ख़ामोश मोहब्बत
ख़ामोश मोहब्बत
कंपकंपाती सर्दी , निरंतर बर्फबारी कटागला की धरती पर मानो उतर आया हो दूधिया बादल और बिछ गया हो उनके स्वागत में । कैब से उतरते ही छू गया उन्हें रूई के फाहा जैसा बर्फ । उन्होंने झट से मुट्ठी भर उठाया और गोला बनाकर उछाल दिया आकाश की ओर .... और हंस पड़ी अपनी ही मूर्खता पर । फोन की घंटी बजी "हेलो आप कहां हैं अभी ?" "हां हां मैं पहुंच गई अभी उतर ही रही हूं । "ओके , आपका कमरा नंबर है 03 रिवर व्यू । यही चाहती थी न ?" "जी हां , थैंक्यू ।" हिमाचल टूरिज्म कंपनी से फोन था मिस्टर अतुल सिंह का । गूगल पे से पेमेंट करने के बाद उन्होंने अपना बैग उठाया और चल पड़ी । चढ़ती ऊंचाई पर सांसें उखड़ने लगी खांसी भी शुरू हो गई । दो पल को ठहर कर सोचने लगी की कसोल आने का फैसला गलत तो नहीं था ? नितांत विरानी में दस दिन का स्टे और वो भी अकेली ... ।
आठ कमरे का छोटा सा किन्तु सभी सुविधाओं से लैस बेहद खूबसूरत होटल । इरादा तो पक्का था इस सुकून भरे एकांत में अपनी जीवन वृत्तांत लिखने का । थोड़ी परेशानी जरूर हुई लेकिन कमरे में पहुंच कर बहुत राहत महसूस हुई । अदरक वाली कड़क चाय पीकर पल भर में सारी थकान मिट गई । बाल्कनी में जाकर थोड़ी देर बैठने की इच्छा हुई सो बैठ गई । ढलती शाम का मनोरम दृश्य उन्हें अतीत में ले गया । बहुत अच्छे से याद है एक शाम यूं ही दोनों बैठे थें शिव ने कहा था "देखो डूबते सूरज की नारंगी किरणों ने तुम्हारी सूरत को अपनी आभा से अप्रतिम सौंदर्य से सुसज्जित कर दिया है । कैसे कैद करूं यह अद्भुत दृश्य ? " यह सुनकर वो शर्म से लाल हो गई थी । पहली दफा उन्होंने तारीफ़ की थी । कैसा अनोखा रिश्ता रहा था उन दोनों के बीच ? ना कभी मोहब्बत की बातें हुई ना बांधे गए तारीफों के पुल और ना ही काढीं गई कोई प्रशंसा के कशीदे । बेहद सहज-सरल और सामान्य सा व्यवहार किया करते थे एक-दूसरे के साथ । ना आकर्षण उन्हें उद्वेलित करता ना उन्मादी नशा परवाने चढ़ता , न मिलने की अधीरता , ना पाने की चाहत और ना ही खोने का भय .... । बेहद संतुलित , संयमित और सुखद संबंध था उनका । शिवरात्रि के दिन लीला मैम को शिव के घर जाना सुनिश्चित हुआ था । उसे लगा था वह दिन उसके जीवन का सबसे खूबसूरत दिन होगा जब शिव की मां उसे अपने बहू के रूप में स्वीकार लेंगी । मगर चाहा हुआ हर किसी का कहां सच होता है ? शिव की मां को जब बताया की "मेरा पूरा नाम लीला फर्नाडीज है , मैं ईसाई परिवार से ताल्लुक रखती हूं लेकिन शिव जी के साथ मैंने हिन्दू धर्म को ससम्मान स्वीकारने का फैसला किया है।" यह सुनने के बाद उनका चेहरा पीला पड़ गया और जुबान कसैला हो गया था "छी तुम तो ... खाती होगी" नहीं नहीं नहीं ... यह नहीं है सकता कि तुम मेरी बहुरानी बनो । लीला मैम उलटे पांव घर लौट आई थी और शिव को एक खत लिखा था । सरासर झूठ कि "मैं शिमला जा रही हूं अब वहीं रहूंगी , आप मेरे पते पर कोई खत नहीं भेजिएगा ।" संक्षिप्त सा यह खत भेज कर उन्होंने अपने प्रेम संबंध को समाप्त कर दिया था । फिर कभी जानने की कोशिश भी नहीं की शिव कहां हैं ? कैसे हैं ? हैं भी या कि नहीं हैं ? मगर एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा जब शिव की याद नहीं आई हो ? मगर प्रेम की भी एक मर्यादा होती है और उसी मर्यादाओं की खातिर उन्होंने विवाह नहीं किया और शिव की यादों के साथ अपना पूरा जीवन बिता दिया । अब जीवन के आखिरी पड़ाव पर पहुंच कर पार्वती नदी के किनारे अपने जीवन के सारे स्वर्णिम पलों को दोहरा कर जी लेना चाहती थी । उनकी अपनी उदासियों में भी एक करार था एक सुकून था कि उन्होंने अपने प्रेम को बंटने नहीं दिया किसी और के साथ एकल जीवन बिताया ।
सुबह का 4 बजे का अलार्म लगाया और कंबल तान कर सो गई । उन्हें पता नहीं था कि यह आखिरी रात थी उनकी जिंदगी की । अलार्म बजता रहा , इंटरकॉम बजता रहा दरवाजे पर नॉक होता रहा मगर ....जब कोई आहट नहीं हुई तब मैनेजर को बुला कर दरवाजा खोला गया । लीला मैम ठंडी हो चुकी थी उनकी डायरी खुली हुई थी जिसमें लिखी गई थी अधूरे इश्क की पूरी दास्तान ।