Priyadarshini Kumari

Abstract Inspirational

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Priyadarshini Kumari

Abstract Inspirational

बददुआ एक हाय.. !

बददुआ एक हाय.. !

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यह कहानी एक छोटे से गांव की सत्य पर आधारित है । कहानी के नाम और पात्र काल्पनिक है ।

छोटे से गांव के मुखिया चरण ठाकुर के यहां रामभजो के नाम का एक व्यक्ति का काम करता था ।रामभजो , चरण ठाकुर के तबेले के काम करने के बाद उसके घर के बाहर के सभी काम को देख रेख करता और कभी कबार उसके खेत में भी जाकर काम करता था ।और काम करने के बदले जो थोड़े बहुत पैसे मिलते थे उसी पैसे से रामभजो अपना घर का खर्चा चलाया करता था ।

रामभजो बहुत ही अच्छे विचार का ईमानदार एवं सीधे-साधे व्यक्ति था । बस अपने काम से मतलब रखता और उसके बाद अपने घर पर रहता था और अपने मालिक चरण ठाकुर की सेवा में लगा रहता था ।

रामभजो के घर पर उसकी पत्नी फुलवा और एक बेटी चंपा थी । चंपा बिटिया अब सयानी हो गई थी ।और अपनी बेटी के लिए मन ही मन वर ढूंढने की तलाश में था ।

"अरी ओ चंपा की अम्मा खाना बन गवा "रामभजो अपनी पत्नी फुलवा से पूछता है ।

"अरे नाही चंपा के बापू अभी खाना नहीं बना है । तनिक देर ठहर जावो खाना तैयार हो जाने दो "फुलवा जल्दी-जल्दी चूल्हे में लकड़ी को फुक मारती हुई कहती है ।

"अच्छा तो ठीक है तू आराम से खाना बना तब तक हम मालिक के तबेले की साफ सफाई करके आ रहें है "।रामभजो अपनी पत्नी फुलवा से कहता है ।

"अरे नहीं चंपा के बापू , अभी जाने की कउनो जरूरत नहीं है । तू वहां जाकर बस काम में ही लग जावोगे ।उहा जाने के बाद ना तो तुम को खाने की फिक्र रहती है और ना ही घर पर आने की फिकर रहती है  ।दाल बन गया है ।हम जल्दी जल्दी रोटियां सेक दे रहें है तुम दाल रोटी खा लो फिर मालिक के यहाँ चले जाना "।फुलवा प्यार से रामभजो से कहती है ।

"अच्छा अच्छा ठीक है खालेंगे दाल रोटी ।और चंपा घर में कहीं नहीं दिखाई दे रही कहीं गई है क्या ?"। रामभजो घर में इधर-उधर देखते हुए पूछते हैं।

"हां उसकी सहेली मुनिया ससुराल से अपने पति के साथ आ रही है तो उसी के स्वागत में गई है "।

"अच्छा तो ई बात है "।

"हाँ इहे बात है और तुम कहीं देखे कि नहीं अपनी बेटी खातिर कउनो अच्छा सा कमासुत लड़का "।

"अभी नहीं पर हमको भी पता है हमार बिटिया सयानी हो गई है । हमको भी चंपा की फिकर है और जल्द ही उसके लिए अच्छा सा वर ढूंढ के उसका शादी कर देंगे "।

"जब पता ही है तो काहे नहीं देखें ।अब कितना और वक्त लगाएंगे ढूंढने में "। फुलवा, रामभजो से पूछती है।

"अरे फुलवा लड़का के घर पर जाए के खातिर आपन हाथ में पैसा भी तो होखे के चाही ।हम बिना पैसा के ई सब कैसे करब । तू भी कभी समझ लिया कर फिर आगे की बात बोलती रहना "।

" हां इहो बात ठीक है ।लेकिन तू अपना मालिक मुखिया से पैसा मांग लो ।फिर कुछ ज्यादा काम करके मुखिया के कर्ज जमा कर देना । फुलवा ,रामभजो को सलाह देती हुई करती है ।

