Priyadarshini Arya

Horror Fantasy

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Priyadarshini Arya

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खौफ़ की वो रात

खौफ़ की वो रात

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पैंसठ वर्षीय महेश राणा जी अपनी पत्नी के साथ व उनके परिवार में दो बेटा-बहू व एक पोती और दो पोते के साथ हंसी-ख़ुशी उनका जीवन व्यतीत हो रहा था..।

छोटी बहू अंकिता पेशे से फैशन डिजाइनर थीं..इस वजह से वो अक्सर घर से बाहर ही रहा करती

थीं।और उनके बच्चों की देखभाल दादा दादी व बड़ी बहु मिलकर किया करते थे..।

मंगलवार के दिन राणा जी के घर बजरंगबली की पूजा होती थीं तो परिवार के सभी सदस्य इस दिन शाम की आरती में सभी इकट्ठा मौजूद रहा करते थे और मिलजुल कर भगवान महावीर जी की पूजा अर्चना करते थे...।और रात्रि में पूरा परिवार एक साथ भोजन करने के साथ साथ अपनी मन की बातें शेयर किया करते थे..।और एक दूसरे की मन की बातों को समझा भी करते थे एवं अपनी अपनी राय मशवरा भी रखा करते थे..।

आज भी मंगलवार का दिन था और रात्रि के भोजन के बाद छोटी बहू अंकिता अपने पिता तुल्य ससुर जी से कहती है..,"पापा जी मैंने एक घर देखा है जो मुझे बहुत पसंद है वो घर शहर से दूर थोड़ा एकांत में है और मुझे एकांत में घर लेना बहुत ही पसंद है ...तो अगर आप की सहमति हो तो क्या मैं वो घर खरीद सकती हूं..?"।

राणा जी बहुत ही खुश मिजाज इंसान थे.. इसलिए वह अपनी बहू की मन की बात को समझते हुए कहते हैं..," हां... बेटा क्यों नहीं...अगर वो घर तुम्हें पसंद है तो जरूर खरीदो ...लेकिन बेटा हमसब साथ में भी तो रह सकते हैं और वैसे भी तुम ज़्यदातर घर से बाहर ही रहती हो..फिर ऐसे में.... बच्चों की देखभाल कौन करेगा...?"।

"नहीं... नहीं...पापा जी ऐसा नहीं है ,मैं वो घर इसलिए लेना चाहती हूं... ताकि हम सब मिलकर वहां कभी-कभी जाकर छुट्टियां मना सकेंगे खूब मनोरंजन व मस्ती कर सकेंगे.... अच्छी-अच्छी यादों की तस्वीर बनाकर एल्बम में कैच कर सकेंगे..!"।

राणा जी अपनी बहू की बात सुनकर बहुत खुश होते है और बोलते हैं...," अरे...!वाह अंकिता बेटा यह तो बहुत ही अच्छा आइडिया है ...।और मुझे तुम्हारा आईडिया बहुत ही पसंद आया तो तुम अगले ही दिन उस घर की खरीदारी कर लो अगर तुम्हें पैसे की जरूरत होगा तो मुझे जरूर बताना..."।

"ठीक है... पापा जी मैं उस घर के मुनीब जी से बात करके घर के पेपर व कागजात अच्छे से चेक करा कर खरीदारी की बात कर लेती हूं..", अंकिता खुश होती हुई बोलती है..।

घर की खरीदारी के बाद... पंडित जी के अनुसार पूजा विधि की एक अच्छा सा दिन का मुहूर्त निकलवा कर पुरे परिवार एक साथ पूजा होने वाले दिन से पहले वाले दिन में यानी कि बृहस्पतिवार के दोपहर के वक्त उस घर में पूजा समाग्री व सजावट की समान लेकर जाते हैं...।

परिवार के सभी लोग मिलकर घर की खूब सजावट व घर की सभी वस्तुएँ को अपनी अपनी जगह पर अच्छे से सेट करते है...।इन सब कामों को करते-करते गहरी शाम हो जाती है और वे सभी काफी थक जाते हैं..।सभी नाश्ता पानी करके घर के बीच हॉल में ही सभी साथ में एक ही जगह पर सोने का व्यवस्था करते हैं..।और कुछ देर बातें करके सो जाते है..।

रात के एगारह बज चुके थे...अंकिता को बहुत जोरों की प्यास लगती है और वो उठकर रसोई के तरफ पानी पिने के लिए जाने लगती है...तभी उसे एहसास होता है.. शायद..! मेरे पीछे कोई आ रहा है और वह अपने पीछे मुड़कर देखती है.. पर कोई नहीं रहता है ...,"शायद..! मेरा वहम था..", ऐसा सोचकर वह आगे बढ़ने लगती है...।फिर कुछ देर बाद ही... उसे किसी छोटे बच्चे की रोने की आवाज सुनाई पड़ती है..,"इस समय किसी छोटे से बच्चे की रोने की आवाज यहां ! लेकिन यहाँ तो पास के अगल बगल में कोई भी घर नहीं है..। या फिर ऐसा तो नहीं कोई राहगीर हो...,हां...ऐसा हो सकता है।मुझे लग रहा है ...कोई राहगीर ही है...।मैं अभी घर के बाहर जा कर देखती हूं..हो सकता है उस राहगीर को किसी चीज की जरूरत पड़े तो शायद मैं उसके काम आ सकूं..",ऐसा सोचती हुई अंकिता घर के बाहर की तरफ आती है ..और वह देखती है..., एक औरत घूंघट में अपनी छोटी सी रोती हुई बच्ची को चुप करा रही है..," चुप हो जा.. मेरी बिटिया चुप हो जा..रात गहरी होने को है ,सन्नाटा सा छाने को है..., तेरी भूख की प्यास लाल लाल ताजा खून से बुझने को है..तू चुप हो जा...",।

