जिम्मेदारी का एहसास
जिम्मेदारी का एहसास


बड़ा भाई--देख भाई पहले तू ले जा माँ को, पहले तेरी बारी है।
छोटा भाई--तेरी भी तो माँ है और तू बड़ा भी है मुझसे तो, तू पहले लेजामाँ को अपने साथ।
काका --अरे अरे क्या हुवा? क्यूं झगड़ रहे हो आपस में तुमदोनो सगे भाई हो। जो भी मसला है उसे आपस में सुलझा लो ।
बड़े भाई-- नहीं काका कुछ नहीं बस मैं बोल रहा था कि अभी मेरे पैसे की तंगी चल रही है तो छोटा भाई पहले ले जायेगा माँ को।
काका-- अच्छा तो ये बात है। कुछ बातें मैं भी कहना चाहता हूं पहले तुमदोनो सुन लो फिर कहना किसे अपनी माँ को अपने पास रखनी है आज इतने ठाट बाट से रहते होये सब किसका देन हैं। तुम्हारी माँ पिता काऔर आज तुम्हारी बारी आई अपनी जिम्मेदारी निभाने की
तो तेरी माँ, तेरी माँकर रहें हो। तुमलोगों की खुशियां और उज्ज्वल भविष्य के लिए दिन रात एक कर अपना खून पसीना बहाकर तुम्हारे तकदीर को सींचा है इन्होंने। जब एक बूढ़ी माँ की देखभाल की बारी आई तो तेरी माँ तेरी माँ कह रहे हो। भूल गए वो बचपन के दिन जब तेरी माँ तुझें गोद में लेती थी तब तो तुमदोनों कहते थकते नहीं थे मेरी माँ मेरी माँ पहले गोद में मैं बैठूंगा। कभी तूने पूछा अपनी माँ से की वो क्या चाहती हैं ? वो कभी भी तुमदोनो को बोली की पहले तुम तो पहले तुम गोद में आओनहीं नहीं ना । तुम्हारी माँ तो तुमदोनो को एक ही बार में एक साथ ही गोद में बिठा लेती और ममता की प्यार तुमदोनो पर लुटाती रहती। माँ ने तो अपनी जिम्मेदारी से
भी ज्यादा जिम्मेदारी निभा दी। अब तुम्हारी बारी आई तो इस तरह से बोलेगों।
काका की बातें सुनकर दोनों को अपनी जिम्मेदारी की एहसास हो जाती हैं और दोनों अपनी माँ से माफी मांगते हुए कहते है पहले मेरी माँ पहले मेरी माँ।
माँ दोनों को अपने गले से लगा कर बहुत सारा आशीर्वाद देती हैं।