"हाँ हाँ फुलवा ठीक है हमारे दिमाग में तो यह बात आया ही नहीं ।हम आज ही मालिक से बात करके उनसे कुछ पैसा मांग लेंगे  "। राम भजो खुश होता हुवा फुलवा से कहता है ।

 रामभजो जल्दी जल्दी दाल रोटी खाकर अपने मालिक के यहाँ आकर तबेले की साफ सफाई करके ।दो गाय की दूध बाल्टी में दूहकर मुखाइन को दे देते हुए कहता है ," मालकिन आज मालिक घर पर नहीं दिख रहे है । कहीं गए हैं क्या ?"।

"अरे हाँ रे रामभजो ,तेरे मालिक घर पर ही थे ।लेकर अभी ही कुछ देर पहले उनके मोबाइल पर बड़का बेटा तरुण ठाकुर के ससुर जी का फोन आया और बिना बताएं ही कही चले गये ।वैसे आज तुम मालिक को काहे खोज रहें हो कउनो जरूरी बात करनी है "।मुखियाइन , रामभजो से पूछती है ।

"हाँ हाँ मालकिन बहुते ही जरूरी बात करनी है हमको मालिक से पर कोनो बात नहीं जब मालिक आएंगे तो हम उनसे बात कर लेंगे "। रामभजो मायूस होकर कहता है ।

"अरे रामभजो काहे उदास हो रहे हो ।हमको बताओ तुम अपनी समस्या हम भी दूर कर सकते है  "।

"नाही  मालकिन आप रहें दो  । हम मालिक से ही बात कर लेंगे "।

" अरे रामभजो काहे संकोच करते हो बतावो "। मुखियाइन फिर से रामभजो से पूछती है ।

"क्या हुवा अम्मा किस की समस्या दूर करने में लगी हो ?"। मुखिया के बड़े बेटे तारण ठाकुर अपनी मां से पूछता है ।

अम्मा मुस्कुराती हुई ," अरे बिटवा अब रामभजो हमसे कुछ कही तभी तो हम उसकी समस्या को दूर कर सकते हैं "।

"अम्मा तुम रहने दो हम ही रामभजो से बात कर लेते हैं । तुम घर के अंदर जाओ तुम्हारी बड़की बहुरिया तुमको बुला रही है "।

"हाँ रामभजो अब बोलो  कौन सी बात के बारे में अम्मा से बात कर रहें थे "। तारण ठाकुर, रामभजो से पूछता है

"रहने दो बड़के मालिक हम आपके पिता श्री से बात लेंगे  "। रामभजो ,तारण ठाकुर को इनकार करते हुए कहता है ।

"काहे रामभजो , हम मालिक नहीं क्या  ? जो तुम अपनी समस्या हमको नहीं बता सकते हो "। तारण ठाकुर , रामभजो को अपनी बात में फुसलाता हुवा पूछता है ।

" अरे नहीं नहीं बड़े मालिक आप भी मालिक हो "।

"हाँ तो हमको बतावो अपनी समस्या "।

"बड़े मालिक हमको कुछ पैसे उधार में चाहिए थे "।

"हाँ पैसे  उधार चाहिए लेकिन क्यूँ  ? और का करीहे पैसों का तुम्हरे घर का खर्चा पानी तो आराम से चल ही जाता है फिर का करीहे और अधिक पैसों का  "।तारण ठाकुर , राम भजो के तरफ शक भरी निगाहों से देखता हुआ पूछता है

"मालिक हमार बिटिया चंपा सयानी हो गइल बिया तो बिटिया के लड़का देखे खातिर हाथ में कुछ तो पैसा हो के चाही और अगर लड़का ढंग के मिल जाई तो बिटिया की शादी भी कर देंगे " ।

"अरे ! वाह ! तोहार बिटिया बड़ी हो गई ।यानी कि जवान हो गई है "। तारण ठाकुर हंसता हुवा रामभजो से पूछता है ।

"हां मालिक सियान हो गई है हमार बिटिया और अगले लग्न में हम आपन बिटिया के शादी करें के चाहता बानी "।