उस अनजान औरत की बात सुनते ही.. अंकिता की बदन के रौंगटे खडे हो जाते है और वो बहुत डर जाती है।वो क्षण भर में ही डर की वजह से पसीने से लथपथ हो जाती है।वो घर के अंदर आना चाहती है.. लेकिन डर की वजह से उसके कांपते हुए पैर चलने में लड़खड़ा रहे थे और अचानक से तेज-आंधी-तूफान के साथ-साथ जंगली सियार के बोलने की आवाज "ऊऊऊ...उउउउउउ...."से अंकिता बहुत ज्यादा डर जाती है और उसकी दोनों आंखें बड़ी बड़ी होकर बाहर की तरफ दिखाई देने लगती है ...।वहाँ पर रखे समान अपने आप ही हिलने-डुलने लगते है...और कुछ देर बाद ही वो डर की वजह से बहुत ज्यादा जोर से चिल्लाती है और बेहोश होकर वहीं जमीन पर गिर जाती है...।

अंकिता के इतना अधिक जोर से चिल्लाने पर घर के सभी सदस्य नींद से उठकर जग जाते है और देखते है..घर के बाहर काफी तेज आंधी तूफान के साथ साथ सियार बोलने की आवाज सुनते है..।ये सब देख..सभी सदस्य अंदर ही अंदर डर जाते है ...लेकिन कोई किसी से कहता नहीं है ...।फिर राणा जी बच्चों से कहते है...,"बच्चों डरने की जरूरत नहीं है...अभी ये जगह हम सब के लिए अनजान व नया है और अंकिता यहीं कही होगी अभी मैं उसको आवाज लगाकर बुलाता हूं ...,"बहु अंकिता कहाँ हो..? यहाँ हॉल में आओ ...",लेकिन वो नहीं आती है ..।फिर सभी सदस्य आवाज लगाते हुए घर के अंदर ही ढूंढने लगते है...पर ..वो नहीं मिलती है...।

राणा जी अपने परिवार के बाकि सदस्य से कहते है..,"देखो... रात बहुत अधिक हो चूका है..और ये जगह हम सभी के लिए नया , अनजान और एकांत में भी है..तो थोड़ा संभल कर बहु को ढूंढना है ...।हम दो-दो जन मिलकर साथ में अलग अलग जगह पर अंकिता को ढूंढ़ना होगा..और जिसे भी पहले मिल जाए... वो बाकि के सदस्य को तेज आवाज में बता देगा..और सुनो ये तीनों बच्चे यहीं हॉल में रहेंगे ..इनको कही भी जाने की जरूरत नहीं है..और सुनो बेटा ये लो मोबाइल और भगवान बजरंगबली की हनुमान चालीसा सुनो..,हनुमान चालीसा सुनने से कोई भी भूत-प्रेत निकट नहीं आते है ..।ठीक ...है तो बच्चों...तुम तीनों यहीं साथ में रहो..हम सब अभी आते है.."।

राणा जी के कहने पर दो-दो जन साथ में अंकिता को ढूंढने लगते है..।कोई घर के बाहर आता है ..तो..कोई छत पर..।राणा जी खुद स्वयं घर के पीछे के तरफ जा कर देखने लगते है..।

घर के बाहर काली अँधेरी रात को देख बड़ी बहू बहुत ज्यादा डर जाती है और डरते हुए स्वर में कहती है..,"मम्मी जी यहाँ तो मुझे बहुत ही डर लग रहा है ,आप अपने बड़े बेटा को आवाज लगाकर यहाँ घर के बाहर बुला लिजिए..।मैं यहाँ सिर्फ आपके साथ सुनसान अँधेरी जगह पर अंकिता को ना ढूंढ पाऊँगी.."।

सासू मम्मी ,बड़ी बहू का हाथ पकड़ कर कहती है..,"हुम्म्म..! चुप कर , भला डर कैसा..!? मेरे रहते तुझे डरने की जरूरत नहीं है...।मैं तो अकेली भी आ जाती लेकिन तेरे ससुर जी के वजह से तुझे अपने साथ लेकर आई ...।वरना मैं ही अकेली काफी थीं...अंकिता बहु को ढूंढने के लिए.."।

दोनों बेटे छत पर आते है और छत पर आते ही बड़ा भाई हँसता हुआ कहता है...,"छोटे तुझे क्या लगता है...?! यहाँ छत पर अँधेरे के काली रात में अंकिता आई होगी..."।और कहते ही दोहरी आवाज में बोलने लगता है..,"आजजआजज... कोईईईनन्नहींबबबबचेचेगगगगा...

