आधुनिक संस्कार
आधुनिक संस्कार


रामपुर के गाँव में शर्मा जी के घर पर नई बहुरियां की मुंह दिखाई रश्म होने वाली थी , सभी काकी बहना अम्मा बच्चे बूढ़े जवान सुंदर-सुंदर नए वस्त्र पहन कर तैयार हो रहे थे..।नई बहुरिया भी खूब अच्छे व सजीला भड़कीला जरी कढ़ाई वाली लहंगा पहन कर तैयार हो जाती है। घर की सबसे बड़ी बुजुर्ग महिला दादी अम्मा उसके पास आती है और उसकी मुंह दिखाई रश्म विधि के लिए उसको पलंग पर बिठाकर एक चुनरी से उसके चेहरा पर लंबा घूंघट करके कहती है..," सुन बहुरियां तू घुंघट में ही रहना और जो कोई भी तेरा चेहरा घूंघट उठाकर देखे ओर तुझे उपहार दे ओर वो तुझसे उम्र में बड़ी हुई तो तू उसके पांव छूकर प्रणाम करना यह हमारे घर की सदियों से चली आ रही रीति-परंपरा है । तो तू भी हमारे घर के इस संस्कार को जरूर निभाना । मैं जानती हूं तू पढ़ी लिखी है इन सब बातों को नहीं मानती लेकिन तुझे आज मेरी बात माननी ही होगी..."।
बहुरिया की मुंह दिखाई रस्म विधि शुरू हो जाती है । सभी मेहमान बारी बारी से आते हैं और घुंघट उठाकर देखते हैं और बहुरियां सबके पैर छू छू कर प्रणाम करती रहती है..। ये सब करते हुए वो थकने लगती हैं... तो नई बहुरियां अपने मन में सोचती है...क्यूं ना मैं अपने घुंघट को खोलकर कर बैठ जाऊ..!! जो कोई भी मुझे देखने आए तो मैं अपने दोनों हाथ जोड़कर उनको प्रणाम कर लूँ । दादी अम्मा के पूछने पर मैं कह दूंगी .. मेरा ऐसा करना ये आधुनिक संस्कार है ओर इस संस्कार में आपके घर के रीति परंपरा भी कायम रहेगी..।
फिर क्या था...!! नई बहुरिया ने ऐसा ही किया और दादी अम्मा भी उसके व्यवहार से खुश हो गई। ।