"रामभजो ई त बड़ी खुशी की बात है । पर तुमको लड़का खोजने का कोई जरुरत नहीं "।

"हम समझे नहीं मालिक आप क्या करना चाहते हो "।

"मतलब कि हमरे नजर में तुम्हारी बिटिया के लिए एक बहुत ही अच्छा लड़का है तो हम आज शाम को तुम्हारे घर पर तुमरे बिटिया को देखने आएंगे फिर उसके बाद लड़के वालों से सारी बात करके शादी के सभी खर्चा करने की मेरी जिम्मेदारी होगी "। तारण ठाकुर राम भजो से कहता है ।

रामभजो बहुत ही खुश हो जाता है और बड़े मालिक के सामने हाथ जोड़ता हुवा कहता है ,"बहुत मेहरबानी बड़े मालिक बहुत मेहरबानी हम सब समझ गए हम जल्दी-जल्दी काम सब निपटा कर के घर जाते हैं और फुलवा से सभी बातें बताते है वो सुनते ही बहुते खुश हो जायेगी "।

रामभजो शाम होने से पहले ही अपने घर पर पहुंचकर फुलवा से सभी बातें बता देता है ।फुलवा जल्दी जल्दी घर की साफ सफाई करके बिटिया को तैयार होने को कहती है ।

बिटिया चंपा सज धज कर बिल्कुल खिलतीं हुई फूलों की तरह बहुत ही खूबसूरत दिखने लगती है ।


थोड़ी ही देर के बाद बड़े मालिक तारण ठाकुर भी रामभजो के घर पर आ जाते हैं ।

रामभजो जल्दी से कुर्सी रखता हुवा अपने गमछे से पोछता हुवा बैठने को कहता है ।

बड़े मालिक कुर्सी पर बैठते हुए बोलते है ,"रामभजो बुलावो आपन बिटिया को "।

"जी मालिक फुलवा अरी वो फुलवा "।

इतने में चंपा एक थाल में चाय बिस्कुट लेती हुई आती है "।

चंपा की भोली सूरत पर तारण ठाकुर की नजर पड़ते ही उठ खडे होते है और कहने लगते है ,"अरे रामभजो तुमरी बिटिया तो बहुत ही सुन्दर है "।

" जी मालिक बस प्रभु की कृपा तो हम बात पक्की समझे "।

"अरे रामभजो पक्की ना । समझो की अब शादी ही हो गइल "।

"जी मालिक का बोले   हम समझे नाही "।

"कुछु ना रामभजो बात पक्की ही समझो पर एक ठो अरचन है "।

"कइसन अरचन मालिक हमके बताई "।फुलवा

तारण ठाकुर से पूछती है ।

"ऊ का है ना फुलवा देवी लड़का वाला के कोई दूसरी लड़की पसंद आ गयी है तो हम चाहते है की चम्पा को लेकर अभी ही उनके पास जाकर चम्पा को दिखा कर सभी बातें कर ले ताकि शादी मैं लगने वाली अड़चन टल जाए और शादी की बात पक्की हो जाए "। तारण ठाकुर चंपा के तरफ देखते हुए बोलता है ।

"पर मालिक अब तो शाम हो गइल । चंपा बिटिया शाम को केले कैसे जाई  " रामभजो ,मालिक से पूछता है।

"तुम शाम होने की फिकर मत करो । चंपा को लेकर हम पहले लड़के वाले के घर जाएंगे फिर चंपा को दिखा कर पूरी अच्छी तरह से बात करके हम उनको शादी के लिए राजी कर लेंगे । फिर चंपा को अपने घर पर ले कर आ जाएंगे और जब तुम सुबह काम करने मेरे घर पर आना तो चंपा को अपने साथ लेते आना "। तारण , ठाकुर रामभजो से कहता है ।

तारण ठाकुर के बात सुनते ही रामभजो मन में सोचने लगता है ," कैसे बिटिया को जाने दूँ इसके साथ वो भी अकेले "।

"अरे क्या सोच रहे हो ? रामभजो हम पर विश्वास करो हम तुम्हें बिटिया के साथ कुछ गलत होने नहीं देंगे समय बर्बाद हो रहा है तुम हां कहो तो हम ले जाए "। तारण ठाकुर, रामभजो को विश्वास दिलाता हुआ कहता है ।