मैं सबको मार दूंगी और गरम गरम खून पीकर अपनी भूख मिटाऊँगी...वर्षो से भूखी इंतजार कर रहीं थी...आज तुम सब पुरे परिवार को देख मैं बहुत खुश हूं...हा..आ..अअअ ",इतना कहते ही...बड़ा भाई अपनी आंखे लाल पिली करता हुआ...छोटे को मारने के लिए उसके बदन के करीब बढ़ने लगता है..और ..बड़ी बड़ी नाख़ून से उसको चोट पहुंचाने की कोशिश करने लगता है...",।

छोटे भाई अपने बड़े भाई की हालत को देख...काफी डर जाता है और वहाँ से भागता हुआ जल्दी जल्दी सीढ़यों से उतरने की कोशिश करता है...लेकिन डर की वजह से उसका  पैर सीढ़ियों पर लड़खड़ाने लगता है और वह फिसल कर सीढ़ियों से नीचे गिरने लगता है...।

घर के बाहर अँधेरे में डर की वजह से दोनों सास ,बहु का अंदर ही अंदर हालत खराब रहता है और अचानक अंकिता की पैर से सासू माँ टकरा जाती है...और...वो अपनी बहू के तन से चिपकती हुई ...बहुत ज्यादा जोर से चिल्ला कर कहती है...,"बड़ी बहू मुझे बचाओ...यहाँ देखो..निचे भूत है..।मुझे बचा लो बड़ी बहू .."।

सासू मम्मी की बात सुनते ही बड़ी बहू ओर भी बहुत ज्यादा डर जाती है...और डरती हुई निचे के तरफ देखती है ...,"मम्मी जी ये देखिए...निचे जमीन पर भूत नहीं बल्कि अंकिता है..."।

"हां...क्या कहा तुमने ,हां...सच में ये तो अंकिता ही है।अच्छा सुन तू ऐसा कर जल्दी से घर के अंदर जा और सबको आवाज लगा दे अंकिता मिल चुकी है और सुन पूजा की थाल में गंगा जल की शीशी रखी है वो भी लेती आ...",सासू मम्मी , बड़ी बहू से कहती है...।

इतने में अंकिता होश में आकर उठ खड़ी होती है और भूतनी की जोर जोर भयानक आवाज में हँसती हुई कहती है...,"हहहहहहअअअअअ...ईई..रुक जाओ..इतनी भी जल्दी क्या है..?गंगा जल लाने की...,पहले अपनी सासू मम्मी को मरते हुए तो देख लो...हांहहहहआआ..."।

अंकिता का ये रूप देख...वहीं दोनों बेहोश होकर गिर जाती है..।और वो घर के अंदर बच्चों के पास आने लगती है ...।उस वक़्त बच्चे हनुमान चालीसा सुन रहे थे...तो उसकी आवाज अंकिता के कान में पड़ते ही...और वो अभी चौखट पार ही करने वाली थी तभी ...वो हनुमान पाठ की वजह से मूर्छित होकर निचे जमीन पर गिर जाती है..।और गिरते ही अपने स्वरूप में आकर तेज आवाज लगाती है..,"पापा जी मुझे बचाये.."।

राणा जी अपनी बहू अंकिता की आवाज सुनते ही...वो तेजी में दौड़ कर घर के अंदर आते है और देखते है..,"अंकिता चौखट पर मूर्छित गिरी परी है..और उसके बाल बिखरे हुआ एवं तन का कपड़ा भी सही ढंग से ना रहता है..।

अंकिता की ऐसी हालत देखकर राणा जी समझ जाते हैं बहू के साथ कुछ ना कुछ गलत हुआ है..,"लगता है किसी काला साया का इस घर पर छाया है ...और वो हमसबको यहाँ रहने नहीं देना चाहती है...",फिर वह जल्दी से गंगाजल लेकर उसके बदन पर छिड़काव करके बच्चों की सहायता से उनके पास रख देते हैं ..और बाहर आकर अपनी पत्नी और बड़ी बहू के चेहरे पर पानी का छिड़काव करके उनको होश में लाकर घर के अंदर लाते है ..फिर इसी तरह अपने दोनों बेटों को भी काली शक्तियों से बचा कर घर के अंदर लाते है और पूजा पाठ के साथ हनुमान चालीसा की पाठ सभी सुनते हैं और गंगाजल का छिड़काव भी सभी के बदन पर किया जाता है ...।

कुछ समय बाद रात का अंधेरा भोर की लालिमा में बदल जाती है और सबके खामोश चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान सूर्य की किरणों की तरह फैलती हुई..उसी वक्त उस घर को छोड़...अपने पहले वाले घर पर आकर अपने परिवार का साथ व खुशियों भरा प्यार से सबका जीवन वो ख़ौफ़ वाली रात को भूलकर नया खूबसूरत लम्हा व अहसास के साथ जीवन-जीना शुरू करते है।


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