मुमकिन
मुमकिन


"सुनो सावली आज तुम्हें लड़के वाले देखने आ रहे है, तुम अच्छे से तैयार हो जाना इस बार कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए। वैसे भी तुम्हारे पापा बहुत परेशान रहते हैं आजकल " सावली की माँ रंजना जी कहती है..।
सावली गुस्से में कहती है.., "पर.. उसका क्या.. माँ जो मेरी जिंदगी से जुड़कर भी और मेरे नाम के साथ उसका नाम लगकर भी, मेरा.. न रहा
कैसे भुला दूं सब कुछ, मुझे नहीं करनी शादी।"
" लेकिन बेटी कब तक उसको याद करती रहोगी, अब ये मुमकिन नहीं की वो तुम्हारा हो जाए, पता नहीं तुम्हें याद भी करता होगा या नहीं, वो तो अपनी दुनिया भी बसा चुका होगा...।
पूरे पाँच साल हो गए राजन को यहाँ से जाते हुए।
अब तुम अपनी उम्मीद छोड़ ही दो, कब तक यूँ इंतज़ार करोगी राजन का... और समाज वाले को हम क्या जवाब दें...? हर रोज पूछा करते हैं.. बिटिया की शादी कब तक करनी है।"
"मम्मी आपको तो दुनिया की पड़ी है और मेरी भावनाओं का क्या...." सावली बोलती है..।
"अब जावो बातें न बनावो... और समय पर तैयार हो जाना... लड़के वाले आते ही होंगे "रंजना जी सावली से कहती है ।
सावली की आँखें राजन की याद में नम हो जाती है..। और उसके होंठों पर राजन का नाम होता है...। उसके चेहरे पर साफ साफ उदासी झलक
रहीं थीं...। सावली अपने कमरे में तैयार होने लगी..…..। और सावली करे भी तो क्या करे..? अब वो भी समझ गई कि शायद सावली-राजन का मिलन मुमकिन नहीं।
इधर लड़के वाले घर पे आ गए, सावली के पिता बहुत ही खुश थे और हो भी क्यू न उनकी लाडली बेटी का आज रिश्ता जो तय होने वाला था ।
सावली की माँ भी बहुत खुश थी, वह सावली को लेकर लड़के वाले के पास आई।
सावली की नज़रें नीचे की तरफ झुकी हुई थी,
तभी लड़का ने आवाज़ लगाया.., "सावली नज़रें तो उपर करो..."।
सावली लड़के की आवाज़ सुनते ही... वह तेज़ी से उठ लड़के यानी वो राजन के गले लग गई...और ये सोचा भी नहीं की यहां सभी घरवाले बैठें हैं..। सावली के आँखों से खुशियों की आँसू बूंदें बनकर बरसने लगी....। अगले ही पल वो
शर्माती हुई राजन के माता-पिता के पैर छूते हुए आशीर्वाद लेने लगी और मन-ही-मन कहने लगी
सावली-राजन का मिलन मुमकिन हैं।।।