" ठीक है मालिक जैसा आप कहो "। रामभजो डरते हुए अपनी बिटिया को ले जाने के लिए हामी भर देता है ।

तारण ठाकुर ,चंपा को अपने साथ गाड़ी में बिठा कर ले कर चले जाते हैं । पर वह लड़के वाले के घर नहीं जाते हैं ।तारण ठाकुर अपना दूसरा घर गेस्ट हाउस पर चंपा को ले जाते हैं ।चंपा गाड़ी से उतरते ही देखती हैं यहां तो कोई नहीं और ठाकुर से पूछती है ,"ठाकुर यहां तो कोई नहीं दिख रहा । आप हमें कहां पर लेकर आए हैं ?"।

"हां हमें भी पता है यहां कोई नहीं दिख रहा है लेकिन तू परेशान ना हो और घर के अंदर चल लड़के वाले को फोन कर दिए हैं वह सभी आते ही होंगे "। तारण ठाकुर, चंपा को अपनी बात का दिलासा देते हुए कहते हैं ।

चंपा ,तारण ठाकुर के बाद के झांसे में आ जाती है और बिना सोचे समझे घर के अंदर चली जाती है ।थोड़ी देर के बाद ठाकुर भी घर के अंदर प्रवेश करते ही घर का मेन दरवाजा बंद करते हुए चंपा के पास जाकर उसको अपनी बाहों में भरते हुए कहते हैं ,"जानेमन हम तो कब से तुम्हारे लिए तड़प रहे थे ।इस पल का बेसब्री से इंतजार कर रहें थे  । आज तुमको अपनी बाहों में पाकर मैं बहुत ही ज्यादा खुश हूं । ऐसा लग रहा है मेरी बाहों में मेरा जन्नत है "।

चंपा , ठाकुर को खुद से दूर करती हुई कहती हैं ,"ठाकुर यह आप क्या कर रहे हो ? और आपने घर का दरवाजा क्यों बंद किया ?"।

"क्यों भोली बन रहीं हो चंपा । क्यों दरवाजा बंद किया ? यह बात तुम भी अच्छी तरह से जानती हो ।अब और मुझे ना तड़पावो और अपनी पहली जवानी का प्यार मुझपर लुटा दें मैं तुझे मालामाल कर दूंगा "।ठाकुर ,चम्पा को चुंबन लेते हुए कहता है ।

चम्पा ठाकुर को अपने पास से दूर धकेलती हुई कहती है ," दूर हो जा दुष्ट भेड़िए , जंगली जानवर, बैहसि राक्षस सोचा भी कैसे की तू , मुझे छू भी पाएगा । मेरे पास आने की कोशिश भी मत करो वरना मैं चिल्ला चिल्ला कर सभी गांव वालों को यहां पर बुला लूंगी "।

तारण ठाकुर, चंपा की एक भी बात नहीं सुनता है और फिर से चंपा के करीब आकर उसको अपनी बाहों में भरता हुवा कहता है ,"अब इतना भी ना तड़पाओ चंपा रानी जल्दी से मेरे पास आ ।नहीं तो मुझे जबरदस्ती भी करना आता है "।

चंपा ठाकुर को लाख मना करती है पर ठाकुर नहीं मानता और उसके साथ अपनी मनमानी हवस का प्यार जबरदस्ती करने लगता है ।सारी रात चंपा के साथ ठाकुर मनमानी करता रहता है । और चंपा ,तारण ठाकुर के गंदी बैहसि लालच हवस का शिकार बन जाती है । चंपा कुछ नहीं कर पाती है वह अपनी इज्जत को नहीं बचा पाती है ।

अगली सुबह होते ही ठाकुर , चंपा से कहता है ," चंपा अपने बदन पर के कपड़े अच्छे से ठीक कर ले ।तेरे बापू को मैं भेज रहा हूं और एक बात अच्छी तरह से सुन ले यहाँ से चुपचाप घर चली जाना किसी को कुछ भी बताया तो मैं तेरे बापू को जान से मार दूंगा "। इतना कहते ही ठाकुर अपने पहले घर पर चला जाता है ।

