कड़वी मिठाई
कड़वी मिठाई


आज मेरे पास खुश होने की तीन वजह थी, पहली ये की मैं दसवीं की बोर्ड परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करके आज ग्याहरवीं में गया था। दूसरा, गर्मी की उबाऊ छुट्टियों के बाद आज स्कूल खुला था जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार था, और तीसरा आज उसकी पहली झलक देखने को मिली थी।
पतली छरहरी काया, गोरा मुखप्रष्ठ, लम्बे घने-काले केश और बड़ी काली आँखें पहली दृष्टि में ही किसी देवपुरुष को भी अपना दीवाना बनाने का माद्दा रखती थीं। हम तो फिर भी मिट्टी के पुतले थे।
कक्षा की सबसे पिछली सीट पर हम तीन मित्र बैठते थे जिनमे मैं सबसे बायीं ओर बैठा करता था। दायीं ओर की सबसे पिछली सीट पर वो अपनी दो सहेलियों सहित विराजती थी। वो भी सबसे बायीं ओर बैठती थी। वो जब भी प्यार भरी नज़रों से हमारी तरफ देखती तो मेरे दोनों दोस्त आपस में लड़ने लगते की उसने मेरी ओर देखा, नहीं मेरी ओर देखा।
मैं तो प्रतियोगिता से बाहर था क्यूँकी न तो मैं सुन्दर, गठीला लड़का था और न ही मुझे गिटार बजाना आता था। जबकि उसे संगीत में रूचि थी।
वो संगीत के पीरियड में मेरे दोनों दोस्तों के साथ बैठती थी और मैं बाहर हॉल में कंप्यूटर क्लास लेता था।एक शाम स्कूल के एक कार्यक्रम में उसने "लग जा गले की फिर ये" गाना गया, जिससे उसके प्रति मेरी श्रद्धा और बढ़ गयी। उसकी आवाज़ की मिठास ने मेरे कानों में जैसे सोमरस घोल दिया।मन ही मन उसे अपना जीवनसाथी बना बैठा।
एक दिन लंच में वो अचानक हम तीनों के पास आयी और मेरे सामने अपने प्यार की प्रस्तावना रख दी। जितना भौचक्का मैं था उससे कहीं ज्यादा चकित मेरे दोनों मित्र थे। वो कुछ बोलते उससे पहले ही मैंने प्रत्युत्तर में हामी भर दी। जीवन में पहली बार उन दोनों से जीतने का मौका मिला था,उसे ऐसे कैसे जाने देता।
खैर, इस घटना के बाद हम साथ में ही घर आया जाया करते थे। हम
ारे घर पास में ही थे।
एक दिन हम स्कूल के बाहर गोलगप्पे खाने गये-गोलगप्पे वाले ने एक गोलगप्पा तीखा बनाया तो वो बोल पड़ी-
"अबे पागल इंसान! साले तुझे पता नहीं है की गोलगप्पे कैसे बनाये जाते हैं? जाहिल है क्या पूरा? सही से खिला वर्ना पैसे नहीं मिलेंगे।"
मुझे धक्का लगा।मैंने कहा ये कैसी भाषा का प्रयोग कर रही हो तुम? बड़ों से ऐसे बात करते हैं क्या?
उसने कहा- " सॉरी यार! गुस्से में कह दिया।"उसके बाद उसने गोलगप्पे वाले अंकल से भी माफ़ी मांगी।
इसके कुछ दिन बाद अचानक से किसी ने शरारत में एक दिन क्लास का पंखा बंद कर दिया।
इतने में वो बोली-
" कौन कमीना ये हरकत कर रहा है? बता दे वरना उसकी....." उसने खूब अपशब्द कहे। मैं उसे डांटते हुए बोला-
"ये क्या बदतमीजी है? कोई क्लास में ऐसे बात करता है क्या? तुम्हें शर्म नहीं आती सबके सामने गालियाँ बकते हुए।"
उसने मुझे भी नहीं छोड़ा-
"ओये मिस्टर!सुन, बॉयफ्रेंड है इसका मतलब ये नही सबके सामने मुझे डांटे। तेरे जैसे कईयों को घुमा के छोड़ चुकी हूँ। यकीन नहीं आता तो पूछ अपने दोनों टट्टुओं से।" इसके बाद मुझे भी उसने चुन-चुन कर गलियाँ बकीं।
मैंने पीछे मुड़कर अपने दोस्तों को देखा, दोनों मानो अपनी जीत का जश्न मना रहे थे।अपमान का घूँट पीकर मैं अपनी जगह बैठ गया।
मेरे दोस्तों ने मुझे बताया की पहले दिन से इसकी ऐसी हरकतें हैं।हम दोनों ने म्यूजिक क्लास में सब देखा है।उस दिन हम तुझे रोकते इससे पहले तूने हाँ बोल दी।उस दिन पहली बार मुझे एहसास हुआ की यदि शब्दों में कड़वाहट हो तो आवाज़ की मिठास भी उन्हें मन में घाव करने से नहीं रोक सकती।
ये शब्द किसी कड़वी मिठाई जैसे लगते हैं और उस दिन के बाद से मैं ऐसी कड़वी मिठाई से ज़रा दूर ही रहता हूँ....