जी"
"बाबू.... अब तुम जल्दी निकल जाओ वरना तुम्हारे प्राण संकट में पड़ जाएंगे! तुम भी ऊंची जात के हो और यह प्रेत आत्माएं किसी भी पल तुम्हारे प्राण ले सकती हैं। अब तुम जाओ.... फिर कभी इधर मत आना बाबू!! वरना अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा!!
मयंक पहले ही घबराया हुआ था वह तेज कदमों से वहां से निकल चला। आज भी छन छन की आवाजें उसे अपने पीछे सुनाई दे रही थी। पर आज उसमें पीछे मुड़ कर देखने की हिम्मत भी न थी। वह समझ चुका था कि कोई आत्मा ही उसका पीछा कर रही होगी। वह जल्द बाइक के निकट आया और स्टार्ट करके अपने घर चला गया। घर जाकर उसने अपने कपड़े उतारे और बेड पर लेट गया। लच्छो से मुलाकात का खौफ अभी भी उसके मन में समाया हुआ था। वह यह ना समझ पा रहा था कि वह लच्छो थी या कजरी?? कजरी जीवित है या वह भी मर गई ??"
उसे कजरी का जीवन बहुत ही खौफ और रहस्यों से भरा प्रतीत होने लगा।
क्या मयंक जान पाएगा कजरी के जीवन रहस्य को?? क्या उठेगा पर्दा इन सभी रहस्य से जानने के लिए पढ़ते रहिए अगला भाग क्रमशः......