घर पहुंचते ही घर के दरवाजे पर रामभजो को खड़ा देख कहता है ,"अरे रामभजो बड़ी सुबह सुबह जल्दी आ गया "।

" हां ठाकुर अपनी बिटिया को लेने आए हैं कहां है मेरी बिटिया "। रामभजो ,ठाकुर से अपनी बिटिया के बारे में पूछता है ।

"हां तेरी बिटिया गेस्ट हाउस वाले घर में है जा जा गेस्ट हॉउस जा और अपनी बिटिया को लेकर घर चला जा "। ठाकुर मनमुटाव किए हुए बोलता है ।

तारण ठाकुर का उस तरह से बोलना रामभजो को अच्छा नहीं लगता फिर भी उसकी बातों पर रामभजो गौर नहीं करता है और तेजी में गेस्ट हाउस के पास पहुंचता है और गेस्ट हाउस के बाहर देखकर चिल्लाता हुआ कहता है ,"बिटिया चंपा का तुझे क्या हुवा ? तू इस तरह नीचे जमीन पर क्यों अकेली पड़ी है ? और तेरे शरीर से इतना सारा खून कैसा निकला पड़ा हुआ है ?"।

रामभजो की चिल्लाने की आवाज सड़क पर गांववासी सुनते ही दौड़कर रामभजो के पास आते हैं और बिटिया चंपा की हालत देखकर सभी कहने लगते हैं ,"लगता है बिटिया चंपा के साथ बहुत ही कुछ गलत हुआ है तभी तो इसने आत्महत्या कर ली है "।

आत्महत्या की बात सुनते ही रामभजो को समझ में आ जाती है कि चंपा बिटिया को साथ क्या हुआ है ? और वो अपनी बिटिया का यह हालत देख बर्दाश्त नहीं कर पाता है और उसी वक्त घर के अंदर जाकर पंखे से लटक कर खुद भी आत्महत्या कर लेता है ।

घंटे बाद फुलवा देवी भी घटनास्थल पर आ पहुंचती हैं ।

और सभी गांव वाले उसकी बेटी और उसके पति के बारे में सभी बातें बता देते हैं ।फुलवा देवी अपनी बिटिया और पति की लाश देखकर दौड़ती हुई मुखिया जी के पास जाती है और सभी बातें बताती है । और इंसाफ करने को कहते हैं ।

मुखिया जी सभी बातें जानते हुए भी फुलवा की बातों को अनसुना करते हुए घर से निकाल बाहर कर देते हैं ।

फुलवा पागलों की तरह रोती चिल्लाती रहती है पर उसकी मदद कोई नहीं करता है । फुलवा फिर से मुखिया जी के पास जाकर बार बार इंसाफ की गुहार लगाती रहती है इंसाफ कर दो इंसाफ कर दो पर मुखिया जी की फुलवा की एक भी बात नहीं सुनते और कहते है ,"तुम्हारी सारी बातें झूठी है निकल जावो यहाँ से "।

उसी वक्त फुलवा अपनी हाथ की दोनों अँजुरी में मिट्टी उठाती हुई मुखिया जी को बद्दुआ देती है ,"अरे

वो मुखिया हम तुमको बद्दुआ देवत है तुम भी इसी तरह अपने ही बेटे के करनी पर तुम भी खुद की बचाओ का गुहार लगाओगे पर तुम्हारी कोई ना पुकार सुनेगा । तू अपनी जान बचाने के लिए चिल्लाएगा तेरी जान कौनो नहीं बचाएगा और तू बेमौत मारा जायेगा और तू इसी मिट्टी में राख़ बनकर मिल जायेगा । मेरी ही तरह तेरी भी पत्नी बेवा हो जाएगी तेरा सारा घर घर परिवार तहस-नहस कर रहे जाएगा । एक रोती बिलखती हुई मां और पत्नी की हाय की बद्दुवा तुझे लग जाएगी ।आज के बाद से तू पल पल मरेगा तू एक पल भी सुकून से ना रह पाएगा । तेरा हर चैन सुकून छिन जाएगा ये एक रोती हुई माँ की दर्द की हाय है "।

मुखिया जी अपने आदमियों के सहारे फुलवा को अपने घर से बाहर निकलवा कर बाहर फेंक देते हैं ।

जैसे तैसे करके फुलवा गांव वालों की मदद व सहायता से अपने पति और बेटी की पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार कर देती है ।और हर रोज मुखिया के बर्बादी के लिए बद्दुआ करती रहती है ।

छः महीने के बाद गांव में पुलिस की गाड़ी आती है  फुलवा सड़क किनारे बैठी रहती है ।पुलिस की गाड़ी रूकती हुई और उसी गाड़ी में से एक इस्पेक्टर निकल कर फुलवा को फोटो दिखाते हुए पूछता है ,"काकी इस फोटो को देखो और पहचानो तो क्या यह लड़का किसी गांव का है ?"।

"अ रे हां इंस्पेक्टर बाबू ये लड़का इसी गांव का है ।पर हुआ क्या ? इंस्पेक्टर बाबू "। फुलवा इंस्पेक्टर साहब से पूछती है ।

"काकी तुम इस लड़के के पास हमको ले जाएगी"। इस्पेक्टर साहब फुलवा से कहते हैं ।

फुलवा खुश होकर कहती है ,"हां हाँ बाबू पर हुवा का बताया नहीं "।

"तुम गाड़ी में बैठो और मुखिया के घर पर चलो मैं सभी बातें बताता हूं "।

फुलवा इंस्पेक्टर बाबू के साथ गाड़ी में बैठ जाती है ।

इंस्पेक्टर फुलवा से कहता है ,"काकी यह लड़का डीआईजी की बेटी को भगाकर अपने साथ लाया है । और हम सब डीआईजी की बेटी को ढूंढने यहां आए हैं। और उस लड़के को भी । डीआईजी की बेटी की शादी होने वाली थी लेकिन वह लड़का मटकोर पूजा के दिन ही स्मृति को भगाकर अपने साथ ले आया और इसतरह से डीआईजी की बेटी की शादी रुक गयी और वो  इतने गुस्से में है कि उस लड़की के पूरे खानदान को तबाह करके ही रहेंगे "।

फुलवा हंसते हुए कहती है ," हां यह तो होना ही था"।

"क्या कह रही हो ?काकी हम तुम्हारी बात समझे नहीं "। इंस्पेक्टर फुलवा की बात सुनकर चौंकता हुवा पूछता है ।

" अरे बाबू तुम नहीं समझोगे रहने दो ।एक मां की बद्दुआ है पत्नी की हाय है मुखिया के परिवार पर और आज यह सत्य होने वाली है । मैं तो बहुत खुश हूं । बस गाडी रोक रोक बेटा वो देख सामने वाला घर मुखिया का है अब तुम सब जावो ।मैं यहीं खड़ी होकर उनसब का पकड़े जाने का नजारा देखूंगी "।

इंस्पेक्टर ,मुखिया के घर पर जाकर धावा बोलता है । और अपनी छानबीन जारी कर देता है । पर मुखिया का छोटा बेटा रत्नेश ठाकुर घर में कहीं नहीं मिलता है और नाही डीआईजी की बेटी स्मृति भी मिलती है । दोनों के ना मिलने पर इस्पेक्टर साहब मुखिया जी को पकड़ कर गाड़ी में बिठाते हुए घरवालों से कहते हैं ," ले जा रहा हूं मुखिया जी को अगर इनकी सलामती चाहते हो तुम सभी तो जहां कहीं भी तुम्हारा बेटा रत्नेश और डीआईजी की बेटी स्मृति को छुपा कर रखे हो तो जल्द से जल्द पुलिस स्टेशन में दोनों को लेकर आओ ।नहीं तो अगर हम ढूंढ लिए तो ऐसा मुकदमा उस पर दर्ज करेंगे कि सारी उम्र वो रत्नेश ठाकुर जेल में सड़ता रहेगा "।

पुलिस इंस्पेक्टर इतना कहकर मुखिया जी के घर से से चले जाते हैं ।

मुखिया जी के घर में हाहाकार मच जाती है । और छोटे बेटे रत्नेश की खोजाई सभी रिश्तेदार के यहां फोन करके पूछताछ करके होने लगती है । पर रत्नेश किसी भी रिश्तेदार के यहां नहीं मिलता है और नाही उसका कोई अता पता चल पाता है कि वह कहां है ।

इधर थाने में इंस्पेक्टर मुखिया जी की डंडे से खूब धुलाई पिटाई करता हुआ पूछता है बता ," अपने बेटे का पता कहां छुपा कर रखा है अपने बेटे को "।

पर मुखिया जी को इसके बारे में कुछ भी खबर नहीं रहती है तो वह बोलते हैं ,"मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं पता है मेरा बेटा कहां है और मैं यह भी नहीं जानता कि मेरा बेटा डीआईजी की बेटी को भगाकर अपने साथ ले गया है । मैं निर्दोष हूं मुझे छोड़ दो मुझे जाने दो अगर मेरा बेटा घर पर आएगा तो मैं खुद उसे अपने हाथों से पकड़ कर थाने में लेकर आऊंगा । इंस्पेक्टर तुम मेरी बात का विश्वास करो मैं सच कहता हूं "।

मुखिया जी की बात इस्पेक्टर साहब सुनकर अनसुना करते हुए और भी लाठी उन पर बरसाने लगते है और

इस तरह मुखिया जी के लाठी से बहुत पिटाई होने की वजह से आधी रात को उनकी मौत पुलिस थाने के जेल में हो जाती है ।

अगली सुबह डीआईजी के आदेश पर मुखिया जी के पार्थिव शरीर को उनके गांव घर पर भिजवा दिया जाता है । और मुखिया के घर एवं गांव के सभी घर पर पुलिस के निगरानी रखने का आदेश रहता है इस तरह पुलिस कई टुकड़ों में बट कर गांव में इधर उधर पूछताछ करने लगते हैं ।

गांव में मुखिया जी की पार्थिव शरीर को देखकर सभी हाय हाय करते हुए बोलते हैं ," आखिर में फुलवा देवी का बात सच हो ही गया । उसकी हाय ही इस परिवार को लग ही गई है ।उसी ने बद्दुआ दिया था इस परिवार का नाश हो जाने के लिए और देखो हो भी गया आज मुखिया जी नहीं रहे क्या पता आगे क्या क्या होगा ?"।

मुखिया जी का देहांत हो गया है इस बात का खबर फुलवा देवी को लगते ही उसके दिल को बड़ी ठंडक मिलती है और दौड़ती हुई मुखिया जी के घर पर आती है । उसके बड़े बेटे तारण ठाकुर को आवाज लगाते हुए बोलती है ,"घर से बाहर निकल रे तारण ठाकुर और देख अपनी बर्बादी का नजारा मैंने कहा था ना । मेरी हाय तुम सब को बर्बाद कर देगी । मेरी बद्दुआ तुम सबको लग जाएगी तुम सब को खा जाएगी ।अब तुम सभी भी तड़प तड़प के मातम मनावो जिस तरह मैं अपनी बेटी और पति के लिए मातम बनाई थीं  अब तू भी अपने बाप के लिए मातम मना हाँ हाँ हाँ

आज मैं बहुत खुश हूं । भगवन आज मेरी मौत भी आ जाए तो हँसते हँसते दुनियां से चली जाऊ अब मैं चैन से मर सकती हूं मुझे मेरा इंसाफ मिल गया है "।

फुलवा देवी के जोर जोर हँसने पर तारण ठाकुर बहुत ही गुस्सा में आ जाता है और उसी वक्त रिवाल्वर निकालकर सारी की सारी गोलीया फुलवा देवी के ऊपर चला देता है ।गोलिया लगते ही उसी वक्त फुलवा देवी का देहांत हो जाता है ।पुलिस का पहड़ा अभी खत्म नहीं हुआ था उसके गांव में गोलियां चलने की आवाज सुनते ही पुलिस इंस्पेक्टर मुखिया के घर आकर तारण ठाकुर को गिरफ्तार कर कर पुलिस थाने ले कर चले जाते हैं ।

दो दिन के बाद मुखिया के छोटे बेटे रत्नेश ठाकुर अपने पिताश्री की मृत्यु होने के खबर सुनते ही स्मृति को अपने साथ लेकर छुप छुपाते हुए चोरी से घर पर आता है ।

रत्नेश की मां दोनों को साथ में देखते ही रोती हुई कहती है ," बेटा यह तूने क्या कर दिया ? तेरे ऐसा करने से तेरे पापा अब इस दुनियां में नहीं रहें ।तेरे बड़े भाई को पुलिस पकड़ कर थाने में ले गए है फुलवा देवी के कत्ल के इल्जाम में ।बेटा अब तू ही बस एक मेरा सहारा है तू ही इस घर के इकलौता दीपक है तू अपने आपको मत बुझने दे तू जा कहीं जाकर छुप जा और पूरे छः महीने तक वापस घर पर नहीं आना "।

"लेकिन माँ , मैं स्मृति से प्यार करता हूं ।और स्मृति भी मुझसे प्यार करती है इसलिए हम दोनों ने निर्णय लिया है कि हम शादी करेंगे " । रत्नेश ठाकुर अपनी मां से कहता है ।

मुखियाइन रोती हुई कहने लगती है ,"नहीं बेटा अब यह शादी नहीं हो सकती है । इसके पापा इस बात पर बहुत ही नाराज है और गांव में चप्पा चप्पा पर पुलिस बैठा हुआ है तुम दोनों की तलाश में ।पुलिस वाले किसी भी वक्त यहां आते होंगे ।बेटा तुम यहां से चले जा । मैं स्मृति को पुलिस वाले के हवाले सौंप दूंगी और पुलिस वाले स्मृति को इसके पापा के पास पहुंचा देंगे । बेटा मैं तुझ से कह रही हूं तू जल्दी यहां से चले जा "।

स्मृति , रत्नेश से कहती है ,"हाँ रत्नेश तुम्हारी मां सही बोल रही है ।मेरे पापा अब तुम्हें और मुझे नहीं छोड़ने वाले तुम चले जाओ नहीं तो तुम भी मारे जाओगे "।

इतने में पुलिस वाले मुखिया के घर के दरवाजे खटखटाने लगते हैं ।मुखियाइन समझ जाती है पुलिस वाले आए हैं ।

मुखियाइन जल्दी से अपने बेटे को एक बक्से में बंद करके ताला भर देती है । और स्मृति को अपने साथ लेकर दरवाजे के पास आती हुई गेट खोलकर स्मृति को पुलिस के हवाले करती हुई कहती है ," मेरा बेटा कहीं भाग गया है वो यहां पर नहीं है । आप चाहे तो घर में तलाशी ले सकते हैं पर मेरा बेटा नहीं मिलेगा ।वह यहां से जा चुका है । आपकी डीआईजी की अमानत बेटी स्मृति को आप ले जा सकते हैं "।

पुलिस मुखियाइन के बात पर विश्वास नहीं करते और घर में इधर उधर ढूंढने लगते हैं । लेकिन कहीं भी रत्नेश ठाकुर नजर नहीं आता है ।पुलिस को नजर ना आने पर पुलिस वाले मुखियाइन से कहता है ," मेरी नजर बराबर तुम लोग के घर पर रहेगी ।तुम सब अपने बेटे को ज्यादा दिन तक छुपा कर नहीं रख सकते हो "।

पुलिस वाले स्मृति को अपने साथ ले जाकर डीआईजी के हवाले कर देते हैं ।डीआईजी फिर से स्मृति की शादी उसी लड़के से करवा देते हैं जहां उसकी शादी पहले तय की गई थी । इस तरह धीरे-धीरे डीआईजी अपने बदला लेने का भावना छोड़ देते हैं ।

पूरे दो साल बीत जाने पर रत्नेश ठाकुर अपने मां के पास आ जाता है और गांव में ही अपनी मां के संग रहने लगता है ।


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